क्या रुख अपनाएगी अकाली राजनीति की नई हलचल ?

पंजाब की राजनीति खास तौर पर सिख राजनीति इस समय बड़ी करवटें ले रही है। हालांकि जो कुछ हो रहा है उसकी रफ्तार बहुत धीमी प्रतीत होती है, परन्तु इसके परिणाम बहुत दूरगामी होने के आसार हैं। हालांकि ज्यादातर आसार यही प्रतीत होते हैं कि 14 दिसम्बर को अमृतसर में होने वाले अकाली दल (बादल) के डैलीगेट इजलास में बादल परिवार के खिलाफ शायद ही कोई बात करे। प्रतीत तो यही हो रहा है कि वहां सर्व-सम्मति बन जाएगी और बादल परिवार ही बदस्तूर अकाली दल (बादल) का सर्वे-सर्वा बना रहेगा। परन्तु कुछ विरोधी क्षेत्र ऐसे संकेत भी दे रहे हैं कि अकाली दल (बादल) के डैलीगेट इजलास में एक-दो प्रमुख नेता यह बात कह सकते हैं कि अकाली दल छोड़ कर गए या नाराज़ नेताओं को मनाने के प्रयास किए जाएं और इस उद्देश्य के लिए कोई कमेटी आदि बना दी जाए। परन्तु अकाली दल और बादल परिवार की मजबूत पकड़ के चलते इसके आसार बहुत ज्यादा नज़र नहीं आते। दूसरी तरफ अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा, रवि इंद्र सिंह, टकसाली अकाली दल के नेता और पंजाब के कुछ अन्य सिख समर्थक संगठन 14 दिसम्बर को अमृतसर में ही अकाली दल के 99वें स्थापना दिवस और अकाली दल की शताब्दी मनाने के लिए तैयारियां करने के नाम पर एक कनवैंशन बुला चुके हैं। हालांकि यह स्पष्ट है कि इस कनवैंशन में किसी अलग पार्टी या नए अकाली दल का ऐलान नहीं किया जाएगा, परन्तु यह स्पष्ट है कि इस कनवैंशन के बाद एक स्पष्ट रेखा खींची जाएगी और अकाली दल (बादल) के लिए नई चुनौतियों का दौर शुरू हो जाएगा। इस अवसर पर चाहे 14 दिसम्बर, 1920 को अकाली दल के अस्तित्व में आने की शताब्दी मनाने के लिए कार्यक्रम दिया जाएगा, परन्तु इस अवसर पर यहां उपस्थित गुटों द्वारा पंथक और पंजाब के मामलों पर एक साथ चलने का प्रण भी किया जा सकता है। इस सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस अवसर पर किसी कमेटी का ऐलान किया जाए, जो अकाली दल के शताब्दी समारोहों को मनाने के लिए कार्यक्रम तैयार करे। परन्तु एक बात स्पष्ट है कि इसका नेतृत्व सुखदेव सिंह ढींडसा द्वारा किए जाने पर आम सहमति बन चुकी है। यह कनवैंशन वर्ष भर पंजाब के शहरों और प्रमुख गांवों में पंथक कनवैंशनें और कांफ्रैंसें करने का कार्यक्रम बनाएगी, जिसमें मुख्य तौर पर अकाली दल का पंथक स्वरूप बहाल करने, अकाली दल में लोकतंत्र की बहाली, सिख संस्थाओं की पारिवारिक गुलामी, बरगाड़ी, बहिबल कलां आदि कांडों के दोषियों को सज़ाएं दिलाने के मुद्दे भी शामिल होंगे। 
असली मुकाबला शिरोमणि कमेटी चुनावों में ?
चाहे सुखदेव सिंह ढींडसा अभी भी कह रहे हैं कि वह अकाली हैं, अकाली ही रहेंगे और उनके द्वारा बुलाई कनवैंशन का मुख्य उद्देश्य भी उन मुद्दों पर विचार करना है जिस कारण अकाली दल इतना कमज़ोर हुआ है। पार्टी की प्रतिष्ठा गिरी है, परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार यह नया गठबंधन अब से ही प्रमुख तौर पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों की तैयारी में लग जाएगा। इस बात की सम्भावना बहुत ज्यादा है कि इस नए गठबंधन का बादल अकाली दल के साथ पहला मुकाबला शिरोमणि कमेटी के चुनावों में होगा। अकाली दल (बादल) की इस मामले में एक मजबूरी होगी कि वह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में ज्यादा नए उम्मीदवार नहीं उतार सकेगा, क्योंकि पुराने जीते उम्मीदवारों के ज्यादा टिकट काटे जाने से पार्टी छोड़ने वालों की लाइनें लग सकती हैं, परन्तु पुराने सदस्य गत वर्षों में हुई घटनाओं में अपना प्रभाव काफी सीमा तक गंवा चुके हैं। जबकि ढींडसा के नेतृत्व वाला गुट हर शिरोमणि कमेटी क्षेत्र में नए उम्मीदवार उतारने की कोशिश करेगा। ज्यादा सम्भावना इस बात की भी है कि ढींडसा के नेतृत्व में वर्ष भर की जाने वाली कांफ्रैंसें शिरोमणि कमेटी के क्षेत्रों के अनुसार ही की जाएं और निचले स्तर पर एक नया धार्मिक नेतृत्व उभारने की कोशिश की जाए। 
भाजपा की भूमिका महत्त्वपूर्ण
राजनीतिक क्षेत्रों में बहुत चर्चा है कि अकाली दल की खुल कर शुरू होने वाली नई लड़ाई में बहुत सारे वरिष्ठ अकाली नेता जो इस समय सुखबीर सिंह बादल के साथ तो हैं, परन्तु किसी न किसी कारण नाराज़ भी हैं। वह तब तक मुंह नहीं खोलेंगे जब तक उनको दूसरे गुट का पलड़ा भारी होता नज़र नहीं आएगा। इस स्थिति में भाजपा की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाएगी, क्योंकि प्रकाश सिंह बादल ने 1984 की घटनाओं के बाद अकाली मानसिकता ऐसी बना दी है कि भाजपा चाहे अकाली दल, पंजाब या सिखों को कुछ दे या न दे, परन्तु अकाली कांग्रेस के साथ कभी नहीं जाएंगे। परन्तु अकेले लड़ कर अकाली पंजाब में सरकार बनाने में सक्षम भी नहीं हो सकते। हालांकि बादल परिवार और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के बीच मिली-भगत के झूठे-सच्चे आरोप भी लगते ही रहते हैं, परन्तु यह साफ है कि अकाली दल राष्ट्रीय राजनीति में अपने राज्यों में अधिक अधिकार देने, अल्प-संख्यकों के हितों की रक्षा करना आदि मुद्दों के विपरीत जाकर भी भाजपा के साथ ही खड़ा होता रहा है। अब जब भाजपा केन्द्र में सर्व-शक्तिमान वाली भूमिका में आ चुकी है, तो यह स्पष्ट है कि भाजपा का अकाली दल के दोनों गुटों के प्रति रवैया यह फैसला करने में विशेष भूमिका निभाएगा कि कौन-सा अकाली गुट सफल होगा। जानकार क्षेत्रों का कहना है कि भाजपा सुखबीर सिंह बादल के साथ खड़ी रहती है या ढींडसा के साथ जाती है। इसका संकेत इस बात से ही मिल जाएगा कि केन्द्र सरकार शिरोमणि कमेटी चुनाव शीघ्र करवाने का फैसला करती है या बादल दल की शिरोमणि कमेटी पर हकूमत बनाये रखने के लिए। वह चुनाव करवाने से टाल-मटोल रखती है। 

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