बढ़ते चले जा रहे हैं अमानुषिक व्यवहार

दिल्ली के अत्यंत शर्मनाक निर्भया कांड के सात बाद हैदराबाद की एक महिला पशु चिकित्सक घटिया पुरुषों की दानवता का शिकार हो गई। बेचारी पशु चिकित्सक पशुओं की बीमारियों का उपचार कर रही थी, परन्तु आदमी की खाल में छिपे भेड़ियों की दहशत नहीं जानती थी। पुलिस के अनुसार वे दरिंदे दुष्कर्म के बाद मृत शरीर के साथ भी कई बार कुकृत्य करते रहे। पहली घटना के फलस्वरूप कानून सशक्त किए गए थे, परन्तु पाशविक घटनाओं पर काबू नहीं पाया जा सका। सामूहिक दुष्कर्म की संख्या बढ़ती गई। अमानुषिक व्यवहार करने वालों ने अपराध करते हुए शायद ही सोचा कि अपराध की कितनी सज़ा होगी। दुष्कर्म उनके दिमागों में इतना हावी होता है। महिलाओं की असुरक्षा लगातार बढ़ती चली गई। क्या हमारा देश, संविधान, कानूनी सिलसिला, पुलिस, समाज का भय महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण बन पाया? उत्तर इन्कार में होगा। दुष्कर्म के बाद महिला डाक्टर को जला दिया गया। ऐसी घिनौनी खबरें बार-बार आ रही हैं। जो महिला के जीने के अधिकार को सिरे से कुचल रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) की 2017 की रिपोर्ट जारी हुई है, जिससे पता चलता है कि हर 16 मिनट में एक महिला से दुष्कर्म होता है जो किसी भी अर्थ में क्रूरतम व्यवहार से कम नहीं मिलता। यह नज़रिया है उनके प्रति जो ज़रूरी है, बहन है, बेटी है, शिक्षिका है, डाक्टर है, कानूनविद है, खेल के मैदान में वैश्विक स्तर पर देश के लिए सम्मान बटोर लाती है। क्या हम बेटों-बेटियों के पालन-पोषण में एक जैसा व्यवहार करते हैं? क्या हमारा पूरा समाज भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं दे रहा? क्या राजनीति में उन्हें पूरा सम्मान मिल रहा है? लोकसभा  तक उन्हें ‘निर्बला’ कहा जाना कहां तक ठीक है? पिछले दिनों देश के कुछ बड़े शहरों में सर्वेक्षण किया गया। सामाजिक संस्था (सेफ्टी पिन) ने मध्य प्रदेश के भोपाल, ग्वालियर और राजस्थान के जयपुर में विस्तृत सर्वेक्षण किया, जिसके परिणाम घातक हैं, गिरावट का संदेश देते हैं। इसके अनुसार 90 प्रतिशत के लगभग महिलाएं सुनसान जगहों पर खुद को सुरक्षित नहीं समझती। 57 प्रतिशत छात्राओं और 30 प्रतिशत अविवाहित महिलाओं को यौन हिंसा और छेड़छाड़ का सामना करना पड़ता है। निर्भया कांड के बाद 7 वर्ष में देश भर में 2.34 लाख दुष्कर्म, एक भी दोषी फांसी पर नहीं लटकाया गया। हैदराबाद के सामूहिक दुष्कर्म के बाद सड़क से संसद तक तनाव और गुस्सा देखा गया। राज्यसभा में आक्रोशित सांसदों ने दुष्कर्मियों को शीघ्र फांसी देने, भीड़ के हाथों लिंचिंग और नपंसुक बनाने जैसी मांगें रखीं। उप-राष्ट्रपति ने कहा- दुष्कर्म रोकने के लिए कानूनों की जगह राजनीतिक इच्छा शक्ति ज़रूरी है। सांसदों ने वर्षों पुराने निर्भया कांड का ज़िक्र करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चारों आरोपियों को फांसी नहीं दी जा सकी। अनेक महिला संगठन कह रहे हैं कि दुष्कर्म से संबंधित मामलों की जितनी त्वरित गति से पीड़ित को न्याय मिलना चाहिए, नहीं मिल पा रहा। दुष्कर्म पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए शीघ्रता से हर कदम उठाना ज़रूरी होगा। माता-पिता, परिवार, धर्म गुरु, शिक्षक सभी सामाजिक संगठनों और ज़िम्मेदार नागरिकों को इस नई बीमारी की रोकथाम के लिए नैतिकता को दोबारा से प्रशिक्षित करना होगा। हमें हर सूरत में इस बीमारी से मुक्ति पानी है।