कैसे बनेगा लड़कियों के लिए बेहतर समाज

समय के साथ इतना आगे बढ़ने के बाद भी देश में लड़कियों के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़, एसिड अटैक जैसी न जाने कितनी घटनाएं रोज़ होती रहती हैं। अधिकतर मामलों में आरोपी युवा वर्ग के होते हैं। इन घटनाओं के कारण ही एक बहस तेज़ी से समाज के सामने उभर रही है कि क्या लड़कों की परवरिश में कोई कमी रह रही है या लड़कों का मन किन्हीं अनजान चीजों से प्रभावित हो रहा है, जिसके कारण ऐसी घटनाएं तेज़ी से सामने आ रही हैं? हमारा आने वाला समाज लड़कियों के लिए ज्यादा बेहतर, ज्यादा सुरक्षित और ज्यादा संवेदनशील कैसे हो, इसके लिए हमें कुछ करना होगा।
बच्चों के सामने न झगड़ें
पति-पत्नी के बीच छोटी-मोटी तकरार हर घर में होती है लेकिन छोटे बच्चों का दिमाग बेहद संवेदनशील होता है, इसलिए उनके सामने कभी भी पति-पत्नी में झगड़ा नहीं होना चाहिए। घर में जब बच्चा ये देखता है कि मां-बाप लड़ रहे हैं और उसमें जीत उसकी हो रही है, जो तेज बोल रहा है या चिल्लाकर गुस्सा जाहिर कर रहा है, तो उनके दिमाग पर इसका गलत असर पड़ता है। उनके दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि तेज़ बोलने और गुस्सा करने से अपनी बातें मनवाई जा सकती हैं। इसके अलावा छोटे शहरों के घरों में लड़ाई होने पर अंत में पुरुष की ही जीत होती है और महिलाओं को झुकना पड़ता है। बच्चा यदि अपने आसपास ऐसी घटनाएं कई बार देखता है, तो धीरे-धीरे उसके मन में यह बात घर करने लगती है कि महिलाएं कमजोर होती हैं और पुरुष उन्हें गुस्से से दबा सकते हैं। इसलिए बच्चों के सामने झगड़ा या मारपीट नहीं होना चाहिए।
लड़कों को भी सिखाएं क्या ठीक है, क्या है गलत
आमतौर पर लोग घर की लड़कियों को ही बचपन से गुड टच और बैड टच के बारे में समझाते हैं लेकिन यह बात लड़कों को भी समझानी बहुत ज़रूरी होती है। दरअसल जब आप लड़कों को गुड टच, बैड टच आदि के बारे में बताते हैं तो उन्हें यह भी धीरे-धीरे समझ आना शुरू हो जाता है कि दरअसल बैड टच सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि हर किसी के लिए बुरा है। हर किसी को इससे तकलीफ होती है। इस तरह बड़े होने पर कम से कम वह दूसरों के बैड टच का भी ख्याल रख सकते हैं।
लड़के-लड़की का भेदभाव मिटाएं
भारतीय समाज में बचपन से ही लड़के और लड़कियों को आपस में घुलने-मिलने देने के बजाय दूर रखने की कोशिश की जाती है। इसी के कारण लड़के और लड़कियों के खेल अलग-अलग किए गए हैं, उनके घूमने फिरने और दोस्ती करने का दायरा भी अलग रखा गया है। यही कारण है कि बड़े होने के तक लड़के-लड़कियों के बारे में न तो ठीक से जान पाते हैं और न ही समझ पाते हैं। इसीलिए वह अपने दिमाग में लड़कियों को लेकर तरह-तरह की फैंटेसी बनाने लगते हैं, इस फैंटेसी को आजकल इंटरनेट की मदद सबसे ज्यादा मिल रही है और यह लड़कों के सिर चढ़कर बोल रहा है। वहीं अगर आप बचपन से ही अपने बच्चे को लड़कियों से घुलने-मिलने, साथ खेलने और दोस्ती करने की इजाज़त देते हैं, तो वह लड़कियों को अपने से अलग नहीं समझेंगे। उन्हें लगेगा कि लड़कों जैसी ताकत लड़कियों में भी होती है तभी वह साथ में खेलती है। ऐसी परवरिश से संभव है कि बड़े होकर वह एक-दूसरे को समझें और एक-दूसरे की मौजूदगी को नॉर्मल समझें।
लड़के-लड़कियां एक समान-यह समझाना ज़रूरी
आमतौर पर 12 से 13 साल की उम्र से बच्चों को किशोर यानी टीनेजर कहते हैं। अगर सही परवरिश की जाए, तो इस उम्र तक बच्चे काफी समझकर हो जाते हैं। कुछ बच्चे, जिनकी परवरिश ठीक नहीं होती है या जो किसी खास डिसऑर्डर का शिकार होते हैं, वह इसी उम्र में सबसे ज्यादा हिंसक और गुस्सैल हो जाते हैं। मां-बाप को अपने 12 से 18 साल के बच्चे को कुछ बातें ज़रूर समझानी चाहिए। बच्चे को प्यार की पवित्रता और रिश्तों का महत्व बताएं ताकि वह अपने से बड़ों के आपसी रिश्तों को समझ सकें। बच्चे को इस बारे में भी बताएं कि किसी भी व्यक्ति के शरीर के आसपास एक हाथ के बराबर दूरी वाला दायरा उसका पर्सनल स्पेस होता है, जिसमें जाने से पहले उस व्यक्ति से पूछना बहुत ज़रूरी है। रोजमर्रा की बहुत सारी बातें ऐसी हैं, जिन पर बेटे से खुलकर बात करनी चाहिए। जहां भी यह लगता है कि आपका बेटा लड़कियों के लिए कोई खास मानसिकता बना रहा है, तो उसे तुरंत टोकें और समझाएं। इसी तरह अभिभावक अपने बेटों को एहसास दिला सकते हैं कि लड़के और लड़कियां बराबर होते हैं।
5 से 12 साल की उम्र के बच्चों पर रखें नज़र
आमतौर पर 5 साल की उम्र के बाद बच्चे चीजों को अपनी स्वतंत्र दृष्टि से देखना शुरू कर देते हैं। 5 साल से 12 साल की उम्र के बच्चों पर विशेष नज़र रखनी चाहिए। ये उम्र एक ऐसी उम्र होती है जब बच्चे जिद्दी बन जाते हैं और अपने मन का काम करना चाहते हैं। ऐसे में बच्चे गलत संगत का शिकार हो जाते हैं। आपको अपने बच्चे को दूसरों के दुख और तकलीफ को महसूस करना भी सिखाना चाहिए जो बच्चे सामने वाले की तकलीफ, दर्द और दुख को समझकर उस पर इमोशनल हो सकते हैं, वह कभी जान-बूझकर किसी के साथ गलत नहीं करेंगे।