खेल की दुनिया पर मंडराता डोपिंग का काला साया

24 जुलाई 2020 से 9 अगस्त 2020 तक यानी इसी साल आयोजित होने वाले टोक्यो ग्रीष्म ओलंपिक की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है। इसके साथ ही इसका बेरौनक होना भी तय हो गया है। क्योंकि खेलों की दुनिया की एक सुपर पावर रूस, टोकियो ओलंपिक में डोपिंग के चलते लगे प्रतिबंधों के कारण अधिकृत तौरपर अनुपस्थित रहेगा। किसी वैश्विक खेल आयोजन में डोपिंग का इतना बड़ा काला साया पहली बार आगामी टोकियो ओलंपिक में ही दिखेगा। दिसंबर 2019 में डोपिंग के कारण रूस पर चार साल का बैन लगा चुका है। इसका मतलब यह है कि न सिर्फ  टोकियो ओलंपिक में बल्कि अगले चार साल तक किसी भी दुनियावी खेल प्रतिस्पर्धा में रूस का कोई आधिकारिक प्रतिनिधित्व नहीं होगा। किसी भी वैश्विक खेल समारोह में न तो रूस का झंडा दिखाई देगा और न ही उसका राष्ट्रगान सुनाई देगा। टोकियो ओलंपिक के बाद 2022 में होने वाला बीजिंग विंटर ओलंपिक भी रूसी खिलाड़ियों का कौशल देखने से वंचित रहेगा। खेल की दुनिया के लिए यह बहुत बड़ी क्षति वास्तव में वाडा के सख्त डोपिंगरोधी रुख से आया है जो एक तरह से खेलों को साफ-सुथरा बनाये रखने के लिए जरूरी भी है। वास्तव में रूस पर खिलाड़ियों के नहीं, देश के स्तर पर बेईमानी का आरोप है। वाडा ने पाया है कि रूस की प्रयोगशाला ही दुनिया की आंखों में धूल झोंककर गलत आंकड़े दे रही थी। इसीलिए वाडा की लुसाने में हुई कार्यकारी समिति की बैठक में रूस के विरुद्ध यह कड़ा फैसला लिया गया। इस फैसले के बाद भी जो रूसी एथलीट डोपिंग से दूर हैं, वे चाहें तो अगले 4 साल के दौरान बिना रूस के झंडे और राष्ट्रगान के अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाग ले सकते हैं। लेकिन शायद ही ऐसा हो क्योंकि खिलाड़ियों ने ऐसा तो उन पर राष्ट्र-विरोधी होने का ठप्पा लग सकता है। कोई भी खिलाड़ी महज किसी संभावित पदक के लिए देश विरोधी कहा, जाने का जोखिम नहीं लेगा।रूस नि:संदेह डोपिंग के एक बड़े गढ़ के रूप में सामने आया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया के दूसरे देश इस बीमारी से मुक्त हैं। सच तो यह है कि डोपिंग का मकड़जाल पूरी दुनिया में फैला है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अभी हाल ही में वेटलिफ्टर सर्बजीत कौर पर डोपिंग के कारण 4 साल का बैन लगाया गया है। नाडा की एंटी डोपिंग अनुशासन कमेटी ने कौर को डोपिंग नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया था। इसलिए उन्हें 4 साल के लिए अयोग्य ठहराया गया। पंजाब की सर्बजीत ने फरवरी 2019 में महिलाओं के 71 किलोग्राम वर्ग में नेशनल वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप जीती थी। नाडा ने उनका सैंपल पिछले साल ही विशाखापट्टनम में आयोजित 34वें नेशलन वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप के दौरान लिया था। 