रिश्तों की बदलती परिभाषा

रिश्ते समाज की वह मजबूत बुनियाद हैं, जो मनुष्य को जन्म लेते ही एक अटूट बंधन में बांध देते हैं। वैसे तो समाज में कई तरह के रिश्ते हैं। खासतौर पर एक इन्सान का दूसरे इन्सान से इन्सानियत का रिश्ता तो होता ही है, मगर कुछ रिश्ते सबसे पवित्र, गहरे और उत्तम माने जाते हैं जैसे कि माता-पिता का, भाई-बहन का, मां-बेटे का, मित्रता आदि का। परन्तु आधुनिक युग में इन गहरे रिश्तों की भी परिभाषा बहुत तेज़ी से बदलती जा रही है। मनुष्य के लिए पैसा और रुतबा सबसे अहम होता जा रहा है, जोकि आपसी प्यार भरे रिश्तों को फीका बना रहा है। हम कुछ समय पीछे देखें (लगभग 20 साल पीछे) तो देखेंगे कितना बदलाव आ गया है, पहले कितने लोग इकट्ठे संयुक्त परिवार में रहते थे और रहना चाहते थे मगर आज के समय में  ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है। आधुनिक तेज़ रफ्तार के समय में बच्चे अपने माता-पिता को भी भूलते जा रहे हैं। हम लगभग हर रोज़ कहीं न कहीं से कोई ऐसी खबर सुनते ही हैं कि बच्चों ने अपने माता-पिता को घर से निकाल दिया और वृद्धाश्रम में भेज दिया आदि जोकि दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। ज़रा सोचिए पहले परिवार के सारे सदस्य एक साथ टैलीविज़न देखते थे, बातें करते थे, अपने अनुभव बताते थे, खेलते थे, खाना खाते थे आदि। अर्थात् एक साथ समय व्यतीत करते थे, जिससे आपस में प्यार बढ़ता था। रिश्ते और गहरे होते थे और बच्चों को सही और गलत का मार्ग-दर्शन कराते थे मगर अब सभी अपने अलग-अलग फोन पर अलग चीज़ों में व्यस्त होते हैं, जिनसे बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर बुरा असर पड़ता है। बदलते हुए रिश्तों का सबसे बड़ा कारण तो माता-पिता खुद ही हैं। आप जैसे संस्कार, जैसी शिक्षा अपने बच्चों को देंगे, वह वैसे ही बन जायेंगे क्योंकि छोटे बच्चे गीली मिट्टी के समान कोमल होते हैं, उन्हें जिस सांचे में डालोगे, वह उसी में डलेंगे।  बच्चों पर सबसे गहरा असर उनसे माता-पिता का ही पड़ता है, क्योंकि बच्चे सबसे पहले अपने परिवार से सीखते हैं और बाद में समाज से। अगर आप उनमें नैतिकता, सभ्याचार और शिष्टाचार जैसे संस्कार डालेंगे तथा प्यार और 
सद्भावना जैसे गुण डालेंगे, तो वह एक बहुत अच्छे और आदर्श बच्चे और नागरिक बनेंगे और आपका मान-सम्मान बढ़ायेंगे। बच्चों को फूलों की तरह प्यार से अच्छे संस्कार डालकर एक अच्छा इन्सान तथा नागरिक बनाएं, ताकि वह आपका नाम और मान बढ़ाएं।