भारतीय राजनीति का अवसान

महाराष्ट्र में लगभग एक महीने से चले आ रहे राजनीतिक नाटक का कुछ अंत होता दिखाई देने लगा है। परन्तु इस समूचे समय के दौरान देश भर की नज़रें इस घटनाक्रम पर लगी रहीं। हम महसूस करते हैं कि इस समय के दौरान सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय पार्टियों का वास्तविक चेहरा सामने आ गया है। कांग्रेस जो स्वयं को हमेशा सिद्धांतों को समर्पित पार्टी कहलाने में गर्व महसूस करती थी, यहां तक गिरावट की ओर चली गई है कि कुछ मंत्री पद प्राप्त करने के लिए कट्टर हिन्दुवादी सिद्धांतों वाली पार्टी शिव सेना के साथ उसने राज्य में सरकार बनाने के लिए समझौता कर लिया है। चाहे वह अभी न्यूनतम साझा कार्यक्रम का ऱाग अलाप रही है परन्तु पहले ही राजनीति में पीछे रह चुकी इस पार्टी की इस मामले पर कमज़ोरी उभर कर सामने आ गई है। 
भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र के चुनावों में सबसे अधिक सीटें मिली थीं। उसने अपनी सहयोगी शिव सेना के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। भाजपा की 105 और शिव सेना की 56 सीटों से दोनों पार्टियों का आंकड़ा 161 बन जाता था। 288 सीटों वाली विधानसभा में इन दोनों का मिलकर बहुमत बन गया था, परन्तु शिव सेना की लालसा कम सीटें मिलने के बावजूद मुख्यमंत्री के पद की रही थी। इस मामले को लेकर दोनों पार्टियों का चुनावों से पहले समझौता नहीं हुआ था। भाजपा ने इस संबंधी अपना रुख स्पष्ट कर दिया था कि वह शिव सेना की मुख्यमंत्री पद की अनुचित बात नहीं मानेगी। राज्यपाल के पास अपनी सरकार न बनाने के बारे में उसने अपना लिखित फैसला दे दिया था। हम इसको भाजपा द्वारा उठाया गया उचित कदम कहते हैं। परन्तु बाद में जिस तरह उसने राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के नेता अजीत पवार के साथ मिल कर बिना देरी किए देवेन्द्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उप-मुख्यमंत्री के पद की राज्यपाल द्वारा शपथ दिलाने का कार्य किया, उसने भाजपा की छवि को बड़ी ठेस पहुंचाई है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की कोई एक विचारधारा नहीं रही। शरद पवार ने अक्सर मौकापरस्ती के खेल को आगे बढ़ाया है। उनका भतीजा अजीत पवार भी इसी रास्ते पर चलता रहा है। भाजपा की पहली फड़नवीस सरकार उनको महा भ्रष्टाचारी कहती रही है। उन पर 70 हज़ार करोड़ रुपए के घोटालों के आरोप हैं। ऐसे व्यक्ति से एकदम समझौता करना और उसके बाद उसको दोष-मुक्त करार देने ने भाजपा की निचले स्तर की सोच को ही प्रकट किया है।
चल रहे इस घटनाक्रम में शिव सेना, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी तथा कांग्रेस को मिली सीटों से विधानसभा में इनका बहुमत बन जाता है, जिसके आधार पर अब फड़नवीस और अजीत पवार द्वारा अपने पदों से इस्तीफे देने के बाद ये तीनों पार्टियां सरकार बनाने का दावा पेश करेंगी। परन्तु इससे यह बात जग-ज़ाहिर हो गई है कि किस तरह सैद्धांतिक राष्ट्रीय पार्टियां राजनीतिक होड़ में अपनी सैद्धांतिक विचारधारा को दांव पर लगाने से गुरेज नहीं करती। आज चाहे इन तीनों पार्टियों का यह कुनबा सरकार बनाने में अपनी जीत समझ रहा हो, परन्तु कल को बिल्कुल अलग-अलग रास्तों पर चलते हुए यह किसी पड़ाव पर पहुंच सकेंगी, इसके बारे में सन्देह बना रहेगा। नि:संदेह हम इस घटनाक्रम को भारतीय राजनीति की नैतिकता में आया बड़ा अवसान समझते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द