भारत में बहुल होना अभिशाप

विगत में सरकार की तुष्टिकरण की नीतियों के चलते अल्प-संख्यकों का झुकाव कांग्रेस की तरफ ही रहा जबकि हिन्दू राजनीतिक तौर पर बिखरा हुआ ही रहा। यही कारण रहा है कि देश की सत्ता पर ऐसे लोग और दल काबिज़ हो जाते जिन्हें हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, राष्ट्रीयता और अपने देश के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति का ज्ञान ही नहीं होता। केन्द्र की भूतपूर्व सरकारों ने (कांग्रेस) भारत विरोधी तत्वों को खुद इस देश में पनाह दी। भारत में लगभग तीन करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिए देश की सुरक्षा के लिए ़खतरा बन चुके हैं। इस कुकृत्य में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री कुर्सी के लालच में देश से द्रोह कर रही है, वे पश्चिम बंगाल को अपनी बपोती सम्पत्ति मान कर विचरण कर रही हैं और उनका मुख्य उद्देश्य अपनी सल्तनत को बंगलादेशी मुस्लिमों के बलबूते पर कायम रखना है। वह तो ताकत के नशे में अपनी आंखें भी खो बैठी हैं। उन्होंने सरकारी सहयोग से अपनी सम्पत्ति खड़ी कर ली है। हिन्दुओं के धर्म-स्थलों और शक्तिपीठों का सरकारीकरण किया जा रहा है। 
सरकार की नीतियों को लेकर अदालतों का नज़रिया भी काफी सख्त रहा है। सच्चर कमेटी की सिफारिशों को न लागू करके अर्थात् करने के संबंध में केन्द्र सरकार के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाई। उसने पूछा है कि आप ़गरीबी से लड़ना चाहते हैं तो फिर धर्म आड़े आता है। क्या यह समुदाय विशेष तुष्टिकरण करने का प्रयास तो नहीं है? क्या यह कमेटी इसी काम के लिए बनी है? क्या सरकार को सभी की भलाई के लिए खर्च करना चाहिए या किसी एक समुदाय विशेष के उत्थान के लिए। आखिर 90 मुस्लिम बहुल ज़िले चिन्हित कर उनमें मुस्लिमों की तरक्की के ही विशेष प्रयास क्यों किए गए हैं? सरकार केवल अल्प-संख्यकों के उत्थान के लिए कटिबद्ध है, बहुसंख्यकों के लिए क्यों नहीं? आप अंग्रेज़ों की तरह ‘बांटों और राज करो’ के सिद्धांतों पर क्यों चलना चाहते हो? धर्म-निरपेक्ष शब्द के कारण हमारे देश को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र कहा जाने लगा। 
राष्ट्र का धर्म से कुछ लेना देना नहीं इसलिए यह धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। यदि संविधान में शुरू से सैकूलर का अनुवाद धर्म-निरपेक्ष न करके सम्प्रदाय निरपेक्ष कर दिया जाता तो गलत धारणाएं पैदा नहीं होती। धर्म-निरपेक्षता को हथियार बना कर हिन्दुत्व पर आघात किया जा रहा है। 
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