" स्वाभिमान की खातिर कत्ल" चिन्ताजनक घटनाक्रम

गत दिनों मानसा में एक युवक को जिन्दा जलाने की रौंगटे खड़े करने वाली घटना ने पंजाब में लगातार हो रही ऐसी खौफनाक घटनाओं की ओर एक बार फिर ध्यान खींचा है। चाहे इन सभी घटनाओं की कहानी तो अलग-अलग है, घटनाओं का विवरण भी एक-दूसरे से अलग है। परन्तु स्वाभिमान की खातिर किए गए कत्ल इनका केन्द्र-बिन्दु हैं। इनका लगातार होना बेहद चिन्ताजनक है। इससे यह भी पता चलता है कि आज भी हमारे समाज के एक बड़े हिस्से की मानसिकता सदियों पुरानी बनी हुई है। महिला की आज़ादी और उसके द्वारा समाज में खुलकर विचरने की बात आज भी समाज के एक छोटे से वर्ग तक सीमित है। समाज के अधिकतर हिस्से की सोच आज भी इस पक्ष से पुरातनपंथी ही है।  समय के बीतने से महिला ने समाज में विचरना शुरू किया है, परन्तु अभी भी ऐसा करते हुए उसको सीमाओं में रहना पड़ता है और दुश्वारियों से गुजरना पड़ता है। अभी भी समाज के बड़े हिस्से में प्रेम विवाह को मान्यता नहीं दी जाती। इन सामाजिक रिश्तों में जात-बिरादरी की दीवारें बनकर खड़ी हो जाती हैं। जिस युवक को जलाकर मारा गया उसके भाई का पड़ोस रहती लड़की के साथ दो वर्ष पूर्व प्रेम-विवाह हुआ था, जिसका बदला समय पाकर लड़के के छोटे भाई से लिया गया है। इसी तरह लगभग दो महीने पूर्व जंडियालागुरु के एक गांव में एक घटना घटी थी, जिसमें जबरन एक लड़के का अपहरण कर लिया गया था। इसी तरह तरनतारन के एक गांव में अपनी मज़र्ी से विवाह करवाने वाले एक युवा दम्पति को काबू करके लड़की के रिश्तेदारों ने दोनों की बुरी तरह से पिटाई करने के बाद उनको गोलियों से भून दिया था। ऐसा कुछ किसी एक स्थान पर नहीं, पंजाब के लगभग सभी ज़िलों में हो रहा है। तरनतारन के ही एक अन्य सीमांत गांव में एक प्रेम-विवाह को लेकर लड़के के पिता, बहन और भाई को हमला करके उनके घर में ही मार दिया गया था। चाहे लगातार होती इन घटनाओं के बाद वारदात करने वाले अधिकतर व्यक्ति पकड़े जाते हैं, उनको कानून के अनुसार कड़ी सज़ाएं भी दी जाती हैं, परन्तु यह सिलसिला इसलिए खत्म होता नज़र नहीं आ रहा है, क्योंकि इसका समूचे रूप में जन-मानसिकता से संबंध है। आज हमारा समाज अनेक ही स्तरों पर जी रहा है। हमारे महापुरुषों द्वारा दी जाती शिक्षाओं का भी ज्यादातर असर होता नहीं दिखाई देता। ऐसी घटनाओं का बढ़ना समाज के पिछड़े होने का लक्षण कहा जा सकता है। इस संबंध में सरकार और समाजसेवी संस्थाओं द्वारा लोगों को अधिक जागरूक करने की ज़रूरत होगी। ऐसी जागरूकता की अनुपस्थिति ही आज अधिक लड़ाई-झगड़ों को जन्म देती है। नि:संदेह ऐसे घटनाक्रम को रोकने के लिए और भी कड़े कानून बनने चाहिए और दोषियों को बड़ी सजाओं के भागीदार बनाया जाना चाहिए। परन्तु इसके साथ-साथ सामाजिक स्तर पर हर पक्ष से जागरूकता पैदा करने के लिए भी अभियान चलने चाहिए, जो समूचे समाज को आंचल में लेने में सक्षम हो सकें। ऐसे प्रयासों से ही ऐसे भयानक घटनाक्रमों को नकेल डाली जा सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द