ज़िम्मेदार कौन?

अपनी ज़िम्मेदारी समझ कार्य को मूर्त रूप देना ये इन्सान का फज़र् है। लेकिन, आज जैसे इन्सान इसका मतलब ही भूल गया है। पूर्व में समय पर डाक उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन आज साधारण डाक से भेजी गई पत्रिकाएं, पत्र आदि मिल नहीं पाते। कभी मिल गई तो भाग्य समझें। वरना तो गायब ही हो जाती है। कौन है इसका ज़िम्मेदार? यह एक प्रश्न है? जिसका उत्तर किसके पास है? पता नहीं। जब रजिस्ट्री, स्पीड पोस्ट या फिर कोरियर द्वारा भेजने पर मिल जाती है तो साधारण डाक द्वारा भेजी गई डाक से वंचित क्यों रहना पड़ता है।

-अलका मित्तल