हिम्मत और साहस की मूर्त्त थीं माई भागो

श्रीमुक्तसर साहिब शहर का इतिहास में बहुत महत्त्व है। दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की चरण स्पर्श प्राप्त इस धरती पर नतमस्तक होने के लिए माघी के अवसर पर श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं। इस धरती पर दशम पातशाह ने जुल्म के ़िखलाफ अंतिम लड़ाई लड़ कर जीत हासिल की और ज़ालिम म़ुगल शासन का खात्मा किया। इस जंग में माई भागो की भूमिका अहम रही और उन्होंने इस जंग में लड़ते हुए हिम्मत और साहस की मिसाल कायम की, जो सभी के लिए खास तौर पर महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आज की पीढ़ी को इनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। श्रद्धालु इस अवसर पर अन्य ऐतिहासिक स्थलों के साथ-साथ गुरुद्वारा माता भागो में भी नतमस्तक होते हैं और उनकी कुर्बानी को याद करते हैं। सिख इतिहास में माई भागो जी इस घटना के कारण काफी प्रसिद्ध हुए कि उन्होंने माझा के सिखों को (जो श्री आनंदपुर साहिब से बेदावा लिख कर गुरु जी से बेमुख हुए थे) प्रेरणा देकर पुन: गुरु जी के पक्ष में लड़ाई हेतु तैयार किया। उन्होंने खिदराणा की ढाब पर पहुंच कर भीषण जंग की और गुरु जी के साथ सिखों की टूटी गंडी थी। माई भागो इस युद्ध में घायल हो गई थीं, जिन्होंने जंग के मैदान में दुश्मन की सेनाओं का डट कर मुकाबला किया और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का साथ देकर सिख इतिहास को एक नया मोड़ दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने युद्ध में घायल हुई माई भागो को देखा और उनके घाव साफ करके मरहम-पट्टी करके उनको स्वस्थ किया। माई भागो हजूर साहिब तक श्री गुरु गोबिंद सिंह के साथ गईं और क्षेत्र में विचरण करते हुए, सिखी का प्रचार किया तथा विदर (कर्नाटक) के क्षेत्र में नानक झीरा जी के पास लगभग 10 किलोमीटर के जनवाड़े में अपना शरीर त्याग दिया। आओ, माई भागो जी के जीवन से प्रेरणा लें, जिन्होंने धर्म, कौम के लिए स्वयं को कुर्बान किया और बेमुख हुए सिखों को प्रेरणा देकर दशमेश पिता के पास लाईं। 

-रणजीत सिंह ढिल्लों