एक गम्भीर समस्या है आर्थिक असमानता

स्विट्ज़रलैंड के शहर दावोस में विश्व आर्थिक मंच का सम्मेलन हो रहा है। दुनिया भर के अहम देश इसमें शामिल हो रहे हैं। इस वार्षिक सम्मेलन में ज्यादातर कई देशों के प्रमुख शामिल होते हैं या अति महत्त्वपूर्ण लोग अपने-अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस आर्थिक मंच की आगामी सोमवार से पांच दिवसीय बैठक में दुनिया को दरपेश आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में पैदा हुए विवादों पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा। यहां होने वाले विचार-विमर्श के आधार पर दुनिया को दरपेश समस्याओं के समाधान निकालने की कोशिश की जाएगी। इस मंच से अक्सर पर्यावरण की समस्याओं के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रसार संबंधी भी विस्तृत बातचीत की जाती है। इस सम्मेलन से पूर्व आक्सफेम नामक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने कुछ ऐसे तथ्य सामने रखे हैं जो बेहद चौंकाने वाले हैं। इनका संबंध दुनिया भर में फैली गरीबी और मानवीय असमानता से है। भारत के संबंध में पेश किये गये तथ्य हैरानीजनक हैं। इसके अनुसार देश के एक प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के पास देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या अर्थात् 95.3 करोड़ लोगों से भी चार गुणा अधिक दौलत है। यह असमानता लगातार बढ़ रही है। इसके साथ अरबपतियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश के 63 अरबपतियों के पास एक वर्ष के देश के बजट से भी अधिक सम्पत्ति है। यहीं बस नहीं, अमीर-गरीब के बीच यह खाई लगातार बढ़ती जा रही है। इस खाई को कम करने के लिए बड़े और मजबूत कदमों की आवश्यकता होगी। आज दुनिया के समक्ष पैदा हुए इस गम्भीर मामले के हल के लिए सभी देशों को एकजुट होना पड़ेगा, परन्तु आज अधिकतर देशों में ऐसी भावना कार्य करती दिखाई नहीं देती। भारत में आज़ादी के बाद लगातार इस दरार को कम करने की कोशिशें भी होती रही हैं। तत्कालीन सरकारों ने अपने-अपने उद्देश्यों से कदम भी उठाये हैं। इंदिरा गांधी जैसी मजबूत प्रधानमंत्री ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा भी लगाया था। बैंकों सहित कुछ बड़े निजी संस्थानों का राष्ट्रीयकरण भी किया गया, परन्तु फिर भी यह लक्ष्य पूरे नहीं किये जा सके। इसके बाद देश में जिस तरह की ढांचागत नीतियां बनाई गई उनसे मध्य वर्ग तो काफी बढ़ा, परन्तु देश के करोड़ों लोगों के गले से गरीबी की ज़ंजीरें नहीं उतारी जा सकीं। यह बात हमेशा समाज के लिए एक चुनौती बनी रही है। ऐसी अवस्था ने ही देश में अक्सर अशांति को जन्म दिया है। आज भी सरकार के समक्ष यह समस्या एक बड़ी चुनौती बन कर खड़ी है। देखना यह होगा कि आगामी वार्षिक बजट में सरकार इस अहम मामले के संबंध में किस तरह का प्रयास करती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द