नाम बड़े और दर्शन छोटे

हुजूर, हमें स्वीकार है कि यह मुहाविरा पुराना है। इसे आप बाबा आदम के ज़माने का भी  कह सकते हैं। इक्कीसवीं सदी के पहले बीस साल गुज़रने को आये, पर्यटक धरती के रमणीक स्थलों से उठ कर व्योम में सैर के लिए व्याकुल हो उठे हैं। इनके अग्रदूत के रूप में एक हंसता-बोलता नारी रूप रोबोट भी व्योम में जाने की तैयारी में है। अंतरिक्ष ही नहीं, धरती से परे दूसरे ग्रहों में भी सामर्थ्यवान अपनी बस्तियां बसाने की तैयारी में हैं, इसके लिए आरक्षण करवाये जा रहे हैं। अग्रिम भुगतान की तैयारी हो रही है।
लेकिन किसी पिछलग्गू की तरह हम अभी भी किसी नये फैशनेवल परन्तु व्याकरण और अर्थ की दृष्टि से गलत भाषा का सृजन करने के स्थान पर अपनी अभिव्यक्ति में प्राचीन कर्मी भाषा के तकिये ढूंढ रहे हैं? ज़ाहिर तौर पर आपको यह हमारी लेखन क्षमता का अभाव या नये सच को स्वीकार न कर पाने की असमर्थता कह सकते हैं।
लेकिन जब युग के बाद युग बदलते जायें और देश प्रगति और विकास के बड़े-बड़े दावे करने के बावजूद अपने आप को पीछे की ओर फिसलता पाये। सपने आकाश में उड़ने के हों और पांव पाताल की ओर रपटते नज़र आयें, तो इसे अपने भाषणों और दावों में एक तरक्की पसन्द स्वप्न संसार रचने वाले लोगों को आप क्या उपालम्भ देंगे, ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’। जी नहीं, इस देश की तरक्की की चाल के बारे में एक और बात भी कही गयी है, ‘दो कदम आगे और दो कदम पीछे।’
महानुभाव, नतीजा देश की आम जनता के लिए क्या निकला कि महापुरुषों ने अपनी बस्तियां ग्रहों में बसाने की सोच ली और हमारा बसेरा पहले भी फुटपाथ था, आज भी फुटपाथ है। हां, इस बीच ये कुछ और टूट-फूट गये, तो इसे आने वाले इस युग की तैयारी कह लीजिये कि जिसमें फुटपाथ इतने बड़े बन जायेंगे कि जिस पर सीधे हैलीकाप्टर उतर जायें। ये फुटपाथ तो नये बन जायेंगे, लेकिन फटेहाल आदमी अपना गूदड़ उठा कर सोचता है, अब इन फुटपाथों पर हैलीकाप्टर उतरेंगे तो हम सोचेंगे कहां? खैर, साहिब चिन्ता कैसी?  जहां नाम बड़े होंगे, वहां तो दर्शन छोटे ही रहेंगे। कहां तो सपना था आम आदमी के लिए हैलीकाप्टर वाहन बनाने का। जी नहीं, आज़ादी की पौन सदी बीत चली, हैलीकाप्टर तो नहीं रहे, उन एक प्रतिशत लोगों के पास कि जिनके पास धन सम्पदा भारत जैसे बड़े देश के एक वर्ष के बजट के बराबर हो गयी और हमारे लिए साइकिल युग की वापसी।
