भगवान को भोग क्यों लगाते हैं ?

भारतीय संस्कृति की प्राचीन परंपरा है भोजन से पहले भगवान को भोग लगाने की। भोग लगाने के भाव में जाएं तो यह कहा जा सकता है कि यह एक प्रकार से ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है। गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, जो तुम्हारे पास है, उसे तुम भक्तिपूर्वक समर्पित करो। मैं तुम्हारे द्वारा समर्पित वस्तु को स्वीकार करूंगा। मनुष्य के लिए जीवन चलाने वाली यह वस्तु किसी चमत्कार से कम नहीं। भोजन जिस तरह मनुष्य के पास पहुंचता है, उसमें भी भगवान की अनुकंपा होती है। कम से कम ईश्वर पर विश्वास करने वाला व्यक्ति तो इस बात को अच्छी तरह समझता ही है। लोग यह जानते हैं कि भगवान कभी भोग ग्रहण करने नहीं आते, न प्रत्यक्ष और न अप्रत्यक्ष, फिर भी उनका विश्वास है कि वे भगवान को खिला रहे हैं। भगवान अन्न का भूखा नहीं, भाव का भूखा है। मनुष्य सुख-शांति प्राप्ति तथा अपने विकास के लिए सदा प्रयासरत रहा है। इसके लिए जो प्रयास उसकी सामर्थ्य के अनुकूल हैं, वह तो करता ही है किंतु कुछ ऐसे भी उपाय हैं, जो उसकी सामर्थ्य से बाहर हैं। इनके लिए वह अदृश्य सामर्थ्यवान शक्ति से सहयोग लेने का प्रयास करता है। यज्ञ, हवन, पूजा और अन्न ग्रहण करने से पहले भगवान को नैवेद्य एवं भोग अर्पण की शुरुआत यहीं से है। ‘शतपत ब्राह्मण‘ ग्रंथ में यज्ञ को साक्षात भगवान का स्वरूप कहा गया है। यज्ञ में यजमान सर्वश्रेष्ठ वस्तुएं हृवन से अर्पण कर देव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है कि जीवन रूपी अन्न उसे मिलता रहे। शास्त्रों में विधान है कि यज्ञ में भोजन यजमान पहले दूसरों को खिला कर ही करेंगे। वेदों के अनुसार यज्ञ में हृविष्यान्न और नैवेद्य समर्पित करने से व्यक्ति देव ऋण से मुक्त होता है। प्राचीन समय में यह नैवेद्य (भोग) अग्नि में आहुति रूप में ही दिया जाता था।  आज यह प्रक्रि या सरल हो गई है और व्यक्ति जल छिड़क कर और आंखें बंद कर नैवेद्य अर्पण करता है। हालांकि आज भी विशेष पर्वोत्सव पर आने वाले शास्त्राज्ञ, पंडित अग्नि पर मंत्रोपचार के साथ नैवेद्य अर्पण करने के बाद ही भोजन करते हैं। कैसे लगाते हैं भोग  भोग लगाने के लिए भोजन एवं जल पहले अग्नि के समक्ष रखें। फिर देवाें का आह्वान करने के लिए जल छिड़कें। तैयार सभी व्यंजनों से थोड़ा-थोड़ा हिस्सा अग्नि देव को मंत्रोच्चार के साथ स्मरण कर समर्पित करें। अंत में देव आचमन के लिए मंत्रोच्चार से पुन: जल छिड़कें और हाथ जोड़ कर नमन करें। दैनिक भोजनचर्या में भोग लगाने के लिए अग्नि देव की व्यवस्था संभव नहीं हो पाती। इसमें देव आह्वान, स्मरण मंत्र तथा आचमन  क्रिया के साथ भोग थाली में ही रख दिया जाता है। भोजन के अंत में भोग का यह अंश गाय को दिया जाना चाहिए। (उर्वशी)

-नरेंद्र देवांगन