आइये, इस गलियारे की खैर मांगें

डेरा बाबा नानक से पाकिस्तान की ओर से करतारपुर के लिए गलियारा खोला जाना एक ऐसा ऐतिहासिक कदम है, जिसको हमेशा याद रखा जायेगा। अपने महान गुरु की धरती से कुछ मीलों का विछोड़ा हमेशा हृदय को आहत करने वाला रहा है। सिख समुदाय इसके लिए लगातार अरदास भी करता रहा और उसको दूर से निहारता भी रहा। अंतत: ये अरदासें पूरी हुईं। इसके लिए जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बहुत बड़ा दिल दिखाया, वहीं भारत सरकार ने भी पूरी दरियादिली का प्रगटावा किया। एक महीना पहले दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा इस गलियारे को शुरू करना इसके महत्व को दर्शाता है। 
श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी आयु के अंतिम वर्ष यहां बिताए थे। उन्होंने यहां हाथों से कृषि कार्य किये और श्रम करने, बांट कर खाने और नाम जपने की सिख विचारधारा को यहीं से आगे बढ़ाया। इस गलियारे से गुजरते हुए, गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करते हुए, अपने गुरु की वाणी हृदय में बसाते हुए श्रद्धालु पूरी तरह पसीज जाते हैं। गुरु जी की यादों को अपने हृदय में बसाते हैं, परन्तु गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर के आसपास को जिस तरह पाकिस्तान की सरकार ने खूबसूरत और आलीशान बनाया है, उसके लिए उस सरकार के प्रति दिल आभार से भर जाता है। गलियारा खोलने का फैसला जिस तेज़ी से लिया गया था, उसी तेज़ी से इसके कॉम्पलैक्स का निर्माण भी किया गया। इससे ही इस कार्य के लिए सरकार की समर्पण भावना का एहसास हो जाता है। अभी शुरुआत है, बहुत कुछ और होना शेष है। समय और अनुभव से इस प्रोजैक्ट के पूरे संकल्प की पूर्ति होने की उम्मीद है। परन्तु दरबार साहिब को दर्शनों के लिए भारत से जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या उतनी नहीं है, जितनी उम्मीद की जाती थी। महीने भर में सिर्फ 17,000 के लगभग श्रद्धालुओं का दर्शनों के लिए पहुंचना उम्मीद से कम है। इसके कारणों के बारे में जानकर और दरपेश मुश्किलों को समझकर गलियारे के मार्ग से करतारपुर जाने की प्रक्रिया को आसान बनाया जाना बेहद ज़रूरी है। वहां जाने की अनुमति के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने की प्रक्रिया बहुत पेचीदा है। आम व्यक्ति को इसमें मुश्किलें दिखाई देती हैं। ई.टी.ए. फार्म प्राप्त करने के बारे में अधिकतर लोगों को जानकारी ही नहीं है। रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद भी यदि चार दिन पहले फार्म नहीं मिलता तो श्रद्धालुओं की उम्मीद अधूरी रह जाने का संदेह बन जाता है। पासपोर्ट की शर्त होने के कारण अधिकतर श्रद्धालु वहां जाने से असमर्थ हैं और जिन श्रद्धालुओं के पास पासपोर्ट होते हैं, उनको इस बात का संदेह रहता है कि इनके भीतर की जानकारी देने से पाकिस्तान जाने की अनुमति मिलने के बाद कहीं अन्य देशों में इस संबंध में प्रश्न-चिन्ह तो नहीं उठाये जाएंगे। ज्यादातर श्रद्धालु ऐसी रुकावटों के बिना ही दर्शनों के लिए चाहत रखते हैं। दोनों सरकारों को इस गलियारे संबंधी शर्तों को काफी सीमा तक नरम करने की ज़रूरत होगी, ताकि बिना ज्यादा रोक-टोक के श्रद्धालु श्री करतारपुर साहिब नत्मस्तक हो सकें। 
दूसरे रास्ते के माध्यम से श्री दरबार साहिब करतारपुर आने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को थोड़ी-सी प्रवेश फीस देने के अलावा कोई रोक-टोक नहीं है, जिस कारण अब तक वहां आते पाक नागरिकों की संख्या भारतीय नागरिकों से अधिक है। इनमें मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। दोनों देशों के नागरिक खुले रूप में वहां एक-दूसरे को मिल सकते हैं। अब तक यही प्रभाव मिलता है कि पाकिस्तानी नागरिकों के दिलों में भारतीयों के लिए अधिक स्नेह और खलूस है। नि:संदेह यह आपसी मेल-मिलाप कल को दोस्ती का पुल बनने की सम्भावना रखता है। यदि ऐसे कुछ की सम्भावना प्रकट हो जाती है तो यह हमारे इस क्षेत्र के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण बात होगी। दोनों देशों के नागरिकों का मेल-मिलाप एक ऐसे वातावरण को जन्म दे सकता है, जो भविष्य में इस क्षेत्र की नियति को बदलने की सम्भावना रखता है। महान गुरु के आशीर्वाद से ऐसे माहौल की सम्भावना बन सकती है, जो बिछुड़ों को मिलाने वाला साबित हो जिससे आपसी आदान-प्रदान की और भी बड़ी सम्भावनाएं प्रकट हो जाएं। आइये, इस गलियारे की लम्बी उम्र के लिए खैर मांगें।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द