बॉलीवुड में स्थाई सिकंदर कोई नहीं!

एक जमाने की छोड़िये लगभग 80 की उम्र में होने के बाद भी अभी तक अमिताभ बच्चन का बॉलीवुड में सिक्का चल रहा है,लेकिन अपने बेटे अभिषेक की शायद कोई मदद कर पाना सदी के महानायक के लिए भी संभव नहीं है। क्योंकि यहां पैदायशी रसूख बस एक उम्र तक ही काम आता है। रसूख की बदौलत अभिषेक को जितने मौके मिलने थे, मिल चुके। हालांकि ऐसा नहीं है कि अभिषेक को एक्टिंग बिलकुल ही नहीं आती। लेकिन उन पर एक्टिंग न आने का ऐसा ठप्पा लग गया है कि वह कितनी ही अच्छी एक्टिंग क्यों न कर लें,उन पर से यह ठप्पा तब तक नहीं जाने वाला,जब तक उनकी किसी फिल्म को चमत्कारिक सफलता न मिल जाए और मीडिया उनकी यह हवा न बना दे कि इस सफलता का पूरा का पूरा श्रेय अकेले उन्हीं के किसी बदले हुए अंदाज या ढूंढे गए नुस्खे को है। वास्तव में बॉलीवुड की यह खासियत है कि यहां बड़े से बड़ा सफल एक्टर, प्रोड्यूसर या डायरेक्टर हमेशा -हमेशा सिकंदर बना रहे ऐसा नहीं होता। यहां आपको तमाम महान अभिनेताओं की तमाम रुला देने वाली कहानियां सुनने को मिलेंगी कि बाद में बहुत सफ ल हुए किसी कलाकार को शुरू में कितने संघर्षों के बाद इंडस्ट्री में पैर जमाने का मौका मिला था। मगर यहां ऐसे किस्सों की भी कोई कमी नहीं है जो बताते हैं कि किसी स्थापित से स्थापित सुपर स्टार को भी कैसे रिवर्स गेर वाली कहानी का हिस्सा बनना पड़ता है। यहां बड़े-बड़े राजा भी देखते ही देखते कंगाल हो जाते हैं और रंक भी रातों-रातों शहंशाह बन जाते हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि ऐसे तमाम अनुमानों के बाद भी नाकामयाबी की कई कहानियां जब सामने आती हैं तो हमें झकझोर जाती हैं। एक्ट्रेस पूजा डडवाल का तो आपने नाम सुना ही होगा। पिछले दिनों उनकी दयनीयता की ऐसी ही कहानी सोशल मीडिया के जरिये सामने आयी,जो झकझोर देने वाली है। पूजा ने बॉलीवुड में अपना करियर सन 1995 में सलमान खान के साथ फिल्म वीरगति से शुरू किया था। फिल्म इंडस्ट्री में जिस भी एक्ट्रेस का कॅरियर सलमान के साथ शुरू हो,उसे कुछ हुए बिना भी सफलता का एक मुकाम समझा जाता है। पूजा को वीरगति के बाद भी कई फिल्में मिलीं। लेकिन एक समय के बाद उनकी बदकिस्मती का दौर शुरू हो गया। उन्हें फिल्में मिलनी बंद हो गयीं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति लगातार खराब होने लगी। कोढ़ में खाज वाली स्थिति यह हुई कि उनकी तबियत खराब हो गयी और लगातार खराब रहने लगी। धीरे-धीरे स्थिति यह बन गयी कि उनके पास एक भी पैसा न तो इलाज के लिए बचा और न ही पेट भरने के लिए। जैसा कि ऐसे मौकों पर होता है रिश्तेदार और नजदीकी लोग किनारा कर लेते हैं। पूजा के मामले में भी ऐसा हुआ। स्थितियां ये बन गयीं कि मांग कर पेट भरने की नौबत आ गयी। ऐसे में इलाज के बारे में तो सोचना ही बेईमानी हो गया। बहरहाल पूजा ने सलमान खान से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन भला संभव कहां था ? यह तो संयोग की बात है कि सोशल मीडिया में किसी ने पूजा के हालात के बारे में लिखा और यह बात सलमान तक पहुंच गयी। सुनकर सलमान मदद के लिए आगे आए। आज पूजा किसी हद तक बीमारी से उबर चुकी हैं और कई प्रोडक्शन हाउस उन्हें काम देने के लिए भी कहा है।  लेकिन यहां झकझोर देने वाली कहानियां सिर्फ  बदकिस्मती से ही रिश्ता नहीं रखतीं। खुशकिस्मती से भी इनकी खूब रिश्तेदारी होती है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी से लेकर संजय मिश्रा तक के बारे में इस संबंध में हम सबने खूब कहानियां पढ़ रखी हैं कि कैसे एक ने चौकीदारी करते हुए भी हीरो बनने का ख्वाब देखना बंद नहीं किया तो दूसरे ने ढाबे में खाना बनाने में लगे होने के बाद भी किस तरह दिल्ली से मुंबई तक की यात्रा की और आज वह शख्स सहज अभिनय का पर्याय है। लेकिन ऐसी कहानियों का यह कोई पहला दौर नहीं है,बॉलीवुड में हर दौर में ऐसी कहानियां रही हैं। रुला देने वाली भी और ईर्ष्या करने वाली भी। बदरुद्दीन जमालुद्दीन यानी जॉनी वॉकर के बारे में तो सुना ही होगा। फिल्म इंडस्ट्री का उनका सफ र रोमांचित कर देने वाले किसी सपनीले संयोग की तरह शुरू हुआ था। दरअसल वह भी रजनीकांत की तरह बस कंडक्टर हुआ करते थे। एक रोज इन कंडक्टर साब को मशहूर एक्टर बलराज साहनी ने अपनी एक बस यात्रा के दौरान देखा। सवारियों को सुनाई जा रही इनकी मिमिक्री से बलराज साहनी बहुत प्रभावित हुए। बस से उतरने के पहले उन्होंने जानी वाकर साब को अपना नाम बताया, अपने घर का एड्रेस दिया और मिलने के लिए कहा। फि र एक दिन जब जानी वाकर उन तक पहुंच गए तो वह उन्हें लेकर डायरेक्टर गुरुदत्त के पास ले गए और उसी पल से शुरू हो गया जानी वाकर की फिल्मी कामयाबी का सफर। बॉलीवुड में कॉमेडी को नई ऊंचाइयों में पहुंचाने वाले एक्टर अरशद वारसी के संघर्ष की असली कहानी पर तो आपको शायद यकीन ही न हो पर यह बिलकुल सही है कि बॉलीवुड पंहुचने के पहले वह मुंबई की लोकल ट्रेनों में नेल  पोलिश और लिपस्टिक बेचने का काम किया करते थे। वह बॉलीवुड कैसे पहुंचे यह हम भी नहीं जानते, मगर झुग्गियों में रहने वाला और बसों तथा लोकल ट्रेन में नेल पोलिश और लिपस्टिक बेचने वाला बंदा आज अगर बॉलीवुड के पायेदार एक्टरों में शामिल है तो जरूर इसके पीछे एक चमत्कार जैसी लगने वाली कहानी शामिल होगी। संजय मिश्रा की निजी कहानी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। हर किरदार में खुद को बहुत खूबसूरती से ढाल लेने वाले संजय बॉलीवुड में कदम रखने से पहले हरिद्वार के एक ढाबे में काम किया करते थे। यहां वह तरह-तरह के ऑमलेट बनाने के लिए मशहूर थे। बॉलीवुड में कब किसका वक्त पलट जाए कहा नहीं जा सकता।