क्या भारतीय राजनीति में ‘रोज़गार’ हमेशा एक मुद्दा बना रहेगा ?

विश्व-व्यापी मंदी का प्रभाव भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर भी नज़र आने लगा है। पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 25000 होम गार्डों की नौकरियां इसलिए समाप्त कर दीं कि खज़ाना उनका बोझ उठाने में असमर्थ रहा। कुछ लोग यह कहते सुने गए कि शाहखर्ची से खज़ाना खाली हुआ। हम धार्मिक आयोजनों के विरुद्ध नहीं हैं पर बेमतलब खर्चा देश की अर्थ-व्यवस्था को गम्भीर चोट पहुंचाता है। यह बात देश के राजनीतिज्ञों को समझ आ जानी चाहिए। कहा जाता है कि कोई भी सरकार उतनी ही अच्छी होती है जितने अच्छे उसे चलाने वाले लोग होते हैं। जब सरकारों की मंशा अच्छी हो पर दिशा खराब हो तो फिर बेकारी-बेरोज़गारी का जिन्न बोतल से बाहर निकलकर सब तहस-नहस कर देता है। जब एक राजनेता कहता है कि वह प्रति वर्ष एक करोड़ लोगों को रोज़गार देगा तो बेरोज़गारी से जूझते लोगों में उम्मीद की एक किरण दिखाई देने लग पड़ती है। हमारा रोज़गार से अभिप्राय केवल सरकारी नौकरी से नहीं है। विश्व में व्याप्त आर्थिक मंदी का भारत पर असर विकसित देशों जितना न पड़ा हो। कई बड़े देशों से भारतीय कम्पनियों को काम के आर्डर कम मिलने से भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर इसका दोहरा असर पड़ा। एक तो निर्यात कम हुआ, दूसरा उद्योग में कर्मचारियों की कटौती से लाखों शिक्षित एवं श्रमिक मायूस होने लगे। इस पर भारतीय सरकार ने मुद्रा-योजना आरम्भ कर दी। कुछ लोगों को रोज़गार के लिए धन उपलब्ध हुआ। कुछ छोटे उद्योग धंधे भी आरम्भ हो गए। इससे घरेलू वस्तुओं के बाज़ार में थोड़ी राहत महसूस हुई और ग्रामीण उपभोक्ता आर्थिक मंदी को कमज़ोर करने में सहायता कर गया। खाद बनाने वाले, अनाज मंडियां और खेतीबाड़ी के औज़ार, ट्रैक्टर, कम्बाइन, हारवैस्टर, थ्रैशर व टोका आदि बनाने वाले लोगों ने आर्थिक मंदी का मुकाबला किया। सत्ता केवल राजनीतिक पद से ही परिलक्षित नहीं होती और न ही सियासी पार्टियां, जो अपना घोषणा-पत्र, संकल्प या भाषणों में रोज़गार देने की बातें करने वालियां। समाज और देश पर उनसे भी अधिक प्रभाव जीवन के दूसरे क्षेत्रों में कार्यरत उद्योगपति एवं कारोबारी घरानों का पड़ता है। यह भी हकीकत है कि व्यवसाय जगत के सामने कई चुनौतियां हैं फिर भी आर्थिक मंदी से देश को निकालने के लिए वे भी सिर-धड़ की बाज़ी लगाए हुए हैं। अपनी ताकत को समय के थपेड़ों से बचाकर रखने के लिए वे लगातार संघर्ष करते देखे गये हैं। यही बात उनको शेष लोगों से अलग करती है। वामपंथी विचारों से प्रभावित लोग ये नहीं जानते कि गरीबी हटाओ का नारा देने से। गरीबी नहीं हट सकती और न ही ‘दुनिया भर के मज़दूरो एक हो जाओ’ कहने से मजदूरों को रोज़गार मिल सकता है। एक बार मैं अमृतसर गया, जिस स्थान पर टैक्साइटल मिलें हुआ करतीं थीं वहां अब कालोनियां बन चुकी हैं, जो रिक्शा चालक मुझे लेकर गया उसने मकैनीकल डिपलोमा किया हुआ था। उसने बड़े दुखी अंदाज़ में बताया कि वामपंथी विचारों वाला अमुक लीडर हड़ताल पर हड़ताल करवाता रहा जिस कारण मिलें बंद हो गईं और कर्मचारी बेरोज़गार हो गए। मैं उसे देख रहा था और सोच रहा था कि जिस देश में ‘टाटा’ ने आज से 150 वर्ष पूर्व स्टील का उद्योग स्थापित किया, उसके जमशेद जी.