अब खामेनेई के खिलाफ  खड़ी हुई ईरानी जनता

ईरान में कल तक जो हीरो थे,वो आज वहां के आम आदमी की नजर से उतरते दिख रहे हैं। तेहरान के आजादी स्कवायर पर जब ये नारे लगने लगे हैं, ‘सुप्रीम लीडर झूठा है, हत्यारा है।’ इससे वाकई लगता है कि स्थितियां पलट गई हैं। कल तक सर्वोच्च नेता अयातुल्लाहिल उज्मा सैयद अली ़खामेनेई की एक आवाज पर देशभर में अमरीका के खिलाफ मुट्ठियां तन जाया करती थीं। लेकिन 8 जनवरी 2020 को यूक्रेन का यात्री विमान 752 तेहरान एयरपोर्ट से उड़ा और कुछ देर बाद उसके दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर फैला दी गई। चार दिन बाद, सरकार ने जैसे ही स्वीकार किया कि गलती से मिसाइल यूक्रेन के यात्री विमान पर चल गई, जिसमें 176 लोग मारे गये थे, इसके तुरंत बाद लोग सड़कों पर उतर आये। इस आग में अमरीका भी हाथ सेंकने लगा है। ट्रंप ने कहा, ‘यदि विरोधियों को मारोगे, उनका दमन करोगे तो ऐसा हम होने नहीं देंगे। अमरीका सब देख रहा है।’ इस घटना में जो लोग मारे गये थे, उनकी स्मृति में जगह-जगह श्रद्धांजलि सभाएं आहूत की जा रही हैं जो बाद में सरकार की मजम्मत का रूप लेने लगीं। गौरतलब है कि 21 फरवरी 2020 को ईरान में 290 सीटों वाली संसद ‘मजलिस-ए-शूरा’ का चुनाव है। उधर अमरीका में तीन नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव है। इसे ध्यान से देखा जाए तो ‘राष्ट्रवाद’ की दरकार दोनों को है। मेजर जनरल कासिम सुलेमानी का बढ़ता कद और लोकप्रियता भी ईरान में उनके लिए भारी पड़ रही थी, जो सत्ता की चाबी किसी कमांडर को देने के पक्ष में नहीं थे। तो क्या ‘मजलिस-ए-शूरा’ चुनाव से पहले कमांडर कासिम सुलेमानी को निपटाना जरूरी समझा गया था? वो कौन लोग थे, जिनके माध्यम से 3 जनवरी 2020 को बगदाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर ड्रोन हमले से पहले मेजर जनरल कासिम सुलेमानी के ‘मूवमेंट’ की जानकारी अमरीकी खुफिया एजेंसी को दी गई थी? राष्ट्रवाद के गगनभेदी शोर में ये सवाल कहीं गुम हो जाएंगे। इस चुनावी मौसम में ट्रंप को ध्यान से देखिये,वो अमरीका के नवराष्ट्रवाद के चोबदार हैं। शांति काल में रेवोल्यूशनरी गार्ड के टॉप कमांडर कासिम सुलेमानी को मरवाकर उन्होंने अमरीकियों के बीच राजनीतिक विमर्श की दिशा बदल दी। वहां अब राष्ट्रपति पर महाभियोग जेरे बहस नहीं है। यह एक नये किस्म का राष्ट्रवादी खेल है, जो चुनाव से ठीक पहले रच दिया जाता है। यों, ट्रंप ने ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसे शब्दाडंबर को खड़ा करने की जरूरत नहीं समझी। कमाल यह है कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ सर्वोच्च नेता अली खामेनई के आदेश से भी हुई। उन्होंने कहा कि हमने अमरीका को करारा तमाचा मारा है। तब पब्लिक ने आंख मूंदकर मान लिया था, कि मारा है। बगदाद स्थित अमरीका के दो सैन्य ठिकानों पर 22 मिसाइलें दागकर देश की जनता को समझा दिया गया कि हमारे सर्वोच्च नेता में दम है, हमने बदला ले लिया। ऐसा बदला, जिसमें एक अमरीकी कबूतर तक नहीं मरा है। राष्ट्रवाद अमरीका का मजबूत हुआ और ईरान का भी। मगर, उसकी कीमत कौन चुका रहा है? इराक और उसके साथ दुनिया के तमाम देश जो तेल का आयात करते हैं। भारत समेत इन इलाकों में चिंता की स्थिति थी कि युद्ध की स्थिति में उनके नागरिकों को कैसे निकालना है। मगर, वास्तविकता यह है कि ट्रंप और खामेनई दोनों नूरा कुश्ती खेल रहे हैं।  ईरान में आर्थिक विफ लता के साथ भ्रष्टाचार कोढ़ में खाज की तरह है। नवंबर 2017 में पश्चिमी ईरान में भयानक भूकंप आया था, जिसमें 530 लोग मारे गये थे और हजारों लोग घायल हुए थे। उस समय राष्ट्रपति हसन रूहानी ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि हाउसिंग सेक्टर में भयानक रूप से भ्रष्टाचार हुआ है। मगर,निशाने पर उनके पूर्ववर्ती महमूद अहमदीनेजाद थे। 3 अगस्त 2013 से राष्ट्रपति हसन रूहानी सत्ता में हैं। पांच वर्षों में हसन रूहानी ने इस मोर्चे पर कुछ किया होता, तो ईरान भ्रष्टाचार के सूचकांक में पिछले साल 130वें स्थान पर नहीं होता। इससे पता चलता है कि पांच वर्षों से रूहानी सरकार भ्रष्टाचार मिटाने की राह पर कछुआ चाल से चलती रही है। भ्रष्टाचार हटाने के नाम पर रूहानी सरकार पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के समर्थक उद्योगपतियों से हिसाब चुकता करती रही है।