प्याज़ राग

बस प्यारे अपने तो वारे के न्यारे हो गये। पिछले दिनों हथेली में खाज उठी और पांच बोरे प्याज खरीद मारे। फिर क्या था, अब तो नौकरी छोड़कर प्याज बेचने का काम धड़ल्ले से चल रहा है। कितना दूरदर्शी हूं मैं भी, कम से कम केन्द्रीय कृषि मंत्री तो बनने लायक हूं ही।
सरकार अब प्याज खुद बेचने के चक्कर में है मगर हम भी कम पढ़े-लिखे बनिये नहीं हैं। हम अब प्याज नहीं बेचेंगे, हमारा प्याज बाज़ार में आते ही बाज़ार भाव ही खराब हो जायेगा। हम प्याज पूरा तीन सौ रुपये किलो में बेचेंगे। सरकार कितना बेचती है वह हम सब जानते हैं। अगर बेचेगी भी तो लायेगी कहां से। पांच बोरे तो हम अकेले ले मारे। दिन में प्याज की रखवाली गहने से ज्यादा करते हैं।
यह हमारी इज्जत बन गयी है। घर में प्याज की ही खुशबू है। पड़ोसी तो बोलते हैं कि इस बार तो सेठ चिरंजी लाल की लॉटरी ही लग गई है। रोज पूछते हैं कि सेठ प्याज कब बेच रहो हो? मेरा तो एक ही जवाब है कि जिस दिन प्याज को लेकर देश में गृहयुद्ध हो, उसी दिन प्याज बेचकर देश को बचाया जायेगा। अब भाई हम भी तो देश के सच्चे सेवक हैं। जब दोस्त घर में आते हैं तो बोलते हैं कि यार अजीब रईस हो। इस समय प्याज खा रहे हो। खाते नहीं प्यारे, हम तो सब्ज़ी के पास प्याज ले जाकर उसे प्याज का दर्शन करा देते हैं ताकि मज़ा भी आ जाये और खर्चा भी बच जाये। अब देश में प्याज कम हो तो इसका जवाब मुझे तो देना नहीं होता, वो तो कृषि मंत्री जी का मामला है लेकिन उनको मुझे प्याज सलाहकार ज़रूर रखना चाहिए था। नहीं रखे तो भुगत रहे हैं। अपनी पत्नी का सोचना भी ठीक है। वह कहती है कि तुम अभी प्याज को सस्ते में बेच दो। लोगों में तुम्हारी इज्जत बन जाये सो फिर दूध भी रेस पकड़ने वाला है। दूध सस्ते में बेच दिया तो विधानसभा चुनाव आराम से निकाल सकते हो। बात तो हमें भी सही लगती है लेकिन सोचते हैं कि मौका है, हाथ से क्यूं जाने दें। जब कुछ निवेश करना ही है तो लोकसभा चुनाव तो लड़ पड़ेंगे। यह भी सोचते हैं कि एक तो अखिल भारतीय प्याज संघ पार्टी बनाकर उतार दें उम्मीदवार मैदान में लेकिन यह सब हमें जंचता नहीं है। मेरा तो मानना है कि भई मुनाफा कमाना है। चुनाव में क्या रखा है।वैसे भी मुझे घोटाला करना तो आता नहीं। मुझे तो बस अपना प्याज बेचकर धंधा शुरू करना है। फिर दूध, फिर चीनी। कुल मिलाकर हमारा धंधा चौपट होने वाला नहीं है। इस बार किसान प्याज बो कर अमीर होने के चक्कर में हैं लेकिन हम कह दिये हैं कि क्यों ज़मीन खराब कर रहे हो। दो रुपये किलो बिकेगा। मानता ही नहीं है। हम और सरकार जब तक जिंदा हैं, वो अमीर नहीं हो सकता, वो इतना दूरदर्शी है नहीं।रात भर प्याज की रखवाली करनी पड़ती है न, प्याज चोर इतने हो गये हैं कि सोना छोड़ देंगे मगर प्याज का छिलका भी नहीं छोड़ेंगे। शायद रात के तीन बजे होंगे कि अचानक घर में कोई घुस गया। एक बार तो तमंचा निकाल लिया था मगर देखा तो अपना कबीर निकला। मैंने पूछा, ‘साधु! तुम इतनी रात को कैसे टपके?’ तुम्हें जागता हुआ देखकर आ गया हूं, कबीर सोता तो है नहीं। वो तुमने पढ़ा होगा-‘दुखिया सब संसार है।’ ‘वे सब छोड़ो, हम तो प्याज के चक्कर में जगे हुए हैं।’ कबीर जी ने नया प्याज राग बनाया था, वो हमें सिखाने लगे। मैं कबीर जी के पीछे-पीछे गाने लगा। राग सिखाने के बाद जाने लगे तो दो प्याज भी उठा लिये। अब, कबीर जी को मना तो कर नहीं सकता था। सुबह सारे मोहल्ले में प्याज राग गाया जा रहा था और मैं दो प्याज के नुक्सान में पक्का, राग गा रहा था। (युवराज)