एन. टाटा, जे.आर.डी. टाटा और अब रतन टाटा तीन पुश्तें देश की आर्थिक स्थिति को बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। लाखों व्यक्ति इनसे रोज़गार पा रहे हैं। एक अन्य परिवार है धीरू भाई अम्बानी का, जिनके बेटे मुकेश अम्बानी को आज भारत का सर्वोच्च धनाढ्य व्यक्ति कहा जाता है। उन्होंने भी उद्योग धंधे में लाखों लोगों को बरसरे-रोज़गार किया है। कुमार मंगलम बिरला जिनकी सीमेंट कम्पनी अल्ट्रा-टैक आज विश्व की 10वीं सबसे बड़ी सीमेंट उत्पादन करने वाली कम्पनी बन गई है। क्या वहां लोगों को रोज़गार नहीं मिला? आनंद महिन्द्रा जो महिन्द्र-एंड-महिन्द्रा के नामवर उद्योगपति हैं, वे कड़े दौर में सच्ची उद्यमिता और आशावादिता का प्रतीक बनें। आज लाखों लोगों को रोज़गार दे रहे हैं। गौतम अडानी जिनकी चर्चा राजनीतिक क्षेत्रों में प्राय: सुनी जाती है, बड़े उद्योगपतियों में शुमार है और रोज़गार देने की गारंटी समझ जाते हैं। हम उन लोगों को पूछते हैं जो बड़े उद्योगपतियों को बुरा भला कहने के अतिरिक्त कुछ जानते नहीं, यदि देश के ऐसे बीसियों उद्योगपति न हों तो देश में बेरोज़गारी का सूचकांक कहां खड़ा होता। टैलीफोन क्षेत्र की बात करें तो आज देश में 90 करोड़ से अधिक लोगों के पास मोबाइल है। आज हमारे देश में सवा सौ के करीब ऐसी कम्पनियां हैं जो मोबाइल बना रही हैं। टैलीकाम क्षेत्र में मुकेश अम्बानी, सुनील भारती मित्तल, टाटा इत्यादि के नाम लिए जा सकते हैं जो आज मोबाइल से जुड़े काम-धंधों में बहुत से लोगों को रोज़गार दे रहे हैं। रोज़गार देने वाले नगरों में मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली पुणे, बंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता, अहमदाबाद तथा कानपुर व लुधियाना जैसे महानगर ऐसे हैं जिनकी आबादी, काम-धंधे की तलाश में अन्य लोगों के आने से बढ़ गई है।  राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की सरकार दूसरी बार सत्ता में आई। गत तीस वर्षों में भाजपा नेतृत्व वाली पूर्ण बहुमत प्राप्त करने वाली सरकार अब शासन कर रही है। श्री नरेन्द्र मोदी देश के लिए कई विदेशी उद्योगपतियों और सरकारों से सम्पर्क बनाए हुए हैं। आशाएं बहुत हैं। हो सकता है कि एक दिन उम्मीदों के पंख लगें और बेरोज़गारी के अभिशाप से देश की युवा पीढ़ी को मुक्ति मिल सके। रोज़गार विभाग को भी चुस्त-दुरुस्त करने की आवश्यकता है। केवल आंकड़े दे देने से बात बनने वाली नहीं है। लाल फीताशाही, जो विकास के रास्ते में  रुकावट है। प्रधानमंत्री को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। तभी देश में चौमुखी विकास होगा और बेरोज़गारी को  भी नकेल डाली जा सकेगी।