कब रुकेगा अंध-श्रद्धा का कारोबार ?

जैसा कि हम सभी जानते हैं हमारा देश एक धर्म-निरपेक्ष देश है। यहां प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को अपनाने का अधिकार है। कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे धर्म की निंदा नहीं कर सकता। यहां विभिन्न मत एवं सम्प्रदाओं को मानने वाले भी असंख्य लोग हैं। इस बात पर तो कोई किन्तु-परन्तु नहीं करता पर अफसोस तब होता है जब लोग अंध-श्रद्धा में फं स अपना जीवन तक बर्बाद कर बैठते हैं। अपनी जिंदगी, मान-सम्मान तक दांव पर लगाकर सब कुछ गंवा देते हैं। जब इन लोगों को होश आती है तब पश्चाताप के सिवाय कुछ भी हाथ में नहीं आता। कौन है इस त्रासदी का असली जिम्मेदार? किसी पर विश्वास व श्रद्धा रखना कोई बुरी बात तो नहीं पर किसी पर अंध-श्रद्धा रखना कहां तक तर्क संगत है? इस मामले में हालात बद से बदतर हैं। आज की तिथि में हमारे समाज में कथित धर्म-गुरुओं के प्रति अंध-श्रद्धा इतनी बढ़ चुकी है कि लोग सब कुछ जानते हुए भी यह स्वीकार करने को तैयार ही नहीं कि यह सब धोखा है, फ रेब है। आज के तथाकथित संतों ने अपने-अपने सम्प्रदाय-मत बना रखे हैं। धार्मिक प्रचार के बहाने जनता को लूटना साधारण-सी बात हो गई है। चूंकि हमारे देश में अनेक परम्पराएं प्रचलित हैं तो कई बार अंध-श्रद्धा धर्म का अंग न होने के बावजूद ढोंगी-पाखंडी लोगों द्वारा उत्पन्न कर दी जाती हैं। सुनी-सुनाई बातों पर तुरन्त विश्वास कर लेना बुद्धिमता का परिचय तो नहीं है। अंध-श्रद्धा का कारोबार फल-फूल रहा है। व्यावसायिकता के कारण ही रेटिंग बढ़ाने के लिए अंधश्रद्धा के मामले का अधिकाधिक प्रचार करता ही नजर आता है।  गत कुछेक वर्षों में एक के बाद एक कई धर्मगुरु विवादों में फंसते जा रहे हैं। काबिलेजिक्र है कि जब तक सच्चे संत-फकीर इस पृथ्वी पर अवतरित नहीं होते तब तक अंध-श्रद्धा का व्यापार नहीं थमेगा। अन्तत: यही कहा जा सकता है की शीघ्र अति-शीघ्र अंधविश्वास के व्यवसाय पर अंकुश लगे। यह तभी संभव होगा जब शिक्षा व तर्क द्वारा जनता को जागृत किया जाएगा। समय की मुख्य मांग है कि बुद्धिजीवी वर्ग इस कारोबार के विरुद्ध जन-जागरण अभियान चलाए। 

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