पीले पत्थरों का शहर जैसलमेर 

पीले पत्थरों से बना विशाल भवन, शानदार राज प्रशाद, कलात्मक हवेलियां, प्राचीन किले अपने आप मनुष्य को आकर्षित करते हैं। जैसलमेर की स्थापना 1156 में हुई थी। यादव वंश के भाटी राजपूत रावल जैसल ने इसकी स्थापना की थी। थार रेगिस्तान के बीच स्थित जैसलमेर शहर एक मरुस्थल की भांति है। जैसलमेर पाकिस्तान के नजदीक होने के कारण ज्यादा जाना जाता है। हर वर्ष जनवरी-फरवरी माह में जैसलमेर में मरू उत्सव मनाया जाता है जो एक तरह का अंतर्राष्ट्रीय मेला बन जाता है। उस समय सुरीली धुने और तालों की आवाजें गूंज उठती हैं। लोक नृत्य, तरह-तरह के मुकाबलों में भाग लेते हैं। रामगढ़ और सम के रेतीले टिल्ले जैसलमेर की शान और बढ़ा देते हैं। इस क्षेत्र में चारों ओर एक समुद्र फैला नजर आता है। जैसलमेर में सोनार का किला बहुत अच्छा देखने योग्य स्थान है। एक त्रिभुज आकारी पहाड़ी पर 99 बुर्जों वाले परकोटे से घिरा हुआ है। किला करीब साढ़े आठ सौ वर्ष पुराना है। 1500 फुट लंबे और 750 फुट चौड़े क्षेत्रफल में फैला सोनार का किला जमीन से 250 फुट ऊंचा है। किले के परकोटे में पूरा शहर समाया हुआ है।जैसलमेर में संगमरमर, राजविलास, मोती महल, जैन मंदिर, सनातन मंदिर देखने वाले हैं। किले में ही स्थित जैन मंदिर के तहखाने में जिनभद सूरी ज्ञान भंडार बना हुआ है जिसमें प्राचीन ग्रंथों का बड़ा संग्रह है। जैसलमेर कलात्मक हवेलियों के कारण भी जाना जाता है। पीले पत्थरों से बनी हुई हवेलियों की शिल्प कला तो देखने वाली है। वास्तु कला और नक्काशी के कारण पूरी दुनिया में सुप्रसिद्ध है। कारीगरी देखने वाली है। इसमें शामिल सिंह की हवेली और दीवान नथमल की हवेली खासतौर पर गिनी जाती है।  जैसलमेर में गढ़ीसर तालाब, सम के टिल्ले, अमर सागर और लोद्रवा सब देखने वाले हैं।

—डी.आर. बंदना