कारवां चलता रहे, परम्परा जारी रहे

हम आज तक समझ नहीं पाये कि अपना देश कब तक यूं ही लेटे हुए चलने का अभ्यास करता रहेगा। जी, हां। हमारा दिमाग सही है, परन्तु यहां लोग ‘आराम हराम है’ कहकर आराम फरमाते हैं और बैठे-बैठे कुछ ऐसे भाषण दागते हैं कि जैसे अभी बिना दूसरों की मदद से आकाश में अपना उपग्रह प्रक्षेपित कर लेंगे। कभी वक्त था जब हम किसी बड़े आदमी का उपग्रह बनकर सफलता के आकाश में प्रक्षेपित होना चाहते थे। लेकिन लोगों ने देखते ही देखते अपने आकाश रच लिये और उस पर खुद ही प्रक्षेपित हो कर युग बदलने का इंतज़ार करने लगे।।
अब विश्राम का नाम ही श्रम हो गया है। इसी विश्राम के साथ तरक्कियां मिल जाती हैं। उपलब्धियों के चांद-सितारे छू लेते हैं और फिर अपने आपको एक नया सूरज घोषित करते देर ही कितनी लगती है। अभी सूचना मिली है कि एक नया विभाग सरकार ने खोल दिया है। अब निर्माण में मुरम्मत की सम्भावनाएं ढूंढने का विभाग किफायत करने के नाम पर सरकार ने इस विभाग पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिये हैं, लेकिन मुरम्मत की कहीं ज़रूरत ही नहीं पड़ी। अजी कहीं निर्माण होता तो मुरम्मत की सम्भावना पैदा होती। अधूरी योजनाओं से क्या निर्माण होते हैं। एक फ्लाईओवर बनने में वर्षों लग गये, फिर कोई नयी रूप-रेखा बन गई। तब उसी फ्लाईओवर का कोई सुधरा हुआ रूप बनने लगा। न निर्माण पूरा हुआ, न मुरम्मत की ज़रूरत पड़ी और मुरम्मत विभाग बैठे ठाले उन भ्रष्ट लोगों की किस्मत को रो रहा है कि जिन्होंने प्रोजैक्ट पूरा नहीं होने दिया। पूरा हो जाता तो उनके लिए कुछ मुरम्मत का काम भी मिल जाता। अब बैठे ठाले इतने वर्ष वेतन भत्ता तो खाते रहे, काम की गाड़ी कुछ आगे सरक जाती तो उनके लिए भी कुछ बालाई आमदन का इंतज़ाम मुरम्मत के नाम हो जाता। अब भला बताइए निरी सूखी आय में किस राष्ट्र भक्त का गुजारा होता है। ऊपर की आमदन होती रहे, तो देश को भी भ्रष्टाचार सूचकांक में अपना दर्जा सुरक्षित रखने की सुविधा रहती है।
लेकिन बन्धु अपने यहां क्रांति नहीं होती, क्रांति के पुराने नारे ठुस्स होते हैं, नये नारे गढ़े जाते हैं। अधूरी सड़कें, अधूरे पुल और अधर में रुक गये फ्लाईओवर देश का बदलता हुआ चेहरा पर्यटकों के सामने पेश करते हैं। लेकिन उन्हें न समझाइयेगा कि यह चेहरा ज्यों का त्यों कई वर्षों से यहीं खड़ा है। मंडियों में कभी तेज़ी आयी नहीं, और अब यहां मन्दी के नज़ारे भी पेश आने लगे। तरक्की के सूचकांक उछले भी नहीं, और अपनी निष्क्रियता पर देश शर्मिन्दा नज़र आने लगा।
लेकिन यहां अपनी शून्य कारगुज़ारी पर कोई शर्मिन्दा नहीं होता। बल्कि उसके लिए विपक्ष को दोषी बता दिया जाता है। हर बात का जवाब उनके पास है। आपका काम नहीं हुआ? आपका हर मन्सूबा अधूरा रह गया? आपके उपक्रमों का नफा नुक्सान में बदल गया? दुनिया बदल देने, समाज के कायाकल्प के वायदे हुए, लेकिन यह क्या किया? जब काम करने चले तो घपलों-घोटालों के साथ उन्होंने उनकी हत्या कर दी। लेकिन इन बातों से आजकल कोई चौंकता नहीं। 
