शिक्षा एवं स्व-अध्ययन का जीवन में महत्व

शिक्षा मनुष्य का तृतीय नेत्र है। शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति संस्कारवान एवं सभ्य बनता है। इसके माध्यम से व्यक्ति ज्ञानी-विज्ञानी कहलाता है । शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। शिक्षा हम सभी के उज्जवल भविष्य का  वह उपकरण है जिसका प्रयोग करके व्यक्ति परिवार, समाज और देश में आदर सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करता हुआ अपनी एक अलग पहचान बनाता है। शिक्षा ही व्यक्ति को जीवन में एक अलग तरह की अच्छाई की भावना को विकसित करती है। शिक्षा ही व्यक्ति को पारिवारिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को भी हल करने की क्षमता प्रदान करती है। शिक्षा कोई एक दिन में प्राप्त करने वाली वस्तु नहीं है बल्कि शिक्षा जन्म से लेकर मरण तक सतत चलने वाली वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति जीवन भर सीखता रहता है। बचपन में ही हमारे माता-पिता के द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है वह हमारे जीवन में ऐसे बहुत सारे शिक्षा व संस्कार प्रदान करते हैं जिसके द्वारा बच्चा समाज में जाकर एक अपनी अलग पहचान बनाता है। सबसे पहली शिक्षक हमारी माता होती है। तत्पश्चात हम विद्यालय में जाकर एक निश्चित पाठ्यक्रम के आधार पर अध्यापकों द्वारा शिक्षा को ग्रहण करते हैं। आमतौर पर विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने से आनाकानी करते हैं और जब समय निकल जाता है तो वह बाद में पछताते हैं। शिक्षा का सबसे बड़ा बाधक आलस्य है। आलसी व्यक्ति को कभी भी शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकती है।  मैं  विद्यार्थियों से अपील करती हूं कि स्व-अध्ययन  की आदत डालें। यह वह हथियार है  जिसके द्वारा व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में यदि पारंगत होना चाहे तो हो सकता है। 

—अंजली कुमारी
राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मलोट।