गुरु नानक अंतर-धर्म संवाद के संस्थापक गुरु नानक

विश्व के अलग-अलग गुट आज मिल बैठ कर बातचीत द्वारा अपनी समस्याओं के हल निकालने के बारे में संजीदगी से सोचने लगे हैं। एक-दूसरे के अस्तित्व को मिटा देने की होड़ में लगे लोग एक-दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करके विचार-विमर्श के रास्ते पर आ गए हैं। धर्म और सभ्याचार की दुनिया में अंतर-धार्मिक और अंतर सभ्याचारक बैठकों और गोष्ठियों का अब रिवाज़ हो गया है। वास्तव में साढ़े पांच सदियां पूर्व गुरु नानक देव जी ने जिस दृष्टि से धर्मों, सभ्याचारों और देशों की सीमाएं लांघ कर आपसी संवाद की परम्परा डाली थी, आज दुनिया उसका अनुसरण कर रही है। वास्तव में विश्व की सबसे प्रबल हकीकत उसकी विभिन्नता है और विभिन्नता भी ऐसी जिसको कोई मिटा नहीं सकता। इतिहास में बहुत दौर ऐसे आए हैं, जब धर्म के राज की शक्तियों ने इस विभिन्नता को समाप्त करने के लिए सिर-धड़ की बाजी लगा दी, परन्तु आज यह हकीकत जग-जाहिर है कि कोई भी हिंसक से हिंसक शक्ति या मुहिम इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकती। विभिन्नता हमेशा कायम रही है और हमेशा रहेगी, क्योंकि यह प्राकृतिक नियम है और विश्व की खूबसूरती का राज है परन्तु विभिन्नता किसी किस्म का टकराव न बन जाए, एक-दूसरे के अस्तित्व को खतरा पैदा न कर दे, हिंसा और अशांति को जन्म न दे, इसके लिए आवश्यक होता है आपसी संवाद। गुरु नानक पातशाह ने विभिन्नता की खूबसूरती कायम रखते हुए आपसी संवाद द्वारा अलग-अलग धर्मों और सामाजिक इकाइयों के बीच एक व्यापक सांझ स्थापित करने का कार्य किया। परन्तु यहां इस हकीकत को भी ध्यान में रखना चाहिए कि संवाद की पद्धति को अपनाने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें होती हैं। संवाद के अमल की पहली शर्त अलग-अलग धर्मों और धार्मिक विश्वासों की भिन्नता को मानना होता है। संवाद का मकसद उन दायरों को लांघना होता है, जो एक धर्म और सभ्याचार के लोगों ने अपने आसपास खींचे हुए होते हैं। उन रुकावटों को पार करना होता है, जिनको एक धर्म के विश्वासी लोगों ने खड़ा किया होता है। गुरु नानक पातशाह ने सबसे पहले दुनिया में धर्मों के विश्वासों की बहुलता को स्वीकार करने का संदेश दिया। फिर अलग-अलग धर्मों के लोगों के धर्म-स्थलों की यात्रा की। उनके धार्मिक और सांस्कृतिक समारोहों में हिस्सा लिया और उनके धार्मिक नेताओं के साथ वार्तालाप शुरू किया। इस तरह संवाद की शुरुआत हुई। वास्तव में संवाद द्वारा सांझ की पहचान की जाती है और फिर एक खुली सांझ द्वारा एक नई विश्व दृष्टि की रचना होती है। भारतीय परम्परा में और खासतौर पर मध्यकालीन भारतीय इतिहास में ‘शास्त्रार्थ’ तो मिलता है, परन्तु ‘संवाद’ नहीं। शास्त्रार्थ का मकसद विरोधी को नीचा दिखाना, उसके दोष निकालना और उस पर जीत प्राप्त करना होता है। अभिमान-ग्रस्त इस परम्परा ने धर्मों, धर्म के विद्वानों और विचारकों तथा अलग-अलग धर्मों के पैरोकारों के बीच ईर्ष्या, द्वेष और कड़वाहट पैदा की और मनुष्य के बीच बंटवारे को टकराव का रूप दे दिया था। गुरु नानक पातशाह ने इस बिगड़ी स्थिति में जब कोई एक-दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं था, अपनी संवाद की विधि से मानवीय सांझ को परिपक्व किया। गुरु नानक देव जी की संवाद विधि की विलक्षणता की चर्चा करते हुए प्रो. जोध सिंह अपनी एक रचना में बताते हैं कि गुरु साहिब की संवाद विधि की अपनी श्रेष्ठता है। संवाद में गुरु जी शांत बने रहते हैं और सम्मान से दूसरे पक्ष को अपनी बात कहने का अवसर देते हैं। कहीं यह प्रभाव नहीं देते कि उनके पास बड़ा अनुभवी ज्ञान है, कोई बड़ी रूहानी पहुंच है। दूसरा गुट अपनी जिज्ञासा प्रकट करता है और फिर संवाद आगे बढ़ता है। सिद्ध जोगियों के साथ हुआ संवाद गुरु साहिब की संवाद विधि का एक बढ़िया उदाहरण है। इसमें चर्चा करने वाले व्यक्तियों के स्वभाव में संतुलन और ठहराव किस तरह का होना चाहिए, गुरु नानक देव जी स्वयं इसका सबसे बढ़िया उदाहरण हैं। अपनी बात समाप्त करते हुए हिन्दी के शिरोमणि साहित्यकार और कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गुरु नानक देव को अकीदत भेंट करती काव्य रचना का यहां उल्लेख करना चाहता हूं। उनका कहना है—गुरु साहिब ने देश-विदेश का भ्रमण किया था और अनेक महापुरुषों के साथ मुलाकात की थी। सभी स्थानों पर उनके प्यार भरे उपदेश बहुत खुशी से सुने गए थे। गुरु साहिब ने निर्भीक होकर समानता का संदेश दिया तथा प्यार और सद्भाव के रास्ते पर चलाया। कर्मकांडों से हटाकर शुद्ध मन से, भावना से परमात्मा की भक्ति करने का उपदेश दिया था : 
मिले अनेक महापुरुषों से, 
घूमे नानक देश-विदेश।
सुने गए सर्वत्र चाव से, 
भाव भरे उनके उपदेश।
निर्भय होकर किया उन्होंने, 
साम्य धर्म का यहां प्रचार।
प्रीत नीत के साथ सभी को, 
शुभ कर्मों का है अधिकार।
सारे कर्मकांड निष्फल हैं, 
न हो शुद्ध मन की यदि भक्ति।
भव्य भावना तभी फलेगी, 
जब होगी करने की शक्ति।

—पूर्व उप-कुलपति, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला (पंजाब)