जानिए  ऋग्वेद  के बारे में

* वेद भारतीय ज्ञान के प्राचीनतम लिखित स्रोतों में मुख्य हैं। ये संस्कृत भाषा में हैं। इनकी संख्या चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद।
* वेदों को अपौरुषेय भी माना जाता है। यह मान्यता भी है कि इनकी रचना देवताओं द्वारा की गई थी। 
* ऋग्वेद में 10 मण्डल एवं सूक्त हैं। 
* ऋग्वेद की रचना की सर्वमान्य तिथि 1500से 1000 ई. पू. मानी गई है।
* ऋग्वेद की रचना सप्त सैन्धव प्रदेश में हुई थी। 
* ऋग्वेद के दूसरे, चौथे, पाँचवें, छठे एवं सातवें मण्डल की रचना क्रमश: ग्रत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, आले भारद्वाज एवं वशिष्ठ ऋषि द्वारा की गई मानी जाती है। इसके प्रथम मण्डल के 5० सूक्त कण्व वंश के किसी ऋषि द्वारा रचे जाने जाते हैं।
* ईरानी ग्रन्थ जेंद अवेस्ता को ऋग्वेद का समानान्तर ग्रन्थ माना जाता है।
* ऋग्वेद से आर्यों के जीवन, धर्म, संस्कृति, समाज, राजनीति एवं अन्य विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है।
* ऋग्वेद में इन्द्र को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देवता माना गया है। 250 सूक्तों में इनकी स्तुति की गई है। यह वर्षा के देवता हैं।
* ऋग्वेद में ‘घौ’ को पृथ्वी का सबसे प्राचीन देवता माना गया है। ये आकाश के देवता हैं। 
* वरुण को जल स्रोतों एवं सरिताओं (नदियों) का देवता माना गया है।
* ऋग्वेद में ‘सूर्य’ को सूर्य देवता के रूप में माना गया है। इनकी माता ‘अदिति‘ और पिता ‘घौ’ माने गये हैं। सूर्य के रथ में आठ घोड़े हैं जिसमें एक ’एतश’ और सातों अन्य को ‘हरित’ कहा जाता है। 
* ऋग्वेद में उषस् (उषा) को सूर्य की प्रेयसी एवं सौन्दर्य की देवी बताया गया है। उसे रात्रि की छोटी बहिन एवं मधोती कहा गया है। यह धन, पुत्र एवं यश देती है तथा ऋतुओं का वितरण करती है।
* ऋग्वेद में ‘सोम’ देवता की स्तुति की गई है। ‘सोम’ एक विशिष्ट वनस्पति भी थी जो मुज्जवान पर्वत पर मिलती थी। सोम रस पीने से शक्ति एवं स्फूर्ति मिलती थी। यह इन्द्र का परम प्रिय पेय था। 
* ऋग्वेद में आर्यों के विवाह का मूल उद्देश्य पुत्र रत्न की प्राप्ति बताया गया है।
* ऋग्वैदिक काल में आर्य अणु, द्रव्य, यदु, तुर्वसु एवं पुरु पांच जनों में वर्गीकृत थे। राजा प्रमुख था और प्रजा विभ् या विश: कही जाती थी।
* ऋग्वेद में दाशराज्ञ या दशराज्ञ युद्ध का उल्लेख है जिसमें राजा सुदास को विजय मिली थी। यह युद्ध परुष्णी (रावी) नदी के तट पर लड़ा गया था।
* ऋग्वैदिक काल में वस्तु-विनिमय प्रणाली मुख्य रूप से प्रचलित थी। उस समय की मुद्रा को ‘निष्क’ कहा जाता था।
* शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द एवं ज्योतिष दो के अंग (वेदांग) माने गये हैं। 
* ऋग्वेद में देवताओं का वर्गीकरण पृथ्वी, अन्तरिक्ष एवं स्वर्गस्थ देवता के रूप में किया गया है। ‘ऋग्वैदिक काल’ में आर्य मूल रूप से प्राकृतिक शक्तियों की देवता रूप में आराधना करते थे। (उर्वशी)

- अजय कुमार गुप्ता