अब आम लोगों के लिए फुटपाथ तोड़ हैलीपैड बनाओगे? वह तो फुटपाथ से भी गये, अब सोने के लिए क्या किसी नावदान की तलाश करें? वैसे आजकल देश के नावदान तलाश करने कठिन नहीं। जब से देश में स्वच्छ भारत की आवाज़ ऊंचे स्वर में होने लगी है, देश और भी अस्वच्छ हो गया है। सड़कों के किनारे कूड़े के ढेर लगने लगे हैं। सफाई का मशीनीकरण हो रहा है। सप्ताह में रोज़ कूड़ा फेंकने वालों की ट्रालियां इन सड़कों के किनारों पर कृपा करती रहती हैं। कूड़ा फैंकना बाकायदा एक व्यवसाय बन गया। बड़े होटलों, अस्पतालों और व्यावसायिक संस्थानों का कूड़ा-करकट, बचा खुचा, रात के अंधेरे में इन सड़कों किनारे फैंकने के लिए बाकायदा कूड़ा माफिया और इनकी ट्रालियां बन गयीं। हां, देश में कूड़ा सफाई का मशीनीरण हो गया, एक ही दिन में सब कूड़ा साफ हो जाता है। शेष छ: दिन इन किनारों पर नियोजित ढंग से कूड़ा फैंका जाता है। अहा! इक्कीसवीं सदी के साथ कैसा कूड़ा नियोजन हुआ। हफ्ते का काम एक दिन में निपट गया, अब मजे से सप्ताह भर कूड़ा फेंकिये, एक दिन में उठवा दीजिये। इस अभियान में देश अधिक स्वच्छ हुआ कि अस्वच्छ? इस पर चिंतन बाद में करेंगे। अभी तो कूड़ा स्वच्छता अभियान के मशीनीकरण का प्रशस्ति गायन कीजिये। आप चाहें तो ताली भी बजा सकते हैं। लेकिन तालियां क्यों न सुरक्षित रख ली जाएं। उधर घोषणा हुई कि व्योम की शोध के लिए इक्कीसवीं सदी के अन्तरिक्षयानों में बातचीत करने वाले आदेश पर सक्रियता दिखाने वाले रोबोट जायेंगे और इधर यह सूचना भी मिल गयी है कि स्वच्छ भारत के अगले कदम के रूप में अब बन्द सीवरेज की सफाई रोबोट करेंगे। वे बाकायदा आदेश सुनेंगे, जी हजूर कहेंगे और सफाई के बाद आपसे बख्शीश भी नहीं मांगेंगे।
लीजिये साहब बख्शीश बन्द होने की प्रथा बन्द होने की यह सूचना तो दुखद है। जब सीवरेज का काम रोबोट के हवाले करने की घोषणा नहीं हुई थी, तो हमारे शहर में बख्शीश एक अधिकार बन गयी थी। यारों ने बाकायदा उसके रेट भी तय कर दिये थे। लेकिन अब रोबोट युग अवतरित हो जाने के लाभों में से एक यह बताया जा रहा है कि वे काम करने के बाद किसी से बख्शीश नहीं मांगेंगे। अरे यह क्या खबर आ गयी? बख्शीश युग का अन्त होने जा रहा है। इस बड़ी जनसंख्या वाले देश में ऐसे रोबोट बनाओगे, तो दंगा हो जायेगा। क्यों न इस देश की स्पूतनिक की तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या को रोबोट हो जाने का अदब सिखा दिया जाये? नेतागण अपने सपनीले भाषणों से, उत्तेजक नारों से अपनी शोभा यात्राओं के ठाठ में उनका इस्तेमाल किसी रोबोट की तरह कर सकेंगे।
क्या इनका काम भ्रष्टाचार उन्मूलन, या कालाबाज़ारियों का सर कुचलने के लिए नहीं किया जा सकता? अजी क्यों नहीं हो सकता? आखिर इसे एक नये संघर्ष युग की शुरूआत का नाम देने में हिचकिचाहट क्या है? चाहे इसके अंतिम दर्शन तो उसी प्रकार छोटे रहेंगे, जैसे अभी आये भ्रष्टाचार सूचकांक ने बताया है कि भ्रष्टाचार खत्म करते समय अपना देश दो पायदान और नीचे खिसक गया है। इसलिए यहां भी केवल नाम ही तो देना है।