कानूनी उलझनों में फंस कर रह गया कोटकपूरा कांड का चालान

जालन्धर, 1 दिसम्बर (मेजर सिंह ) - बेअदबी मामले को लेकर अक्तूबर 2015 में कोटकपूरा में धरने पर बैठी सिख संगत पर पुलिस द्वारा किये गये लाठीचार्ज तथा गोली चलाये जाने की घटना संबंधी जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट आने के बाद 7 अगस्त, 2018 को अजीत सिंह नामक व्यक्ति के गोली लगने के मामले में धारा 307 (इरादा कत्ल) का मुकद्दमा दर्ज किया था और फिर बाद में इस मामले की जांच हेतु अक्तूबर 2018 में विशेष जांच टीम गठित की थी। इस मामले में जांच टीम के एक सदस्य आई.जी. कंवर विजय प्रताप सिंह ने विगत दिनों तीसरा सप्लीमैंटरी चालान पेश किया है पर हैरानी की बात यह है कि 27 मई, 2019 को पेश किये पहले चालान में पूर्व अकाली विधायक मनतार सिंह बराड़, आई.जी. परमराज सिंह उमरानंगल, पूर्व एस.एस.पी. चरनजीत सिंह, एस.एच.ओ. कोटकपूरा गुरदीप सिंह, डी.एस.पी. कोटकपूरा बलजीत सिंह तथा ए.डी.सी.पी. लुधियाना परमजीत सिंह पन्नू आरोपी करार दिये थे और साथ यह बात लिखी थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल थता पुलिस प्रमुख सुमेध सैनी तथा डी.आई.जी. फिरोज़पुर रेंज अमर सिंह चाहल के विरुद्ध जांच चल रही है। इसके बाद 6 जून, 2019 को दूसरा चालान पेश किया गया था और फिर अब पिछले सप्ताह कुंवर विजय प्रताप सिंह ने तीसरा चालान भी पेश कर दिया है। कानूनी तथा अदालती हलकों में इस बात की ज़ोरदार चर्चा है कि पहले चालान में जिन संबंधी जांच का ज़िक्र किया था पर करीब आठ माह जांच के बाद उन सभी व्यक्तियों बारे ज़िक्र तक नहीं किया गया। पेश किये चालान को जांचने से पता चलता है कि पहले चालान में जिन चार व्यक्तियों बारे जांच चल रही होने की बात की थी, नये चालान में उनका कहीं भी ज़िक्र नहीं है। करीब 700 पन्नों के लंबे चालान में तीन बातें बड़ी अहम की गई हैं। पहले चालान में पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सैनी के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में चल रहे कत्ल के मुकद्दमे का 1994 में सी.बी.आई. द्वारा पेश किये चालान की कापी लगई गई है। दूसरा डेरा सिरसा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के विरुद्ध 2007 में धार्मिक बेअदबी के दर्ज मुकद्दमे का विस्तृत चिट्ठा पेश किया गया है। तीसरा तख्त श्री पटना साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह द्वारा जारी चिट्ठी के बयान दर्ज किये गये हैं, जिसमें उन्होंने डेरा प्रमुख की माफी बारे कई सवाल खड़े किये हैं। कानूनी माहिरों का मानना है कि ज़िला संगरूर के गांव छन्ना गुलाब सिंह वाले के अजीत सिंह पर लाठीचार्ज तथा गोलीकांड में घायल होने बारे इरादा कत्ल के आरोपी करार दिये पुलिस अधिकारियों से उक्त मामलों का कोई संबंध नहीं। इस केस की पैरवी कर रहे एडवोकेट शिव करतार सिंह बराड़ का कहना है कि इरादा कत्ल के मामले में जांच अधिकारी द्वारा जिस तरह अनावश्यक कथित तथ्य तथा सबूत जोड़े जा रहे हैं। यह कानूनी प्रक्रिया को उलझाने तथा लकीर से हटाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि तीसरे चालान में बहुत सारी रिपोर्टों तथा तथ्य वही हैं जो पहले चालान में शामिल थे।
रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट चालान में पेश
 जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की बहबल कलां के कोटकपूरा घटनाओं से संबंधित 180 पन्नों की रिपोर्ट से 20 पन्नों की बाद में दी सप्लीमैंट रिपोर्ट तीसरे चालान का हिस्सा बनाई गई है। पहली बात तो आयोग की रिपोर्ट को जांच का हिस्सा बना कर सबूत के रूप में पेश करना हाईकोर्ट की हिदायतों की उल्लंघना है। हाईकोर्ट के जस्टिस राजन गुप्ता ने इसी केस की सुनवाई करते 25 जनवरी को ध्यान में रखते हुए यह उम्मीद रखी जाती है कि सिट आयोग द्वारा निकाले नतीजों में नहीं बहेगी। आयोग की सिफारिशें ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को भविष्य में घटने से रोकने हेतु सरकार का मन तैयार करने हेतु होती हैं। सिट को बिना किसी दबाव के पारदर्शी निष्पक्ष तथा तेज़ी से जांच करनी चाहिए। कानूनी माहिरों का मानना है कि आई.जी. ने हाईकोर्ट के दिशा निर्देश से बाहर जाकर आयोग की रिपोर्ट को धारा 173 अधीन सबूत के रूप में पेश किया है।
आयोग रिपोर्ट पहले ही हो चुकी है रद्द
जस्टिस आयोग के ऊपर ज़िक्र की रिपोर्ट में डी.आई.जी. खटड़ा के नेतृत्व वाली सिट द्वारा बेअदबी मामलों बारे किये खुलासों को जमकर सराहा गया और सिट की कार्रवाई को आगे बढ़ाने की सिफारिश की गई है पर यहां बड़ा आडंबर यह है कि खटड़ा सिट के सभी खुलासे तथा रिपोर्टें देश की ऊपरी जांच एजेंसी रद्द कर चुकी है और उस मामले की क्लोजर रिपोर्ट भी पेश करना कानूनी बचकाने से अधिक कुछ नहीं समझा जा सकता। वर्णनीय है कि मई महीने जब आई.जी. कुंवर विजय प्रताप सिंह ने जब पहले चालान पेश किया था तो सिट के प्रमुख ए.डी.जी.पी. प्रमोद कुमार सहित चार सदस्यों ने सरेआम इस से सहमत होने से इन्कार कर दिया था और अब भी उन अकेले के हस्ताक्षरों में नये चालान पेश किये जा रहे हैं। सिट की कारगुजारी पर भी अहम सवाल उठ रहे हैं। कैप्टन सरकार के गठन पर यह बड़ा मुद्दा बना था, पर तीन वर्ष बीतने के बाद कुछ न होने से कांग्रेस में भी बड़े स्तर पर नाराज़गी तथा निराशा पाई जा रही है।