कश्मीर में सुधार की सम्भावना

कश्मीर के संबंध में मिल रहे समाचार ढाढस बंधाने वाले हैं। गत 5 अगस्त को केन्द्र सरकार की ओर से प्रदेश में विशेष धारा 370 को हटाने की घोषणा के बाद अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाओं का प्रकट होना प्राकृतिक था, क्योंकि विगत लगभग 30 वर्ष से प्रदेश में अत्याधिक बेचैनी फैली हुई थी। कश्मीर को हथियाने के लिए पाकिस्तान अपनी पूरी शक्ति झोंक रहा है। चाहे वह भारत के साथ प्राय: प्रत्यक्ष लड़ाई लड़ने से हिचकिचाता रहता है, परन्तु वहां की सेना एवं अन्य गुप्तचर एजेंसियां निरन्तर आतंकवादी संगठनों को शह देती रही हैं। सशस्त्र आतंकवादी इस प्रदेश में भेज कर इसे रक्त-रंजित करते रहे हैं तथा जन-जीवन को ठप्प करने के लिए सुरक्षा बलों पर पत्थरबाज़ी भी की जाती रही है। इसके पीछे भी पाकिस्तान की एक सोची-समझी योजना काम कर रही थी। हुर्रियत से सम्बद्ध पार्टियों को समय-समय पर सीमा पार से प्रत्येक प्रकार की शह मिलती रही है। इसके साथ ही उन्हें व्यापक स्तर पर परोक्ष ढंग से आर्थिक मदद भी पहुंचाई जाती थी। तत्कालीन सरकारों ने स्थितियों को सामान्य करने के लिए अनेक योजनाएं बनाईं, अनेक बड़े प्रशासनिक पग भी उठाए। राजनीतिक धरातल पर पंचायतों से लेकर विधानसभा एवं लोकसभा के चुनाव भी हर सम्भव ढंग से करवाने का यत्न किया जाता रहा है। तीन दशकों में 40 हज़ार से अधिक व्यक्तियों का मारा जाना अतीव दुखद बात है, परन्तु पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों ने जम्मू-कश्मीर एवं भारत के अन्य राज्यों में रक्त-पात करने में कभी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। भारतीय सुरक्षा बलों को भी उनकी ओर से प्रत्येक प्रकार की चुनौती दी जाती रही है। चाहे देश को आज़ादी मिलने के बाद ही कश्मीर की समस्या उलझना शुरू हो गई थी। इसे सुलझाने के यत्नों में ही तत्कालीन सरकार ने इस प्रदेश को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 लागू की थी, परन्तु उसी समय इसे अस्थायी व्यवस्था भी कहा गया था। चाहे समय व्यतीत होने के साथ-साथ इस धारा को हटाने के संबंध में कोई सरकार साहस नहीं कर सकी। स्थिति के अधिक बिगड़ने एवं उसके हाथ से निकलने के बाद केन्द्र सरकार की ओर से इस धारा को खत्म करने का जो कठोर फैसला लिया गया है, उसके बाद इस पग की सम्भावित प्रतिक्रियाओं के संबंध में सचेत रूप में उठाये गये कदमों का अपना प्रभाव दिखाई देना शुरू हो गया है। संसद के मौजूदा अधिवेशन में भी इस मामले पर बड़ी भरपूर एवं समुचित बहस हुई है। तीन महीनों में घाटी का जन-जीवन लगभग ठप्प होकर रह गया था, जिसके कारण जन-साधारण की परेशानी में भारी वृद्धि हो चुकी थी। व्यापारी, दुकानदार एवं समाज का प्रत्येक वर्ग इस स्थिति से पूर्णतया ऊब चुका था। इसलिए पहले पहल तो लोगों के मन के भीतर आतंकवादियों का भय स्पष्ट रूप में देखा जा सकता था, परन्तु समय व्यतीत होने एवं समय की हकीकत को देखते हुए यह भय धीरे-धीरे कम होना शुरू हो गया है। स्कूल खुलने शुरू हो गये हैं। बनिहाल से श्रीनगर तक रेल सेवा भी बहाल कर दी गई है। लोकसभा में दिये गये सरकारी बयान में यह भी बताया गया है कि पत्थरबाज़ी की घटनाओं में भारी कमी आई है। सरकार ने यह भी दावा किया है कि विगत 6 महीनों में लगभग 34 हज़ार पर्यटक घाटी में आये हैं, जिनसे 25 करोड़ रुपये की आय हुई है। अब ऐसा प्रतीत होता है जैसे सभी तरह के लोगों की गतिविधियां बढ़ रही हैं। आतंकवादियों के आदेश गायब हो गये प्रतीत होते हैं। दुकानदार भी अपनी दुकानें खोलने लगे हैं। पत्थरबाज़ी की घटनाओं में भी काफी कमी आई है। यदि ऐसे हालात बने रहे तो आगामी दिनों में घाटी का जन-जीवन काफी सीमा तक सामान्य जैसा हुआ दिखाई देने लगेगा। सरकार ने यह भी दावा किया है कि प्रदेश में शिक्षा एवं रोज़गार की योजनाएं प्राथमिकता के आधार पर बनाई जाएंगी तथा इसके साथ-साथ वहां राजनीतिक प्रक्रिया भी शुरू होने की सम्भावना बनते दिखाई दे रही है। चाहे अभी तक अधिकतर कश्मीरी नेता भिन्न-भिन्न स्थितियों में नज़रबंद हैं परन्तु उनके शीघ्र रिहा होने की आशा भी बननी शुरू हो गई है। यदि इसी प्रकार बेपटरी हुआ कश्मीर पुन: पटरी पर आ गया तो यह समूचे देश के लिए एक बहुत अच्छा एवं सुखद सन्देश होगा, जो इस प्रदेश में नई सम्भावनाएं पैदा करने में भी सहायक हो सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द