ग्रांट न मिलने से पंचायतों के खजाने खाली

गढ़शंकर, 3 जनवरी (अ.स.): एक वर्ष पहले जैसे-जैसे पंचायती चुनाव नज़दीक आ रहे थे वैसे-वैसे लोगों का उत्साह बढ़ता जा रहा था। आम लोग इन गांव स्तरीय अदालतों को चुनाव के लिए बेहद उतावले थे। उनमें एक चाव था कि वह अपना मनपसंद प्रतिनिधि चुनकर मज़र्ी से  गांवाें का विकास करवाएंगे और नई सरकार बनने के बाद गांवों के अधूरे पड़े काम पुन: शुरू हो जाएंगे। कारण यह था कि मौजूदा सरकार द्वारा सत्ता में आने से पहले लोगों के साथ बड़े-बड़े विकास के वादे व दावे किए थे। मौजूदा सरकार के कार्यकाल का 3 वर्ष का समय पूरा होने जा रहा है और लोग अब ठगे हुए महसूस कर रहे हैं क्योंकि सत्ता में आने से पहले सत्ताधारी पार्टी द्वारा किए वादे अब तक महज सब्ज़बाग ही साबित हुए हैं। 
सरकार के खाली खज़ाने से लोगाें में निराशा
पंचायत चुनावों का एक वर्ष बीत जाने के बावजूद पंच-सरपंच व गांवाें के लोग सरकार के खजाने की ओर देख रहे हैं परंतु सरकार द्वारा खजाना खाली होने की खबरें मीडिया के विभिन्न हिस्सों में उजागर हो रही हैं। अब तो चुने हुए पंचायत प्रतिनिधि भी निराश दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें सरकार से बड़ी उम्मीदें थीं। अब तो सरकार के भी तीन वर्ष पूरे होने वाले हैं परंतु विकास के पक्ष से तो ग्रामीण क्षेत्रों में अभी अधिकतर स्थानों पर शुरुआत भी नहीं हुई। 
लोगों के सवालों से पीछे हट रहे हैं पंचायत प्रतिनिधि
विकास को लेकर लोग एक वर्ष पहले चुने गए पंचायत प्रतिनिधियों को सवाल कर रहे हैं जिनका जवाब उनके बस की बात प्रतीत नहीं हो रही। एक सरपंच ने अपना नाम गुप्त रखने की सूरत में बताया कि लोग ग्रांटों को पिछली अकाली-भाजपा सरकार द्वारा गांवों को दिए गफ्फों से जोड़कर देख रहे हैं।
14वें वित्त आयोग की राशि
कांग्रेस सरकार के शासन में विगत में विभिन्न क्षेत्रों में पंचायतों को जो ग्रांटें जारी की हैं, उनमें ज्यादा ग्रांट केन्द्र द्वारा जारी 14वें वित्त आयोग से संबंधित बताई जा रही है। एक तरफ जहां कांग्रेसी यह ग्रांट बांटकर विकास के दावे कर रहे हैं और दूसरी ओर विपक्षी दलों द्वारा केन्द्र की राशि में कांग्रेस पर राजनीतिक लाभ लेने के आरोप भी लगाए जाते रहे हैं।
बंदिशों के तहत दी जा रहीं ग्रांटें
 प्रदेश में कांग्रेसी मंत्रियाें व विधायकों द्वारा जिन क्षेत्रों में जो ग्रांटें गांवों को जारी की गई हैं वह कथित तौर पर बंदिशों के तहत दी जाने की चर्चा है। यह चर्चा सुनने को आ रही है कि कई मंत्रियों व विधायकों द्वारा पंचायती कार्यों से संबंधित अपने इंटरलाक, ईंटों के भट्टों जैसे कारोबार स्थापित कर लिए गए हैं और पंचायतों को ग्रांटें जारी करते समय अपने संस्थानों से सामान खरीदने के लिए जुबानी आदेश दिए जा रहे हैं। ऐसा किए जाने से जहां पंचायतों में निराशा है, वहीं पहले ही स्थापित लोगों के कारोबार ठप्प होने के किनारे हैं।
काम ठप्प होने से मजदूर व कारोबारी परेशान
पंचायतों के विकास कार्य लगभग ठप्प होने के कारण पंचायतों के काम करने वाले मिस्त्री, मज़दूर पिछले कुछ वर्षों से लगभग पहले ही चले आ रहे हैं। इसी तरह पंचायती कार्यों से चुने इंटरलाक, भट्टों व रेत-बजरी का कारोबारी भी काम ठप्प होने के कारण निराशा के आलम में हैं।
सरकार का ध्यान मनरेगा की ओर
वित्तीय संकट का सामना कर रही कांग्रेस सरकार द्वारा गांवों में विकास के लिए केन्द्र सरकार की मनरेगा योजना का लाभ लेने के प्रयास किए जा रहे हैं। अन्य ग्रांटें न होने के कारण पंचायतों द्वारा अधिकतर गांवाें में मनरेगा के तहत कार्य करवाए जा रहे हैं। मनरेगा योजना के तहत समय पर फंड न आने के कारण कई कारोबारियों ने मनरेगा योजना के लिए मैटीरियल देने से किनारा कर लिया है।ग्रांटों की कमी के कारण पंचायतों की मौजूदा हालत खस्ता प्रतीत हो रही है और विकास से जुड़ी गांवों की समस्याओं में भी लगातार वृद्धि हो रही है। मौजूदा हालातों को लेकर विपक्षी दल लगातार प्रदेश सरकार को निशाना बना रहे हैं।