आज भी प्रासंगिक हैं गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं 

‘आग लगी आकाश में झर-झर गिरे अंगार’ 
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार।  
प्राचीन काल से भारत की धरती ऋ षि-मुनियों एवं संतों की पावन धरा रही है व संस्कृति एवं सभ्यता को आगे बढ़ाने में हमेशा संतों का मार्गदर्शन रहा है। विभिन्न कालखंडों में अलग अलग महान संत, महात्माओं एवं ऋ षियों ने अवतरित होकर भारतीय समाज में व्याप्त अन्याय, सामाजिक आर्थिक विषमता, निर्माण की कल्पना को मूर्त्त रूप देने के लिए निरंतर प्रयास किये। भारत वर्ष अपनी आध्यात्मिक श्रेष्ठता के कारण ही विश्व मंच पर धर्म गुरु की उपाधि से अपनी अलग पहचान रखता है। गुरु नानक देव जी भारत की महानतम आध्यात्मिक विभूतियों में से एक थे।  भारत और पूरे विश्व में महान संत और सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देवजी का 550वां प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। गुरु नानक देव की शिक्षाएं सारे समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। गुरु नानक देव जी का जन्म ऐसे युग में हुआ जब संसार में अधर्म, अत्याचार और जातिवाद चरम पर था ।   गुरु नानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु थे। सिख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में भारत के उत्तर-पश्चिमी पंजाब प्रांत में गुरु नानक देव जी ने ही की थी। गुरु नानक देव जी के अनुयायी इन्हें गुरु नानक, बाबा नानक और नानक शाह नामों से संबोधित करते हैं।  अंधविश्वासों और आडंबरों के कट्टर विरोधी नानक जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को  पंजाब (पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव में खत्री परिवार में हुआ ।  तलवंडी को अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर जिले से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।  16 वर्ष की उम्र में गुरु नानक देव जी का विवाह गुरदासपुर जिला में बीबी सुलक्खनी से हुआ। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थे।  पुत्रों के जन्म के बाद गुरु नानक देव अपने साथियों भाई मरदाना और भाई  बाला के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। 1521 तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में ‘उदासियां’ कहा जाता है। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ सिख संप्रदाय का प्रमुख धर्मग्रंथ है।  गुरु नानक देव जी  ने ज्योतिजोत समाने से पहले अपने प्रिय शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए। गुरु नानक देव जी ने सदा पूरी मानवता के कल्याण के लिए सोचा और समाज को हमेशा सत्य, कर्म, सेवा, करुणा और सौहार्द का मार्ग दिखाया। उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही थे।गुरु नानक देव जी ने सदियों पहले जिस लंगर परम्परा की शुरुआत की थी, वह आज भी कायम है।  दरअसल  बचपन में गुरु नानक देव के पिता मेहता कालू ने एक दिन घर में सौदा (राशन) लाने के लिए नानक को पैसे दिए थे। नानक घर से निकले तो रास्ते में कुछ भूखे साधु-संत दिखाई दिए। नानक ने उन्हीं पैसों से सभी भूखों संतों को भोजन करवा दिया और खाली हाथ घर लौट आए। पिता द्वारा राशन लाने के लिए दिए गए पैसों से गुरु नानक ने संतों को भोजन कराया था, उसी की याद में आजकल गुरुद्वारों में लंगर होता है।  आज भी प्रतिदिन गुरुद्वारा में अरदास के अंत में कहा जाता है— ‘नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला।’ आज के दौर में गुरु नानक देवजी की प्रेम, शांति, समानता और भाईचारे की शिक्षाओं का शाश्वत मूल्य है । गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को आत्मसात कर मनुष्य को न केवल अपने जीवन को सफ ल बनाना चाहिए बल्कि अपनी भावी पीढ़ियों को भी प्रेरणा देते हुए संस्कारवान बनाना चाहिए।  गुरु नानक देव जी ने अपना पूरा जीवन समाज को सदमार्ग दिखाने के लिए समर्पित किया था। गुरु नानक देव जी ने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित नारोवाल जिले में है। भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से करतारपुर 3.80 किलोमीटर दूर है। गुरु नानक ने अपनी ज़िन्दगी के आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन यहीं करतारपुर में गुजारे थे। सिख समुदाय के लिए करतारपुर साहिब एक पवित्र तीर्थ स्थल है।नेपाल ने श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में सितंबर माह में सौ रुपये, एक हजार और अढ़ाई हजार रुपये के तीन स्मारक सिक्कों का सेट जारी किया है। पाकिस्तान सरकार ने श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर 50 रुपये का एक सिक्का जारी किया है। कोलकाता टकसाल भी गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर  550 रुपये का स्मारक सिक्का जारी करने जा रही है। गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं हमें सत्य एवं सामाजिक सद्भावना के मार्ग पर चलने का ज्ञान देती हैं, इसलिए हमें अपने जीवन में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को आत्मसात करना चाहिए। गुरु नानक देव जी ने जो शिक्षा एवं संदेश समाज को दिया, वह आज भी मनुष्य का मार्गदर्शक बना हैं। समूची मानवता के लिए श्री गुरु नानक देव की शिक्षाएं बहुमूल्य मार्ग दर्शन हैं, जिन्हें अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को सफ ल बना सकते है। ‘नानक नाम जहाज़ है, चढ़े सो उतरे पार, जो श्रद्धा कर सेव दे, गुरु पार उतारण हार।’

 अकिडो कॉलेज ऑफ  इंजीनियरिंग, बहादुरगढ़ ज़िला झज्जर, हरियाणा