बगवां का प्राचीन मंदिर माता नारदा-शारदा

हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध नगर है नगरोटा। इसके समीप एक गांव पड़ता है बगवां। प्राचीन प्रसिद्ध माता नारदा-शारदा बगवां में स्थित है। नगरोटा ज़िला कांगड़ा में पड़ता है। नगरोटा की सुंदर पहाड़ियों में सुशोभित है यह मंदिर। प्राचीन वृक्षों की छांव के तहत अपनी शक्ति का प्रतीक है यह मंदिर। इसके इर्द-गिर्द बाज़ार हैं। यहां सभी प्रकार की वस्तुएं मिलती हैं। छोटा-सा रेलवे स्टेशन भी है। पठानकोट (ज़िला गुरदासपुर, पंजाब) से बस या ट्रेन से भी जाया जा सकता है। मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर लाल अक्षरों में  माता नारदा-शारदा का नाम सुशोभित है। लगभग तीन कनाल में फैला हुआ है यह प्राचीन मंदिर। नारदा-शारदा को लक्ष्मी-सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। लगभग 250 वर्ष प्राचीन यह मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र है। किसी समय यहां घना जंगल होता था। यात्री इस जंगल से आते-जाते थे। एक दिन यात्रियों ने देखा कि एक ऊंचे पर्वत (पत्थर) के ऊपर बच्चे के रूप में एक कन्या बैठी है। यहां के गोरेवाल परिवार के बुजुर्ग को सपना आया कि इस स्थान पर माता नारदा-शारदा का मंदिर बनवाया जाए। गोरेवाल परिवार ने श्रद्धा के अनुसार यहां मंदिर बनवा दिया। जब छत का निर्माण किया जाता तो छत टिक न पाती। कई बार छत डालने की कोशिश की गई, परन्तु गिर जाती। यह मंदिर छत के बिना है। किसी समय यहां लाहौर (पाकिस्तान) से भी हर वर्ष श्रद्धालु आते थे। सरकारी तौर पर भी बहुत बड़ा मेला लगता था। आजकल भी 26-27 मार्च को भारी मेला लगता है। किसी समय यहां पशुओं का भारी मेला भी लगता था। पशुओं की पूजा की जाती थी। दूर-दूर से घोड़े, गाय, भैंसें आदि मेले में लाई जाती थीं। माता नारदा-शारदा की स्मृति में यहां पर धूमधाम से मेला मनाया जाता है। मंदिर में माता नारदा-शारदा की प्रतिमा भी सुशोभित है। छोटे-छोटे मंदिरनुमा कमरों में मूर्तियां शोभनीय हैं। लोहे के जंगलों में पशुओं के स्टैचू बनाए हुए हैं जो अच्छे लगते हैं। श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के अनुसार प्रसाद आदि चढ़ाते हैं। कृषि वाला क्षेत्र होने की वजह से किसान लोग मंदिर की आस्था से प्रसाद आदि चढ़ाते हैं और आत्मिक तौर पर जुड़े हुए हैं। किसान लोग फसल भी चढ़ाते हैं। इस क्षेत्र की ओर ‘वट’ वृक्ष बहुत होते हैं जो आज भी मौजूद हैं। इन वृक्षों की बहुत महानता मानी जाती है। मंदिरों में सुबह-शाम पाठ-पूजा होती है। श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर तरह-तरह के चढ़ावे चढ़ाते हैं। माता रानी को प्रसन्न करके उस का गुणगान करते हैं। क्षेत्र निवासी शुभ अवसरों तथा अन्य पर्व-त्यौहारों के समय भी आशीर्वाद लेने आते हैं। यह मंदिर विलक्षण महत्त्व रखता है।

-बलविन्द्र ‘बालम’