ऐतिहासिक है पोकरण का दमदमा साहिब गुरुद्वारा

राजस्थान की धरती का सौभाग्य ही रहा है कि गुरूनानक देव जी से लेकर अंतिम पातशाही के दशम गुरु गुरु गोबिंद सिंह तक राजस्थान की यात्रा पर आए थे। ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक देव ईरान-इराक की यात्रा करते हुए पश्चिम राजस्थान में पहुंचे थे। वह बीकानेर से कोलायत, रामदेवरा, पोकरण, जैसलमेर तथा जोधपुर मकराना व सांभर होते हुए आमेर से पुष्कर तक पहुंचे थे। गुरु नानक देव जब राजस्थान की यात्रा पर आए थे, तब उनके साथ पांच पीर भी बाबा रामदेव की ख्याति सुनकर आए थे। ये सभी उनकी परीक्षा में खरे उतरे तो गुरु नानक देव ने भी उनसे भेंट की व परीक्षा लेने आए पीरों को कहा कि बाबा तो पीरों के भी पीर हैं और उन्हाेंने ही बाबा रामदेव को रामसा पीर की उपाधि से नवाजा था। इनके साथ आए पांचों पीर भी उनसे इतने अभिभूत हुए कि वे भी रामदेवरा में ही में रह गए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि गुरु नानक देव अपने शिष्यों भाई बाला व मरदाना के साथ पोकरण में आकर ठहरे थे, जहां आज रेलवे स्टेशन के पास बना ऐतिहासक गुरुदारा दमदमा साहिब है। गुरुद्वारे के ग्रंथी ने बातचीत के दौरान बताया कि जब गुरू नानक देव अपने शिष्यों के साथ यहां आकर ठहरे थे, तब यहां पर एक बड़ा मरुस्थल था। गुरुद्वारे के संबंध में बातचीत जारी रखते हुए वर्तमान ग्रंथी बताते हैं कि यहां सबसे पहले संत प्रेमदास जी अमृतसर (पंजाब) से आए थे।  उनकी पांच पीढ़ियां यहीं गुजरीं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु ग्रंथ साहब का यहां प्रकाश हुआ। सन् 1988 तक संत पाबूदास जी गुरुद्वारे की सेवा करते हुए ज्योति ज्योत समा गए। उससे दो वर्ष पूर्व ही 1986 में उन्होंने अपने पुत्र गुरचरण सिंह को सेवा सौंप दी थी जिन्होंने सन् 2004 तक यहां कार सेवा करवाई। इस सेवा के दौरान गुरुद्वारे में भवन निर्माण व साध संगत के ठहरने के लिए कमरों का निर्माण करवाया गया। सन् 2004 अगस्त में बाबा अमरीक सिंह (पटियाला वाले) ने यहां गुरुद्वारे में कार सेवा करवाकर यहां अन्य भवन निर्माण करवा कर सेवाएं दीं। पोकरण स्थित इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे के प्रति हर व्यक्ति की श्रद्धा है। गुरुद्वारे में स्थित कुएं के पानी को लेकर आम जन में ऐसा विश्वास है कि यदि कोई रोगी सच्ची श्रद्धा से जपुजी साहिब का पाठ करके 21 दिन तक इस कुएं के पानी का सेवन करे तो वह ठीक हो जाता है। श्रद्धालुओं व आम लोगों में इस कुएं के पानी के प्रति अपार श्रद्धा है।

(उर्वशी) 
-चेतन चौहान