दिल्ली विधानसभा चुनावों का महत्त्व

दिल्ली विधानसभा चुनावों की तिथि के संबंध में घोषणा कर दी गई है। चाहे यह पूर्ण राज्य नहीं है, परन्तु इसका महत्त्व देश की राजधानी होने के कारण तथा राज्य में आम आदमी पार्टी के सत्तारूढ़ होने के कारण माना जाता है। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के यत्न किये। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों में भिन्न-भिन्न राज्यों में अपने उम्मीदवार भी खड़े किये थे, परन्तु उस समय उन्हें समर्थन केवल दिल्ली एवं पंजाब में ही मिला था। बाद में पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। यहां भी यह एक प्रकार से सीमित हो गई प्रतीत होती है।दिल्ली में कांग्रेस ने 15 वर्ष तक शासन किया। शीला दीक्षित इस पार्टी की बहुत परिपक्व नेता थीं, परन्तु बाद में आम आदमी पार्टी की लहर ने सभी पार्टियों को हाशिये पर धकेल दिया। केजरीवाल की राजनीति की शुरुआत तो टकराव वाली थी, परन्तु काफी राजनीतिक अनुभव के बाद उन्हें यह महसूस हुआ था कि टकराव की राजनीति का उन्हें लाभ की बजाय नुकसान ही हो रहा है। इसलिए उन्होंने अपना पैंतरा बदल लिया था। आम आदमी पार्टी को वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों में 70 में से 67 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी जबकि भारतीय जनता पार्टी को केवल 3 सीटें ही मिल सकी थीं। कांग्रेस को कोई भी सीट प्राप्त नहीं हुई थी। दूसरी ओर वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में इस राज्य की सातों सीटें भाजपा को मिल गई थीं जबकि कांग्रेस एवं ‘आप’ पूर्णतया पिछड़ गई थीं। अपनी नीतियों को दोबारा तैयार करके केजरीवाल ने अपनी सीमाओं को समझते हुए इस राज्य के लोगों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने की ओर ध्यान दिया तथा उनकी सरकार आम लोगों की समस्याओं के रू-ब-रू हुई थी। केजरीवाल ने टकराव एवं मुकद्दमों की राजनीति से पूर्णतया किनारा कर लिया था। उन्होंने स्वयं यह कहा था कि आम आदमी पार्टी का चुनाव अभियान सकारात्मक होगा तथा पार्टी किसी भी प्रकार का कीचड़ उछालने अथवा गाली-गलौच की राजनीति नहीं करेगी। विगत समय में उनकी सरकार ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की ओर अधिक ध्यान केन्द्रित किया एवं इसके स्तर को ऊंचा उठाने के लिए यह सरकार यत्नशील रही है। स्वास्थ्य सुविधाओं की ओर भी सरकार ने ध्यान दिया है। उसके मोहल्ला क्लीनिक सफलता के साथ चल रहे हैं। प्रदेश सरकार ने बिजली की दरों को भी कम किया है। यहां तक कि उसने बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा की भी व्यवस्था की है। केजरीवाल तो यह घोषणा भी करते रहे हैं कि मैट्रो में महिलाओं को मुफ्त स़फर की सुविधा प्रदान की जाएगी, परन्तु अपनी इस घोषणा में वह पूरी तरह सफल नहीं हुए। उन्होंने प्रत्येक परिवार को 20 हज़ार लीटर तक पानी एवं प्रति महीना 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की घोषणा की है। उनकी उपलब्धियों में भ्रष्टाचार को कम करना एवं जल माफिया का सफाया करना भी शामिल है। दूसरी ओर भाजपा ने अनाधिकृत कालोनियों के निवासियों को मालिकाना अधिकार देने की बात की है तथा झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वालों को झुग्गियों वाली जगह मुफ्त देने की घोषणा की है। उसने यह आरोप भी लगाया है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं उठाया, परन्तु तीसरा पक्ष कांग्रेस अभी तक भी अपने पांवों पर खड़े हुये दिखाई नहीं दी। पार्टी की परिपक्व नेता शीला दीक्षित के निधन की कमी अब तक भी पार्टी को खटक रही है। इसीलिए यह पार्टी भविष्य के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा प्रदान करने में असमर्थ रही है। कुल मिला कर इस समय तक प्रदेश में केजरीवाल का पलड़ा भारी प्रतीत होता है। पिछले दिनों नागरिकता संशोधन कानून एवं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के मामले पर हुए झगड़े का भी दिल्ली वासियों पर प्रभाव पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है। इन मामलों पर देश भर में जितना विवाद शुरू हुआ है, उसका प्रभाव दिल्ली चुनावों पर पड़ने के प्रत्यक्ष आसार बने दिखाई देते हैं। वैसे इस राज्य में अब कांग्रेस ने भी अपने पंख फैलाने शुरू किये हैं। यदि कांग्रेस इन चुनावों में अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल हो जाती है तो इसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिल सकता है। आने वाले दिन देश की राजधानी में हलचल से पूर्ण दिखाई देंगे, जिसका प्रभाव काफी सीमा तक पूरे देश में महसूस किया जाएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द