अनहोनी

‘दादा! कहते हैं कुछ कीड़े, मच्छर दवा खाकर भी बच निकले हैं?’ एक मेंढक बोला।
‘हां, वह मच्छर इन्सान के लिए रोग पैदा करने लगे हैं।’ बूढ़ा मेंढक बोला।
‘कौन से रोग?’ एक मेंढक ने पूछा।
‘डेेंगू, मलेरिया, स्वाइन फ्लू और भी कई रोग हैं।’ बूढ़े मेंढक ने बताया।
‘लेकिन हम मेंढकों ने मनुष्य को कभी कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया।’ बूढ़ा आगे बोला।
‘दादा, मैंने सुना है कि सैकड़ों मेंढक मारकर मनुष्य अपने रोगों के इलाज लिए दवा तैयार करता है।’ एक मेंढक ने बताया।
‘हां, तुमने सही सुना है। मानसिक रोग, बेहोशी, कैंसर, यहां तक कि एड्स से निजात पाने के लिए दवाएं हज़ारों मेंढकों को मारने के पश्चात् तैयार की जाती हैं।’ बूढ़ा मेंढक बोला।
‘फिर तो इन्सान को मेंढक के पांव छूने चाहिए।’ एक मेंढक ने सुझाव दिया।
‘छूने तो चाहिए’ बूढ़े मेंढक ने कहा।
‘अब तो मनुष्य, पेटियां भर कर मेंढक देशों-विदेशों में बेचने लग पड़ा।’ बूढ़े मेंढक ने जानकारी दी।
‘मेंढकों का लोग क्या करते हैं? एक मेंढक ने पूछा।
‘प्रयोगशाला में विद्यार्थी चीर-फाड़ करके ज्ञान प्राप्त करते हैं। मेंढकों से दवाइयां तैयार की जाती हैं। कई स्थानों पर लोग मेंढकों को भोजन के लिए इस्तेमाल करते हैं। कई स्थानों पर मेंढकों की खाल उतार कर, उसके पर्स बनाए जाते हैं।’ बूढ़े मेंढक ने छोटे मेंढकों के सामने ज्ञान की पिटारी खोल दी थी। ‘दादा तुमने तो हमारे मस्तिष्क के किवाड़ खोल दिये। सभी मेंढक इकट्ठे बोले। ‘यहां पर ही बस नहीं, मनुष्य को पता भी है कि मेंढक आलोप हो रहे हैं। जलाशय, झीलें सूख रही हैं। मनुष्य को होश तब आयेगा जब कुदरत ने गले से पकड़ कर धरती पर पटक दिया।
‘हमें निराशा होगी अगर मनुष्य के साथ ऐसा हुआ। इससे पहले कि मनुष्य को कुदरत अकल दे, इसे खुद ही समझ जाना चाहिए। जीवों को खत्म करके मिट्टी, पानी, वायु में ज़हर भर कर, इसकी उन्नति किसी काम नहीं आएगी।’ बूढ़े मेंढक ने कहा।
देखते ही देखते दो मेंढक वहां आकर घास पर लेटने लगे। सभी मेंढक उनकी तरफ देखने लगे। बूढ़ा मेंढक छलांग लगा कर उनके पास चला गया। उनके शरीर पर हाथ घुमा कर सूंघने लगा। ‘यह तो यूरिया खाद सोख ली इनकी चमड़ी ने?’ फिर वो कुछ सोचने लगा। ‘बस दो तीन घंटों के मेहमान हैं ये अब, मुझे नहीं लगता ये बच पायेेंगे।’ बूढ़े मेंढक ने कहा। चारों तरफ श्मशान जैसी चुपी छा गई। पीले मेंढक के मां-बाप के शोक पर इकट्ठे हुए मेंढकों को क्या पता था कि उनको दो युवा मेंढकों की मौत भी देखनी पड़ेगी। ‘अब तो मनुष्य हाथ धोकर हमारे पीछे ही पड़ गया लगता है। खेतों में चरते जानवर हमारे घर तोड़ देते हैं। जानवर हमें खुरों तले दबा जाते हैं। पानी में अब मौत खड़ी दिखाई देती है। मेंढक पता नहीं रोज कहां आलोप हो रहे हैं? हम भूख से न मरें, ज़हरीले पानी हमारा गला दबा देंगे।’ बुजुर्ग बोलता रहा।
देखते ही देखते एक उड़ता बाज धरती पर उतरा और एक भारी मेंढक को अपने नुकीले पंजों में दबा कर वो गया... और वो गया...। सभी मेंढक अपने-अपने छिपने के स्थान की तरफ भागे।
‘यह हरकतें केवल मनुष्य नहीं करता, बल्कि हमारे दुश्मन भी उसके साथ शामिल हैं। बुजुर्ग वहां से जाते समय बोला। मौत हमारे सिर पर सवार है दादा! चलो अब अपने ठिकाने पर पहुंचें, कहीं बे-मौत न मारे जाएं।’ सभी  मेंढक, बूढ़े मेंढक को साथ लेकर तालाब में छिपने के लिए चले गये।
मेंढकों ने देखा कि एक आदमी प्लास्टिक का एक मेंढक, जिसके मुंह में धात का सिक्का था, हाथ में पकड़ कर जा रहा था। उसको किसी ने बताया था, घर में इसे रखने से खुशहाली आती है। (समाप्त)


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