28 दिसंबर 2019 को ही कॉमनवेल्थ गेम्स 2017 में रजत पदक जीतने वाली वेटलिफ्टर सीमा डोप भी टेस्ट में फेल हो गयीं। उन पर भी 4 साल का बैन लगा है। जबकि उनके एक दिन पहले ही पूर्व ओलंपियन सुमित सांगवान भी डोप टेस्ट में फेल हुए। नाडा ने 27 दिसंबर 2019 को उन पर एक साल का बैन लगाया। साल 2012 के लंदन ओलंपिक में भाग ले चुके सुमित का सैम्पल भी पिछले साल अक्टूबर में नाडा ने लिया था। एशियन गेम्स के सिल्वर मेडलिस्ट सुमित से टोकियो ओलंपिक में पदक की उम्मीद थी क्योंकि उसने वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में अच्छा परफोर्म किया था।भारत की यह कहानी बताती है कि डोपिंग की बीमारी पूरी दुनिया में फैली है। लेकिन रूस में तो यह महामारी बन चुकी है। इसी वजह से रियो ओलंपिक से पहले अंतरराष्ट्रीय खेल पंचाट ने डोपिंग को लेकर रूस की अपील खारिज कर दी थी, जिससे रूस की ट्रैक और फील्ड टीम रियो ओलंपिक में भाग नहीं ले पाई थी। यह मजाक नहीं था आखिर बीजिंग ओलंपिक 2008 के 23 पदक विजेताओं समेत 45 खिलाड़ी डोप टेस्ट में पॉजीटिव पाए गए थे। गौरतलब है कि बीजिंग और लंदन ओलंपिक के नमूनों की दोबारा जांच कराई गई थी तो रूस के कुल 98 खिलाड़ी डोप टेस्ट पास करने में नाकाम रहे थे। इसलिए पिछले 6 ओलंपिक में 546 मेडल जीतने वाले रूसी खिलाड़ियों को माफ नहीं किया गया। हाल के दशकों में अपने परफोर्म से पूरी दुनिया में अपना डंका बजाने वाले रूसी खिलाड़ियों की आज पूरी दुनिया में सबसे कम विश्वसनीयता रह गयी है। जबकि रूस ने ओलंपिक में अब तक 195 गोल्ड,163 सिल्वर और 188 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं। वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी ने 2015 में पहली बार रूस पर डोपिंग के गंभीर आरोप लगाए थे। माना जा रहा है कि टोकियो में एक तरफ  जहां रूस के न रहने से रौनक फीकी होगी, वहीं कई नए खिलाड़ियों को चमकने का मौका भी मिलेगा। भारत की भी रेसलिंग और मुक्केबाजी में रूसियों की अनुपस्थिति से किस्मत चमक सकती है। क्योंकि हाल के कई ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों विशेषकर पहलवानों और मुक्केबाजों की राह में सबसे बड़ी बाधा रूसी खिलाड़ी ही होते रहे हैं। अब जबकि उनके टोक्यो ओलंपिक में होने की संभावनाएं नहीं हैं तो उम्मीद करनी चाहिए कि इसका फायदा भारतीय खिलाड़ियों को होगा।साल 2010 में सुशील कुमार जो कि दो बार के ओलंपिक मेडलिस्ट हैं, वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप रूस के एलन गोवेव को हराकर ही जीत सके थे तो 2012 के लंदन ओलंपिक में योगेश्वर दत्त का गोल्ड जीतने का सफर रशियन खिलाड़ी ने ही तोड़ा था। 60 किग्रा भार वर्ग में प्री क्वार्टर फाइनल में रूस के बेसी ने मात देकर उन्हें बाहर कर दिया था। लेकिन योगेश्वर दत्त किस्मत वाले रहे कि उन्हें रेपेचेज खेलने का मौका मिला। वहां उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। ओलंपिक में मेडल जीतने वाली पहली महिला पहलवान साक्षी मलिक ने भी 2016 में रियो ओलंपिक में अपने सफर की शानदार शुरुआत करते हुए 58 किग्रा के क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया  था, जहां रूस  की वलरिया कोबलोवा ने उन्हें हरा दिया था। हालांकि रशियन खिलाड़ी के फाइनल में पहुंचने से साक्षी को रेपेचेज खेलने का मौका मिल गया और यहां उन्होंने बाजी मार के इतिहास रच दिया था।