आज जो कुर्सी पर बैठे हैं, उनके विरुद्ध घपलों-घोटालों के आरोप हवा में तैरते हैं, तो परेशानी क्या? सीधा जवाब हाज़िर है, तनिक अपना युग याद कर लीजिए। विपक्षियो, जब आपका युग था, तो आपने इससे भी बड़े-बड़े घोटाले किये थे। एक को भी हवा नहीं लगने दी थी। हवा लग गयी तो तुरन्त जांच कमीशन के ठण्डे बस्ते स्थापित कर दिये। इतने वर्ष बीत गये। आपका युग गया, हमारा युग आ गया। यह जांच सुरसा की आंत की तरह बढ़ती और मुंह की तरह खुलती ही चली गई। कभी, रिपोर्ट आयी और धूल फांकती रही। विवश किसी रिपोर्ट पर कार्रवाई करनी पड़ी, तो भ्रष्ट नेता अपने को आरोपित कह कर हाथी पर सवार होकर जेल गये। 
बन्धु, आरोपित होना कोई अपराध नहीं होता। मुकद्दमा चलना कोई अपमान नहीं होता, बल्कि हमने तो कानून प्रक्रिया का सामना करके इस देश की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। अब अदालतों में तारीख पर तारीख का मकड़जाल हमारी सहायता करेगा। हम अपनी बीमारी की खबरें प्रसारित करके लोगों का दिल जीतेंगे। चुनाव आयेगा तो फिर उसे लड़ कर क्रांति निनाद करेंगे, जीत गये तो क्रांतिवीर कहलायेंगे। समाज को बदलने की एक ओर परिकल्पना प्रस्तुत कर देंगे। लेकिन ऐसा भी तो हो सकता है कि कभी आरोप अपराध सिद्ध हो जाएं। इनके किये का दण्ड मिल जाये। ये जेल चले गये तो भी चिन्ता क्या? पैरोल मिलने का रास्ता खुला है। बूढ़ी उम्र, गिरती सेहत, पीछे छूटे परिवार में कोई मौत कोई दु:संवाद सहारा बन जाता है। ये पैरोल पर कुछ दिन बाहर आते हैं, फिर अपने बिखरते संकट को खड़ा कर जाते हैं। जनता को अपने परिवार की नई पीढ़ी के खड़ा होने का संदेश दे जाते हैं। जानते तो हो यहां हर चीज़ परम्परा से ही सही होती है। आपका हर भ्रष्टाचार सही है, क्योंकि इससे पहले जब विपक्षी सत्ता में थे, उन्होंने हमसे भी बड़े-बड़े भ्रष्टाचार किये थे। जब उनको कोई दण्ड नहीं मिला तो हमसे ही यह उम्मीद क्यों कि हम सीधी राह चलेंगे? जांच रिपोर्टों को ठण्डे बस्ते से निकाल कर दूध का दूध और पानी का पानी होने देंगे? 
जब परम्परा पानी में दूध मिलाने की है तो हम उसे तोड़ कर क्यों अपने अतीत की गरिमा का हनन करें? यहां तो ऐसी हर परम्परा अनुकरनीय है, जो भाषण वीरों के हक में जाती है। अब जब किसान का बेटा किसान, गरीब का बेटा और भी गरीब है तो नेता का बेटा नेता और मंत्री का बेटा मंत्री क्यों न बने? इसीलिए भ्रष्टाचारी नेता अपराधी घोषित हो जाये। दण्डित हो दण्ड भुगतने चला जाये, तो भी अन्तर नहीं पड़ेगा। जेल की कोठरी में से भी बाहुबलि अपना कारोबार चलाते हैं। राजनीति तो जनसेवा के नाम पर वंश सेना हो गयी। कारोबार चलता रहेगा। कुछ ढीला हुआ तो पैरोल पर बाहर आ उसके बखिये दुरुस्त कर देंगे। अब आम आदमी का रोना क्यों रोने लगे? उसका तो काम ही है हमारे जलसों में शामिल हो ताली बजाना, हमारे जुलूसों में शामिल हो जिन्दाबाद के नारे लगाना और बिना चूंकिये अपने खण्डित सपनों का बोझ ढोते रहना।