सब के लिए मंगल कामना करता है स्वस्तिक

‘‘मांगलिक कार्य तो सभी जगह सम्पन्न होते हैं और इनमें मांगलिक प्रतीकों का भी उपयोग होता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इन प्रतीकों का आखिर अर्थ तथा महत्व क्या है ? असलियत यह है कि इन शुभ चिन्हों में इतना  गहन  अर्थ  छिपा होता है कि उसे जाने बिना किसी भी  मांगलिक  कार्य  को सम्पन्न करने से मिलने वाले आनंद में कमी रह जाती है ।‘स्वस्तिक’ ऐसा ही महत्वपूर्ण चिन्ह है जो ‘सु’ धातु से बना है । ‘सु’ अर्थात् शुभ मंगल कल्याण तथा ‘अस्’ अर्थात अस्तित्व। इस तरह स्वस्तिक का तात्पर्य हुआ इस ब्रम्हाण्ड में जड़-चेतन आदि जिसका भी अस्तित्व होता है, उसके कल्याण की शुभ भावना। इस छोटे से चिन्ह में अनंत अर्थ समाया हुआ है। अत्यन्त प्राचीन समय से ही स्वस्तिक का प्रयोग होता आ रहा है। हमारे वेद, पुराण, उपनिषद् आदि ग्रन्थों में कई स्थानों पर इसी के माध्यम से जन-कल्याण की बातें कही गई हैं।जैन धर्म में भी इसे सम्मानीय एवं पूजनीय माना जाता है। जैन धर्म का मानना है कि इसके चार भाग प्राकृत जगत के एवं चार क्त्रम पूर्ववर्ती सर्ग, वनस्पति सर्ग, मनुष्य सर्ग और देवसर्ग के द्योतक हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार स्वस्तिक की खड़ी रेखा ‘शिव’ की प्रतीक है और आड़ी रेखा ‘शक्ति’ की। इन दोनों के मिलन से सृष्टि का विस्तार होता है। यह भी माना जाता है कि चारों भागों में बंटी रेखाएं भगवान विष्णु के चार हाथों की प्रतीक हैं। स्वस्तिक को कमल पुष्प का प्रतीक भी माना गया है। कमल ब्रम्ह्माजी का आसन है।कुछ लोग स्वस्तिक को लक्ष्मी या श्री का प्रतीक भी मानते हैं। बुद्ध धर्म में स्वस्तिक का पूजन गणपति मानकर ही होता है। अमरावती के बौद्ध स्तूप में जो बुद्ध चरण अंकित हैं, उन पर भी स्वस्तिक का चिन्ह अंकित है। पुरातन खुदाई में इसके होने के सबूत मिले हैं। स्वस्तिक  को  आधार  मानकर  अनेक  मंदिरों का निर्माण किया गया है। वास्तुशिल्प में भी इस प्रतीक का बड़ा महत्व है। काशी में तो स्वस्तिक के आधार का एक मंदिर भी है। शिशु का जन्म होने पर छठी के दिन कहीं-कहीं स्वस्तिक अंकित चादर पर शिशु को सुलाया जाता है। विवाह के समय वर-वधू के सामने दीवार एवं पूजावेदी पर स्वस्तिक अंकित करना उसके जन्म-जन्मांतरों के साथ की भावना का प्रतीक माना जाता है।इस प्रकार स्वस्तिक उस असीम अवर्णनीय, अव्यक्त परम सत्ता को अभिव्यक्त करने का साधन है जिससे हम सुख, कल्याण तथा उत्तम स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं।

— रेणु जैन