ब्रह्मांडी विचारधारा

श्री गुरु नानक देव जी समूची दुनिया के सर्व सांझे रहबर थे। आप जी का 550वां प्रकाश पर्व हमारे समय में आना हमारी खुशकिस्मती है। इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं समूचे सिख जगत और विश्व भर में बसने वाले गुरु नाम लेवा संगतों को हार्दिक मुबारकबाद देता हूं। गुरु साहिब जी का प्रकाश उस समय हुआ जब भारत के हालात बहुत खराब थे। भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे में उथल-पुथल मची हुई थी। हर तरफ झूठ का बोलबाला था। निरर्थक रस्में और कुरीतियां धर्म का हिस्सा बन चुकी थीं। शासक लोग आम लोगों पर बहुत जुल्म कर रहे थे। महिला वर्ग की दशा दयनीय थी। सब तरफ शासकों के अत्याचार हो रहे थे। जन-साधारण लोग निराशावादी बनकर आत्मविश्वास छोड़ चुके थे। जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन करवाये जा रहे थे। ऐसे हालात में दुनिया को तारने के लिए श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश हुआ। श्री गुरु नानक देव जी ने भारत का भविष्य बदलकर रख दिया। श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश वर्ष 1469 को गांव राय-भोए की तलवंडी (पाकिस्तान) में हुआ। यह नगर श्री गुरु नानक देव जी के मुबारक आगमन के कारण ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु साहिब जी ने मानवता को जीवन की दिशा देने के लिए जो विचारधारा दी, वह बेहद निराली, मौलिक और विलक्षण है। आप जी की दार्शनिक विचारधारा का मूल आधार आध्यात्मिक, सामाजिक और भावनात्मक एकता है। यह अध्यात्मवादी होने के बावजूद सामाजिक जीवन से उपरामता नहीं सिखाती, अपितु मानवीय जीवन के सामाजिक पक्षों को मुख्य रखकर आत्मिक विकास का मार्ग बताती है। आप जी ने अपनी वाणी में जीवन के हर पक्ष से संबंधित भारतीय दर्शन में प्रचलित मूल्यों की पड़ताल करने के बाद इनको नये सिरे से संगठित किया। भारतीय दर्शन के इतिहास में श्री गुरु नानक देव जी का अद्भुत स्थान है। श्री गुरु नानक देव जी ने साफ-स्वच्छ ढंग से धर्म को कर्मकांडी नैतिकता से अलग करके सामाजिक क्षेत्र में धर्म का सही स्थान निश्चित किया और धर्म तथा समाज की एक-दूसरे पर परस्पर निर्भरता को स्पष्ट किया। उन्होंने भारतीय समाज तथा सैद्धांतिक समस्याओं का विश्लेषण करके उनके उपयुक्त और स्पष्ट हल बताए। भारतीय दर्शन में श्री गुरु नानक देव जी से पहले ऐसे प्रयास किसी ने किए हों, इसके उदाहरण नाममात्र ही मिलते हैं। गुरु नानक पातशाह की वाणी पढ़कर पता चलता है कि उन्होंने सैद्धांतिक पक्ष से मानव जीवन और समकालीन सामाजिक व्यवस्था के मूल तत्वों को स्पर्श कर लिया था। इसी कारण उन्होंने वह जीवंत फिलॉस्फी प्रकट करके दर्शायी जो दुनियावी जीवन के साथ-साथ होकर चलती हो। गुरु साहिब से पहले भारतीय दर्शन में दूसरे की विचारधारा को रद्द करके अपना मत स्थापित करने की परम्परा समाज के लिए बहुत घातक थी परन्तु जब हम गुरु साहिब की वाणी पढ़ते हैं, तो हमें पता चलता है कि गुरु साहिब ने न सिर्फ दूसरे की विचारधारा को रद्द करने पर ही बल नहीं दिया अपितु अपने ढंग से उसकी व्याख्या करके उनको सही दिशा प्रदान की है। उन्होंने योगी, संन्यासी, वैष्णव, शैव, नाथपंथी, सिद्ध, पीर आदि सभी में जहां कोई कमज़ोरी देखी, वहीं उनकी आलोचना के साथ सही मार्गदर्शन भी किया। इस तरह गुरु साहिब एक संतुलित दार्शनिक के रूप में प्रकट हुए, जिसकी भारतीय दर्शन में काफी कमी थी। श्री गुरु नानक देव जी की विचारधारा पर विचार करते हुए ताज़ा रौशनी दृष्टिगत होती है। गुरु साहिब जी ने ऊंच-नीच  और जात-पात के भेदभाव की आलोचना की। उस समय समाज ऊंच-नीच और जात-पात में फंसा हुआ था तथा इससे भी अगली बात कि इसको धर्म की धारणाओं के तौर पर लोगों पर थोपा जा रहा था। गुरु साहिब जी ने इसको जड़ से ही नकारा और मानव समानता को प्रमुखता दी। श्री गुरु नानक देव जी ने वहमों, भ्रमों का खंडन किया। श्रम करने और बांट कर छकने का उपदेश दिया। कहने का तात्पर्य कि गुरु जी के उपदेशों में से ‘सरबत के भले’ की भावना प्रकट होती है। श्री गुरु नानक देव जी सिर्फ सिखों के ही नहीं अपितु समूची मानव जाति के सच्चे मार्गदर्शक थे, जिन्होंने अंधविश्वासों में भटक रहे लोगों का सही मार्गदर्शन करके उनको परमार्थ के रास्ते पर चलाया। उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए धर्मशालाएं बनाईं, लंगर प्रथा कायम की और संगत-पंगत तथा सेवा-सिमरन आदि ऐसे अद्वितीय सिद्धांत मानव-जाति के सामने रखे जो सदा के लिए दिशा देने वाले हैं। 

—प्रधान, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर