तलब हो या ताल्लुक, बस गहरा होना चाहिए

दु:ख है अकेलेपन का, मगर ये नाज़ भी है,
भीड़ में अब तक इन्सानों की खोए नहीं हैं हम।
घटना वर्ष 2018 के प्रारम्भ की है, जब डाक्टर हैनरी कीसिंगर ने एक प्रैस कान्फ्रैंस के दौरान यह कहा था। इससे पहले कि मैं डाक्टर हैनरी कीसिंगर की प्रैस कान्फ्रैंस के बारे में बात करूं, मैं इनके बारे में संक्षिप्त में पाठक वर्ग को सूचित करना चाहता हूं...।
* वर्ष 1973 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के नैशनल सिक्योरिटी एडवाईज़र व सैक्रेटरी ऑफ स्टेट रहे।
* राष्ट्रपति ज़ैरेल्ड फोर्ड के साथ सैक्रेटरी आफ स्टेट के पद पर रहे। * वर्ष 1973 को नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
डाक्टर कीसिंगर पूरे विश्व व विश्व के राजनीतिज्ञों को उतनी अच्छी तरह ही जानते हैं, जितना हम अपनी हथेली के पिछले भाग को जानते हैं। 96 वर्ष की आयु के बावजूद भी सम्पूर्ण सक्रिय हैं। विगत कुछ वर्षों की घटनाएं गवाह हैं कि विश्व में जब भी कोई घटना हुई, विश्व के सभी नेताओं ने डाक्टर कीसिंगर को सलाह-
मश्वरे के लिए बुलाया और उनके विचारों को उन समस्याओं से मुकाबला करने के लिए अपनी क्रियाशैली में उचित स्थान दिया। जैसे कि —
* अमरीका में 9/11 के हमले के बाद राष्ट्रपति जार्ज बुश ने सलाह के लिए आमंत्रित किया।
* मध्यपूर्व क्षेत्र में बिगड़ते हालात पर राष्ट्रपति ओबामा से मुलाकात। * यूक्रेन में हालात पर राष्ट्रपति पुतिन से सलाह-मशविरा। * दक्षिण चीन समुद्र हालात पर राष्ट्रपति जिनपिंग से मुलाकात।
ये तो मात्र कुछ घटनाएं हैं जोकि पिछले वर्षों में घटित हुईं और जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व की दशा और दिशा को ही बदल दिया और कुछ में तो हालात विश्व युद्ध की ओर बढ़ते भी लगे। ऐसे हालात में अगर इन प्रभावित राष्ट्रों के राष्ट्र अध्यक्ष किसी व्यक्ति को सलाह व दिशा-निर्देश के लिए बुलाते हैं और इनके विचारों को अपनाने की कोशिश करते हैं, तब सहज ही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि इस व्यक्ति का व्यक्तित्व कितना महान होगा।
अब मुड़ते हैं प्रैस कान्फ्रैंस की ओर—
इस प्रैस कान्फ्रैंस में उनसे एक प्रश्न पूछा गया। सर, विश्व में कहीं भी, जब-जब संकटमय स्थिति आती है, तब समस्त विश्व के नेतागण आपकी ओर देखते हैं और आपसे सलाह लेते हैं कि अमुक परिस्थिति से कैसे निपटा जाए और इतिहास गवाह है कि आपने सदैव अपने विचारों से स्थितियों को अनुकूल करने के लिए विश्व की सहायता की है। एक स्वाभाविक प्रश्न हमारे मन में आया कि आप से पूछा जाए कि जब स्वयं आप कभी असमंजस की स्थिति में होते हैं, तब आप मार्गदर्शन कहां से व किससे लेते हैं? कीसिंगर ने त्वरित उत्तर दिया—
लार्ड कृष्णा व अर्थशास्त्र से हम अगर इस उत्तर की समीक्षा करें, तब हम पाएंगे कि लार्ड कृष्णा यानि भगवान कृष्ण को तो शायद देशवासी जानते होंगे, परन्तु अर्थशास्त्र के बारे में जानने के लिए उन्हें गूगल करना पड़ेगा। इसे हम क्या कहेंगे? एक चीज़ जो हमारे ज़हन में घर कर चुकी है, वह यह है कि अगर हमें आधुनिक, साधारण भाषा में माडर्न बनना है तो हमें विदेशी खान-पन, हाव-भाव, विदेशी साहित्य, विदेशी रीति-रिवाज़ को अपनाना है और हमारी युवा पीढ़ी 
यह कर भी रही है। दु:ख इस बात का है कि हमारे युवा जिनके पीछे भाग रहे हैं, उनके नेता व बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हमारी सभ्यता व साहित्य से मार्गदर्शन ले रहे हैं। आचार्य चाणक्य आज से लगभग दो हज़ार तीन सौ वर्ष पूर्व हुए और अत्यंत विकट परिस्थितियों में उन्होंने एक महान भारत राष्ट्र की स्थापना की। इसी दौरान उन्होंने अर्थ-शास्त्र नामक महान ग्रन्थ लिखा। मौर्य साम्राज्य का संचालन इसी अर्थ-शास्त्र में लिखित विधानों के स्वरूप चलाया गया। आज की तारीख तक मौर्य साम्राज्य को भारतीय इतिहास में स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है। भगवान कृष्ण व आचार्य चाणक्य के बारे में तो हज़ारों वर्षों से लिखा जा रहा है, पर अफसोस इस बात का है कि हमने उन्हें अपनाने की कभी भी कोशिश नहीं की।
यह बात कीसिंगर के बयान की नहीं है कि वे महान थे। मैंने तो मात्र एक उदाहरण स्वरूप यह कहने की कोशिश की है कि हमारे देश में न तो समृद्ध साहित्य की कमी है और न ही विश्व मार्ग दर्शकों की, अगर कमी है तो वह कमी है हमारे में इनके प्रति किसी प्रकार की तलब की व हमारे ताल्लुकात की। 
तलब तो तभी होगी अगर हमारी शिक्षा प्रणाली में इनके बारे में सही व सटीक जानकारी उपलब्ध करवाई जाए, जिससे न केवल हमारे आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होगा बल्कि हम विश्व को कुशल युवा शक्ति व श्रेष्ठ मार्गदर्शक भी दे पाएंगे। अन्यथा हम शब्दों के मायाजाल में तो वर्षों से सहलाए जा रहे हैं और हर चन्द वर्षों के अंतराल पर कुछ नए शब्द गढ़ लिए जाते हैं और हम एक छोटे बच्चे की तरह इन शब्दों के गुब्बारे लेकर झूमते रहते हैं। जब कभी तेज़ हवा का झोंका आता है, गुब्बारे फूट जाते हैं और हम नए गुब्बारे के इंतज़ार में अधर व अंधेरे में खड़े नई सुबह की नहीं नए गुब्बारों का इतज़ार करने लग जाते हैं। आइये दिन में ही शाम का इंतज़ार किए बिना हम नया दिन लाने की कोशिश करें, तलब पैदा करें ताल्लुक खुद ब खुद हो जायेगा।
‘अब रात की दीवार को गिराना है ज़रूरी
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा’
गांव संतोषगढ़, ज़िला ऊना, हि.प्र.
मो. 99175-47493