कब बढ़ना बंद होंगे महिलाओं के खिलाफ  अपराध ?

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों सहित केंद्र सरकार द्वारा किये गये तमाम वायदों, सोशल मीडिया के आंदोलनों और डिजिटल सुरक्षा तकनीक के बड़े-बड़े दावों के बावजूद देश में महिलाओं के प्रति अपराधों की तूफानी रफ्तार में किसी तरह की कमी नहीं आ रही बल्कि  उल्टे यह लगातार बढ़ रही है। इस बात का खुलासा एक बार फिर से राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट से हुआ है। हालांकि इस रिपोर्ट को ताजा भी कहना महज तकनीकी है; क्योंकि रिपोर्ट न पेश किये जाने की तमाम आशंकाओं के बाद एनसीआरबी ने राष्ट्रीय अपराध का सालाना ब्यौरा तो पेश कर दिया है, लेकिन यह दो साल पीछे का है। वास्तव में एनसीआरबी ने 21 अक्तूबर 2019 को जो बहुप्रतीक्षित सालाना अपराध रिपोर्ट पेश की है, वह साल 2017 की है। साल 2017 में देशभर में कुल 50,07,044 अपराध की घटनाएं हुईं। इनमें अकेले महिलाओं के विरूद्ध 3,59,849 आपराधिक घटनाएं घटीं। जबकि साल 2016 में महिलाओं के विरूद्ध 3,38,954 तथा साल 2015 में 3,29,243 आपराधिक घटनाएं घटी थी। मतलब साफ  है कि सरकार किसी की भी हो, अपराध रोकने के लिए तकनीक और दूसरे साधन कितने ही बेहतर कर देने का दावा हो, लेकिन महिलाओं के विरूद्ध होने वाली आपराधिक घटनाओं में किसी भी तरह की कमी तो आ ही नहीं रही, उल्टे ये लगातार बढ़ रही हैं। कभी-कभी तो इस सिलसिले को देखकर मन दहशत से भर जाता है कि आखिर महिलाओं के विरूद्ध अपराधों के इन आंकड़ों में कब तक बढ़ोत्तरी होती रहेगी। साल 2017 में देशभर में सबसे ज्यादा जघन्य हत्याएं उत्तर प्रदेश में हुई, जहां 4,324 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। उत्तर प्रदेश के ठीक बाद जिस प्रदेश का जघन्य हत्याओं के मामले में नंबर आता है, वह बिहार है। बिहार में साल 2017 में 2803 तथा महाराष्ट्र में 2103 हत्याएं हुईं, जो देखी जाएं तो उत्तर प्रदेश से करीब-करीब आधी हैं। यही हाल दहेज हत्याओं का भी है। साल 2017 में उत्तर प्रदेश में 2524 दहेज हत्याएं हुईं, जबकि उसके ठीक बाद आने वाले राज्य बिहार में 1081 दहेज हत्याएं हुईं। अपहरण के मामले में भी उत्तर प्रदेश देश के बाकी प्रदेशों से बहुत आगे है। साल 2017 में जहां उत्तर प्रदेश में 19,921 अपहरण की घटनाएं घटीं, वहीं इसके ठीक बाद आने वाले महाराष्ट्र में 10,324 अपहरण की घटनाएं घटीं, जिससे साफ  पता चलता है कि अपराध के किसी भी फॉर्मेट में उत्तर प्रदेश का जवाब नहीं है। दुष्कर्म के मामले में जरूर हमेशा की तरह मध्य प्रदेश ही आगे रहा है। इस सदंर्भ में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है। साल 2017 में मध्य प्रदेश में दुष्कर्म की 5,562 घटनाएं घटीं, जबकि उत्तर प्रदेश में 4,246 घटनाएं घटीं। दंगों के मामलों में भी उत्तर प्रदेश के कहीं ज्यादा उर्वर होकर अब बिहार उभरा है। बिहार में साल 2017 में दंगों की 11,698 घटनाएं घटीं और उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 8,990 रही। इस तरह देखा जाए तो इस मामले में भी उत्तर प्रदेश कोई पिछड़ा हुआ नहीं है। सवाल है आखिर महिलाओं के विरूद्ध लगातार आपराधिक घटनाएं बढ़ती ही क्यों जा रही हैं? क्या इसका कारण सरकार का ढीला होना है? शायद ऐसा नहीं है। क्योंकि पहली बात तो यह कि ढीले होने की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। दूसरी बात यह कि महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों के लिए तमाम सख्त सजाओं और गैर जमानती गिरफ्तारियों की व्यवस्था है। इसके बावजूद भी आखिर महिलाओं के विरूद्ध लगातार अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं तो मानना ही पड़ेगा कि सरकार और प्रशासन तो इसके लिए जिम्मेदार हैं ही, लेकिन एक बड़ी जिम्मेदारी समाज की भी है। हमने जिस तरह का महिलाओं के विरूद्ध संवेदनहीन समाज बनाया है वह एक बड़ा कारण है, जिसकी वजह से तमाम कोशिशों और संसाधनों के बावजूद महिला अपराधों में किसी किस्म की कमी नहीं आ रही है।