भारत -पाक के बीच अच्छी पहल है करतारपुर गलियारा

9 नवम्बर, 2019 बहुत ही ऐतिहासिक और धार्मिक दिन बन गया। इस दिन एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला दिया और दूसरी तरफ इसी दिन ही करतारपुर साहिब गलियारा खुला। 4.2 किलोमीटर का यह गलियारा पंजाब के गुरदासपुर ज़िले के डेरा बाबा नानक से पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब के गुरुद्वारा दरबार साहिब तक बना है। इस दिन लगभग 500 से ज्यादा श्रद्धालु करतारपुर साहिब गये। इस दौरान पाकिस्तान के इमीग्रेशन अधिकारी यह बात कह रहे थे कि दो पीढ़ियां विभाजन के दर्द को भोगती हुई मर गई और अब हमें गलियारा खोलने का अवसर मिला है। गत लगभग 70 वर्ष से सिख समुदाय की यह मांग थी कि करतारपुर साहिब गलियारा खोला जाना चाहिए ताकि वह बिना किसी परेशानी के करतारपुर साहिब के दर्शन कर सकें ।गत 9 नवम्बर को इस गलियारे के रास्ते श्री अकाल तख्त साहिब के ज्ञानी हरप्रीत सिंह के नेतृत्व में पहला जत्था जिसको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रवाना किया। इस जत्थे में पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, गुरदासपुर से सांसद सन्नी द्योल, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल तथा उनकी बहू और केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल तथा कुछ अन्य प्रमुख शख्सियतें शामिल थीं। इस अवसर पर डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि दोनों देशों के संबंधों में सुधार लाने के लिए यह अच्छी शुरुआत है। उन्होंने कहा हमारे लिए यह बहुत बड़ा दिन है। 
महाराष्ट्र का राजनीतिक घमासान
महाराष्ट्र में चल रहे राजनीतिक घमासान के बीच कांग्रेस तथा एन.सी.पी. ने यह बयान दिया था कि वह पहले सांझे रूप में एक न्यूनतम सांझा कार्यक्रम बनाएंगे और इस कार्यक्रम से शिव सेना की सहमति होने पर ही राज्य में तीनों पार्टियां सरकार बना सकती हैं। इस बयान के एक दिन बाद कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष बाला साहब थोरट, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्वहान तथा पूर्व राज्य कांग्रेस प्रमुख मनिका राव सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने शिव सेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे से बातचीत की। इस बैठक में एन.सी.पी. ने हिस्सा नहीं लिया था। औपचारिक तौर पर यह उद्धव ठाकरे की पहली बातचीत थी। इसके अलावा दोनों गुटों ने सरकार चलाने में हिस्सेदारी के बारे में भी बातचीत की। हालांकि कई पहलुओं पर बातचीत करने के बाद अंतत: गत 14 नवम्बर को शिव सेना, कांग्रेस और एन.सी.पी. ने समझौते के मसौदे को अंतिम रूप दे दिया था।  सूत्रों के अनुसार बनाये गये इस सांझे मसौदे में अलग-अलग मुद्दों, जैसे किसानों का ऋण, फसल बीमा योजना की समीक्षा, बेरोज़गारी, छत्रपति शिवाजी महाराज और डा. बी.आर. अम्बेदकर की यादगार बनाने आदि को प्रमुखता से उभारा गया है। अब यह मसौदा तीनों पार्टियों के प्रमुखों को अंतिम स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। जैसे ही यह स्वीकृति मिलती है तीनों पार्टियां सरकार बनाने के लिए राज्य के राज्यपाल बी.एस. कोश्यारी के पास अपना दावा पेश करेंगी। 
अयोध्या मामले का फैसला
लगभग 134 वर्ष के विवाद और कानूनी लड़ाई के बाद अंतत: अयोध्या मामले में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर के पक्ष में फैसला देते हुए सारी 2.77 एकड़ भूमि राम लला गुट को देने का फैसला सुनाया है। राम जन्म भूमि आन्दोलन में मुख्य भूमिका अयोध्या के राम जन्म भूमि न्यास के प्रमुख महंत रामचंद्र दास परमहंस, अशोक सिंघल और लाल कृष्ण अडवानी की है। 90 के दशक में महंत राम चंद्र दास परमहंस ने कुछ अन्य हिन्दू गुटों को साथ लेकर राम मंदिर के निर्माण के लिए आन्दोलन शुरू किया था। पेशे के तौर पर इंजीनियर और विश्व हिन्दू परिषद् के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल ने इस आन्दोलन को देश स्तर पर आगे बढ़ाया और शीघ्र ही लाल कृष्ण अडवानी इस आन्दोलन के राजनीतिक चेहरा बन गये।अडवानी ने राम मंदिर के निर्माण के नारे से सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा की शुरुआत की। 23 अक्तूबर, 1990 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लाल प्रसाद यादव द्वारा यह यात्रा रोक दी गई। अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के एक जज ने कहा है कि म़ुगल शासक बाबर द्वारा 1528 ई. में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है, परन्तु आज तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी द्वारा इस पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। सूत्रों के अनुसार ममता ने अपनी पार्टी के नेताओं को निर्देश दिया है कि लोगों में इस मामले पर कोई भी प्रतिक्रिया न दी जाए। 
बुरे फंसे दल-बदलू
उत्तराखंड में जिन नेताओं ने अपनी पार्टियां छोड़ कर भाजपा का दामन थामा था वह अब चिंतित हैं, क्योंकि न ही राज्य के मुख्यमंत्री तथा न ही राज्य भाजपा प्रमुख उनको महत्त्व दे रहे हैं। खास तौर पर उन नेताओं को जो कांग्रेस से आये हैं। हालांकि कुछ नेता मौजूदा भाजपा सरकार में मंत्री भी बने हैं। जैसे यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत, सुबोध ओनियल और सतपाल महाराज, परन्तु मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को इन मंत्रियों पर कोई भी विश्वास नहीं है, इसका प्रभाव यह पड़ा है कि उत्तराखंड सचिवालय इन मंत्रियों की अनुमति का पालन नहीं करता और मुख्यमंत्री स्वयं उनकी फाइलें देखते हैं और कई बार उनके फैसले भी बदल देते हैं। इस सलूक को देखते हुए परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंपने की पेशकश की थी, परन्तु मुख्यमंत्री ने यह पेशकश रद्द कर दी।मुख्यमंत्री सोचते हैं कि यशपाल आर्य राज्य के एक मजबूत एस.सी. नेता हैं। इसके अलावा सी.बी.आई. ने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ स्टिंग आप्रेशन दिखाने वाले एक चैनल के मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया था और अब हरक सिंह दुविधा में हैं और सोच रहे हैं कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत उनको इस केस के कारण कैबिनेट से बर्खास्त कर सकते हैं। इसलिए अब वह हरीश रावत के खिलाफ किया केस वापस लेने के बारे में सोच रहे हैं। सभी पूर्व कांग्रेसी नेता जो त्रिवेन्द्र सिंह रावत की कैबिनेट में हैं अब भाजपा से छुटकारा पाना चाहते हैं। इसी तरह ही विजय बहुगुणा भी भाजपा को छोड़ने की फिराक में हैं, क्योंकि न तो उनको राज्यसभा में भेजा गया और न ही किसी राज्य का राज्यपाल बनाया गया है। दूसरी तरफ राज्य के भाजपा प्रमुख ने बहुगुणा के निकटतम विधायक उमेश काओ पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की है।