अमरीका-ईरान तनाव : फिलहाल तो बाल-बाल बची दुनिया

ईरान के कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या करने के बाद अमरीका के ट्रम्प प्रशासन को जल्द ही एहसास हो गया कि उसने रणनीतिक गलती कर दी है। अमरीका के इस दुस्साहस पर न सिर्फ  उसके सहयोगी शॉक में आ गये थे बल्कि अपने पवित्र शहर क्योम की जमकरण मस्जिद की गुंबद पर लाल झंडा फहराकर ईरान ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि वह लम्बे युद्ध के लिए तैयार है। यही नहीं उसने इराक में अमरीका के दो ठिकानों पर 22 मिसाइल दागकर यह संकेत भी दे दिया था कि वह प्रॉक्सी की आड़ में नहीं बल्कि अमरीका से सीधे टक्कर लेने के लिए तैयार है। अलग-थलग पड़ते अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी धमकियों को नियंत्रित करते हुए ईरानी हमले के बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में शांति की पेशकश करते हुए कहा कि अमरीका इस झगड़े को और तूल नहीं देना चाहता।ट्रम्प के ‘आल इज़ वेल’ बयान से स्पष्ट था कि मध्य पूर्व को युद्ध में न झोंकने के लिए उन पर न सिर्फ  विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी का दबाव था बल्कि उनकी अपनी पार्टी रिपब्लिकन भी युद्ध के पक्ष में नहीं थी। ईरान की  22 मिसाइलों से अमरीका को कुछ संरचनात्मक नुकसान तो हुआ, लेकिन कोई जान नहीं गई। दरअसल, यह ईरान का प्रतीकात्मक हमला था। ऐसा अकारण नहीं था। एक, जहां से उसके जनरल पर हमला किया गया वहीं मिसाइल दाग कर ईरान ने अपने घरेलू गुस्से को शांत करने का प्रयास किया। दूसरा यह कि अपनी अच्छी मिसाइलों की जगह कमज़ोर मिसाइलों का प्रयोग करके ईरान ने यह संकेत दिया कि वह युद्ध के पक्ष में नहीं है। लेकिन अगर उसे घेरने का प्रयास किया गया तो वह इससे अधिक करने में सक्षम है। ईरान ने जो इजराइल व दुबई पर हमला करने की धमकी दी, उसे इसी पृष्ठभूमि में समझना चाहिए। उसके सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनी के इस बयान को भी कि अमरीका को अभी सिर्फ  ‘चांटा’ मारा गया है, लेकिन अकेला यह ‘पर्याप्त नहीं’ है। ट्रम्प पर इस बात का भी दबाव था कि इराक की संसद ने अमरीकी सेना को अपनी धरती से वापस जाने का प्रस्ताव पारित किया और यह भी कि अमरीकी सेना उसकी धरती व एयर स्पेस का प्रयोग नहीं कर सकती। ऐसा करने के लिए इराकी सांसदों पर अपनी जनता व मिलिशिया का दबाव था। हालांकि विदेशी फौज को निष्कासित करने का अधिकार संसद के पास नहीं है, बल्कि एग्जीक्यूटिव के पास है, लेकिन इराकी प्रधानमन्त्री आदिल अब्दुल-महदी, जिन्होंने सुलेमानी की हत्या की निंदा की, ने साफ  शब्दों में कह दिया है कि अमरीका के लिए घर वापस जाने का समय हो गया है। ईरान व इराक के विरुद्ध अमरीका की नीति हताशा भरी व अतार्किक प्रतीत होती है। अमरीका को इराक में लगभग दो दशक होने वाले हैं। उसकी सेना अब कमज़ोर नज़र आने लगी है।  मुट्ठीभर राकेट इराक के किरकुक सैन्य बेस पर दागे गये थे जिसमें एक सैन्य ठेकेदार की मौत हुई। इसका बदला अमरीका ने ईरान का समर्थन करने वाले मिलिशिया पर एयर स्ट्राइक्स करके लिया। इसकी प्रतिक्रिया में यह हुआ कि हज़ारों इराकियों ने बगदाद में अमरीकी दूतावास पर धावा बोल दिया। इस हमले ने अमरीका की कमज़ोर स्थिति को उजागर कर दिया। इसी के कारण ट्रम्प ने सुलेमानी को कत्ल करने का बेवकूफी भरा कदम उठाया।ट्रम्प की बेवकूफी ने अमरीका को अलग-थलग कर दिया और उसके निरंतर अकेले पड़ते सहयोगियों इज़राइल व सऊदी अरब की चिंताओं को गहरा कर दिया। ध्यान रहे कि आज स्थिति यह है कि ईरान के इशारे पर यमन स्थित हौती मिलिशिया सऊदी अरब पर हमला कर सकता है। हाल ही में उसने किया भी है। लेबनान स्थित हिजबुल्ला इजरायल पर हमला करने में सक्षम है। आज की स्थिति के लिए मूलत: ज़िम्मेदार ट्रम्प ही हैं। अच्छे-खासे ईरान परमाणु समझौते को रद्द करने की ज़रूरत ही नहीं थी। जब ट्रम्प ने ईरान पर फि र से प्रतिबंध लगाये तो समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य यूरोपीय  देशों, रूस व चीन को प्रयास करना चाहिए था कि समझौते को बचाया जाये। ईरान ने काउंटर प्रयास से पहले एक वर्ष तक प्रतीक्षा की, लेकिन इन देशों ने कुछ नहीं किया सिवाय इसके कि कभी-कभार समझौते के पक्ष में बयान जारी कर दिया। हालांकि फिलहाल के लिए युद्ध टल गया है और खाड़ी के रास्ते तेल आपूर्ति बंद होने के जो खतरे थे, जिनका भारत सहित अनेक देशों पर प्रभाव पड़ता, वह भी स्थगित हो गये हैं लेकिन कितने समय के लिए कुछ भी अंदाज़ा करना कठिन है, इसलिए आवश्यक है कि यूरोप और भारत भी जिसके दोनों अमरीका व ईरान से अच्छे संबंध हैं, को कम से कम अब तो अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए कि अपने डिप्लोमेटिक चैनलों का प्रयोग करते हुए ट्रम्प को रोके व ईरान को शांत करे ताकि न सिर्फ  युद्ध के बादल छंट जायें बल्कि अमरीका व ईरान अपनी आपसी समस्याओं के समाधान के लिए वार्ता की मेज़ पर आ जायें, लेकिन इसके लिए पहले ट्रम्प को अपने सैनिक इराक से वापस बुलाने होंगे। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक युद्ध के बादल  आते जाते रहेंगे और दुनिया तनाव में रहेगी।  

—इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर