गलती का सुधार

लगभग तीन सप्ताह पूर्व संसद में नागरिकता संशोधन कानून पास किया गया था। भाजपा तथा उसकी सहयोगी पार्टियों का लोकसभा में बहुमत होने के कारण अन्य विपक्षी पार्टियों की कड़ी आपत्तियों के बावजूद इस बिल को पास कर दिया गया था, जो अब कानून बन चुका है। इस कानून के अनुसार तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश जो अपने-अपने संविधान के अनुसार इस्लामिक देश घोषित किए गए हैं, में हिन्दू, सिख, इसाई तथा कुछ अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित लोगों ने गत कुछ दशकों से बड़ी संख्या में भारत में शरण ली हुई है परन्तु उनको तकनीकी कारणों से भारतीय नागरिकता नहीं दी जा सकी। इस कानून से इन शरणार्थियों के भारतीय नागरिक बनने के लिए रास्ता प्रशस्त हो जायेगा। कुछ राज्यों में तो अपने-अपने कारणों से इस कानून का विरोध होना शुरू हो गया है। असम में गत दशकों के दौरान बड़ी संख्या में बंगलादेशी आ बसे थे। इनमें से अधिकतर हिन्दू हैं, परन्तु बंगाली मूल के होने के कारण असम वासी इनको अपने समाज और संस्कृति में घुसपैठिये समझते हैं, जिनसे असम के लोगों की संस्कृति को नुक्सान पहुंचने का खतरा बन गया है। सरकार के लिए इस समस्या से निपटना गत लम्बे समय से बड़ी चुनौती बना हुआ है। नये कानून के अधीन मुस्लिम समुदाय को शरणार्थियों की सूची से निकाल दिया गया है। भारत में बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। वह इस बात पर कड़ी आपत्ति जता रहे हैं। भारत को आज़ादी मिलने के साथ ही इसके दो टुकड़े हो गये थे। नए अस्तित्व में आए पाकिस्तान में से बाद में बंगलादेश बन गया था। पाकिस्तान में इस्लाम संवैधानिक धर्म स्वीकार कर लिया गया था, परन्तु भारत ने धर्म-निरपेक्ष राज्य के निर्माण की बात सोची थी। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी धर्म-निरपेक्षता और लोकतंत्र को अपने बुनियादी सिद्धांतों में स्वीकार किया था। इसी आधार पर आज भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना गया है, जिसमें सभी नागरिकों के धर्म, जाति या समुदाय से ऊपर उठकर एक जैसे अधिकार माने गए हैं। देश की स्वतंत्र उच्च अदालतों ने भी समय-समय पर अपने ऐतिहासिक निर्णय लिखित संविधान की इन भावनाओं को मुख्य रखकर ही दिए हैं। नागरिकता देने के सवाल पर नया कानून संविधान की भावना के विपरीत नज़र आता है, जिस संबंध में राजनीतिक पार्टियां ही नहीं, अपितु देश भर में बहुत सारे हर क्षेत्र के संगठन खड़े दिखाई दे रहे हैं। यह किसी एक धर्म या सम्प्रदाय की बात नहीं रह गई, अपितु संविधान की सांझी भावना की बात बन गई है। देश भर के बहुत सारे बुद्धिजीवी और हर क्षेत्र में प्रसिद्धि हासिल करने वाली कई शख्सियतों ने भी इस कानून के विरुद्ध अपनी आपत्तियां जताई हैं। इस मामले पर हमारे देश की पाकिस्तान के साथ तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि धर्म के आधार पर बनाया गया यह देश अपने रास्ते से बुरी तरह भटका नज़र आता है। सैद्धांतिक पक्ष से भी वहां किसी तरह का तालमेल दिखाई नहीं देता। धार्मिक कट्टरता के कारण बहुत बड़े अलगाव नज़र आते हैं, जिन्होंने आज उस देश को हर क्षेत्र में बुरी तरह पछाड़ दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस देश को आतंकवादियों का एक बड़ा अड्डा माना जाने लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर्नाटक की एक रैली में बोलते हुए नागरिकता संशोधन कानून को एक ऐतिहासिक कदम बताते हुए कांग्रेस तथा उसकी सहयोगी पार्टियों को पाकिस्तान के विरुद्ध प्रदर्शन और रैलियां करने के लिए कहा है, जिसमें अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं। भारत ही नहीं, दुनिया भर में पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों पर होते अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ें उठती रही हैं। भारत में भी शरणार्थियों के रूप में वहां से लोग आते रहे हैं, परन्तु इसके बावजूद भारत में धर्म के आधार पर पक्षपात किए जाने की बात अस्वाभाविक प्रतीत होती है। इससे देश की छवि खराब होती है। सम्प्रदायिकता बढ़ती है और बना साम्प्रदायिक माहौल देश के लिए हर पक्ष से घातक साबित हो सकता है। यदि मोदी सरकार द्वारा कुछ समुदायों को खुश करने के लिए ऐसा कदम उठाया गया है, तो इस कदम को समझबूझ वाला और सफल कदम नहीं माना जा सकता। इसने देश की भावना को ठेस पहुंचाई है और बन रही भाईचारक सांझ में दरारें डाली हैं। देर-सवेर शासकों द्वारा की गई इस गलती का सुधार करना बेहद ज़रूरी है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द