भविष्य में बासमती का निर्यात

बासमती के निर्यातकों ने ईरान को बासमती चावल उधार न भेजने का फैसला लिया है। ऑल इंडिया राईस एक्सपोर्टज़र् एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि इस फैसले पर सभी निर्यातकों को खड़े रहने के प्रयास किए जा रहे हैं। पंजाब तथा हरियाणा में ही बासमती चावल के मुख्य निर्यातक हैं। उनसे सम्पर्क कर लिया गया है। यह फैसला अमरीका तथा ईरान के बीच जो हाल ही में तनाव बना है, उसके कारण है या ईरान के व्यापारियों द्वारा गत वर्ष भेजे गए चावल की कीमत की अदायगी न करने के परिणामस्वरूप? गत वर्ष भारत से लगभग 33,000 करोड़ रुपए के 44.14 लाख टन बासमती चावल निर्यात किए गए। इनमें सबसे अधिक मात्रा ईरान को निर्यात की गई। ईरान को 15 लाख टन चावल भेजे गए, जिनकी कीमत लगभग 11,000 करोड़ रुपए थी। इसके परिणामस्वरूप जो ईरान के व्यापारियों से 1500 करोड़ रुपया पंजाब-हरियाणा के व्यापारियों ने चावल का लेना था, उसमें से गत कुछ महीनों के दौरान 600 करोड़ रुपया तो आ गया परन्तु अभी 900 करोड़ रुपए बकाया पड़े हैं। नवम्बर तक इस वर्ष लगभग 500 करोड़ रुपए के बासमती चावल ईरान को और भेजे गए हैं, जिसमें से जो ईरान की सरकार को चावल भेजा गया है, उस राशि की अदायगी तो शीघ्र ही व्यापारियों को मिल जायेगी, शेष रुपया जो ईरान के व्यापारियों द्वारा पिछली तरह तत्काल नहीं भेजा गया, तो 900 करोड़ में शामिल होकर फिर बड़ी धनराशि बन जायेगी। व्यापारियों ने फैसला किया है कि आगे से चावल राशि की अदायगी पेशगी लेकर भेजा जाए या फिर लैटर ऑफ क्रैडिट (जिसके द्वारा बैंक दूसरे देश के बैंक से गारंटी देता है) मुहैया करने पर। ईरान पंजाब तथा हरियाणा के बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक है। चाहे बासमती चावल का आयात यूरोपियन यूनियन, अमरीका, मध्यपूर्व के देश, रूस, यूक्रेन, तुर्की तथा कॉमनवैल्थ के आज़ाद राज्यों आदि देशों को भी किया जाता है। अकेला ईरान भारत से निर्यात की जा रही बासमती का 20 से 25 प्रतिशत आयात करता है।  ईरान तथा अमरीका के संबंधों में बदलाव आने के कारण ईरान को निर्यात किए जाने वाले चावल (सेला) का मूल्य 5500 रुपए प्रति क्विंटल से गिरकर 5,000 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गया। पंजाब और हरियाणा में फसली विभिन्नता लाने के लिए बासमती की काश्त निचला रकबा इस वर्ष के 6.29 लाख हैक्टेयर से बढ़ाने की ज़रूरत है, ताकि वर्तमान 23 लाख हैक्टेयर रकबे पर काश्त किए जा रहे धान निचला रकबा कम हो। इसलिए बासमती चावल का विदेशी मंडी में निर्यात बढ़ाना पड़ेगा, ताकि किसानों को बासमती का लाभदायक मूल्य मिलता रहे। घरेलू मंडी की तो बासमती चावल की खपत बहुत कम है। लगभग 20 लाख टन है। चाहे इसके बढ़ने की सम्भावना है। यूरोपियन यूनियन द्वारा चावल में ट्राइसाइकलाज़ोल की अधिक से अधिक मात्रा 0.01 एम.जी. प्रति किलो ग्राम निर्धारित किए जाने के बाद बासमती चावल का निर्यात बहुत मुश्किल हो गया है।  यूरोपियन यूनियन से बाहर दूसरे देश भी अब इसी किस्म की गुणवत्ता वाले चावल मांगते हैं। भारत सरकार द्वारा प्रयोगशालाओं से परख करवाकर निर्यात के लिए भेजे जाने वाले चावल की एक्सपोर्ट इन्सपैक्शन कौंसिल एण्ड एक्सपोर्ट इन्सपैक्शन एजेंसी से परख करवाकर इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा संबंधी प्रमाण-पत्र जारी किए जाते हैं। इस संबंध में दिल्ली, कोच्चि, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता में प्रयोगशालाएं स्थापित हैं। कृषि सचिव स. काहन सिंह पन्नू कहते हैं कि इस वर्ष पंजाब में पंजाब के उत्पादकों ने बासमती की फसल पर 9 वर्जित कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया और पंजाब की बासमती की फसल कीटनाशकों के अंश के पक्ष से निश्चित की गई सीमा के अनुकूल है। पंजाब 20 लाख टन बासमती पैदा करता है। एग्रीकल्चरल एण्ड प्रोसेसड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डिवैल्पमेंट अथारिटी (अपीडा) और भारत के वित्त मंत्रालय तथा व्यापार और उद्योग मंत्रालय को बासमती का निर्यात बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास करने की ज़रूरत है, ताकि इससे जो सरकार का किसानों की आमदनी 2022 तक दुगुनी करने का लक्ष्य है, उसकी पूर्ति की तरफ कदम बढ़े। किसानों तथा व्यापारियों को भी चाहिए कि वह अपने में स्वै-अनुशासन लाएं और निर्यात के लिए गुणवत्ता वाले बासमती चावल विदेशों को भेजें। खासतौर पर किसान बासमती में प्रयोग करने के लिए बंद किए गए कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें।

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