अपने ही जाल में फंसा पाकिस्तान

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने अपने देश की भारत और अपने पड़ोसी अन्य देशों के प्रति नीतियों के बारे में जो कड़वी ह़कीकत बयान की है, उससे पाकिस्तान का चेहरा और नंगा हुआ है। चाहे जो वीडियो अब नश्र हुई है, वह कुछ वर्ष पहले की है, परन्तु मुशर्रफ की कही बातों को इसलिए गम्भीरता से लिया जाना ज़रूरी है क्योंकि वह लम्बे समय तक सेना के प्रमुख रहे हैं और उसके बाद उन्होंने नवाज़ शऱीफ की लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट करके स्वयं सत्ता छीन ली। मुशर्रफ ने वर्ष 1999 से 2008 तक 9 वर्ष देश की हकूमत सम्भाले रखी। पहले सैन्य प्रमुख होते हुए उन्होंने भारतीय सीमाओं में कट्टरपंथी जेहादियों तथा अपने सैनिकों को भेज कर कारगिल क्षेत्र में कुछ क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया, जिस कारण कारगिल का युद्ध हुआ था। इसमें पाकिस्तान की बुरी तरह हार हुई थी और उसको भारतीय क्षेत्रों से निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उनसे भी पहले सैन्य तानाशाह ज़िया-उल-हक जिन्होंने धक्के से हकूमत पर कब्ज़ा कर लिया था, लगभग 10 वर्ष अपनी तानाशाही चलाते रहे। उन्होंने कश्मीर में आतंकवादियों को हथियारबंद करके भेजना शुरू किया। जिस कारण पाकिस्तान का भारत के साथ सीमाओं पर तनाव बढ़ता गया, उनके द्वारा चलाई यह नीति पाकिस्तान की सरकार का एक स्थायी अमल बन गई। इसके साथ-साथ जनरल ज़िया द्वारा वर्ष 1979 में अफगानिस्तान से सोवियत यूनियन की सेनाओं को निकालने के लिए अपने देश में तालिबानी कट्टरवादी संगठनों की अधिक से अधिक सहायता करके भी उनको अफगानिस्तान में लड़ने के लिए भेजा जाता रहा था। इसमें अमरीका भी पाकिस्तान सरकार के साथ भागीदार था। मुशर्रफ के समय भी जलालूद्दीन हक्कानी जैसे आतंकवादियों के साथ-साथ ओसामा-बिन-लादेन जैसे इस्लामिक कट्टरपंथी नेताओं का संरक्षण ही नहीं किया गया अपितु उनको अपने देश में हर तरह की सुविधाएं भी मुहैया करवाई जाती रही। मुशर्रफ ने स्वयं माना है कि उन्होंने दुनिया भर के मुजाहिद्दीनों का अपने देश में जमावड़ा करवाया और अफगानिस्तान तथा भारत के विरुद्ध जंग में उनकी सहायता की। इस तरह पाकिस्तान ने अपने दोनों पड़ोसी देशों को अपने पक्के दुश्मन बना लिया। मुशर्रफ ने यह भी बताया कि भारत के विरुद्ध लगातार जंग छेड़ कर बैठा संगठन जैश-ए-मोहम्मद उनके कार्यकाल में भी भारत पर हमलों के लिए ज़िम्मेदार था। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने इस संगठन को पूरी जानकारी मुहैया करवाई थी। यह एजेंसियां शुरू से ही इन संगठनों का नेतृत्व करती रही हैं। यही कारण था कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बावजूद पाकिस्तान ने इन संगठनों के खिलाफ कोई सख्त फैसला नहीं लिया। आज पाकिस्तान बुरी तरह शिकंजे में  फंसा नज़र आता है। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद तथा तालिबान जैसे बेहद ़खतरनाक संगठन आज भी वहां पूरी तरह खुलेआम घूम रहे हैं। हम समय के सैन्य तानाशाहों को बनाई गई इन नीतियों के लिए ज़िम्मेदार समझते हैं। लोकतांत्रिक ढंग से चुनी सरकारें इन नीतियों के लिए अधिक ज़िम्मेदार नहीं थी। हम पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी, पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ तथा मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान जैसे राजनीतिज्ञों की भारत के साथ समय-समय पर मेल-मिलाप करने की बातों के अर्थ भी भली-भांति जानते हैं। ये सभी नेता पाकिस्तान के बहु-संख्यक आवाम की दयनीय स्थिति का बास्ता देकर भारत के साथ बेहतर संबंध चाहते थे। समय-समय पर वह इस संबंध में बयान भी देते रहे हैं। अक्सर भारत की ओर उन्होंने मेल-मिलाप और दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया था, परन्तु समय के सैन्य तानाशाहों द्वारा बुने जाल में पाकिस्तान इस कद्र फंसा नज़र आता रहा है जिसमें से उसके लिए बाहर निकल सकना आसान नहीं था। लगभग एक वर्ष पूर्व हकूमत सम्भालते ही इमरान खान ने भी भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के बारे में बयान दिये थे, वह अक्सर यह कहते हैं कि दोनों देशों की बड़ी समस्याएं तब ही हल हो सकती हैं, यदि दोनों का आपसी तनाव कम होगा और सहयोग बढ़ेगा। हम इमरान खान की नीयत पर सन्देह नहीं करते। करतारपुर का गलियारा खोलने में  उनका बहुत बड़ा हाथ है।इस गलियारे ने दोनों देशों के लिए अच्छे सन्देश भी दिए हैं, परन्तु पाकिस्तान के बड़ी समस्या यह बनी नज़र आती है कि देश में आतंकवादियों के फैलाये जाल को किस तरह काटा जाए? पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों के पास भी आज तक इसका हल नज़र नहीं आता, परन्तु यह बात बेहद ज़रूरी है कि वहां बने आतंकवादी ढांचे को पूरी तरह खत्म करने के बिना पाकिस्तान का गुज़ारा नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति के जारी रहते उसके अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध संतुलित और सुखद नहीं बन सकते। यह एक ऐसी मुश्किल स्थिति है जिसमें से पाकिस्तान के लोगों को निकालने के लिए वहां के राजनीतिज्ञों को एकजुट होकर प्रयास करने की ज़रूरत होगी। इससे ही इस देश और वहां के लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द