जलाशयों के अस्तित्व पर मंडरा रहे हैं

जिन स्थलों को चिरकालीन नमकीन, खारे या ताजे पानी ने ढका हो, जहां वनस्पतियां प्रफुल्लित हों, जल-जीवों के रहन स्थल हों, जिनका अपना विलक्षण पर्यावरणिक प्रबंध हो, वे स्थल जलाश्य होते हैं। दलदल, छप्पड़, तालाब, झीलें, दरियाओं के किनारे पर बने त्रिकोणीय क्षेत्र जलाशयों के ही रूप हैं। हमारी धरती एक उत्पादक रहन स्थल है जो प्रकृति ने हमें प्रदान की है। यहां प्राणी, जीव-जंतु, वनस्पतियां समान रूप से बढ़ती-फूलती हैं। जलाशय असंख्यक जल-जीवों, स्तनधारियों, जनौरों, मछलियों, रीढ़ रहित जीवों का जखीरा होते हैं। मनुष्य के लिए हितकारी हवा तैयार करते हैं, दूषित पानी को साफ करते हैं, बाढ़ को रोकते हैं, तूफान की तीव्रता को कम करते हैं। ज़रा सोचें यदि प्रदूषित पानी हमें शुद्ध करना पड़ जाए, बाढ़ को रोकना पड़ जाए तो कितना धन खर्च हो जाएगा। जलाशय न हो तो तूफान चलती हुई ज़िंदगी को रोक दे। जीव-जंतु घरों के रास्तों से भटक जाएं, यदि आंधी उनको मौत के मुंह में फैंक आए। जलाशय मुख्य तौर पर तीन प्रकार के होते हैं। एक तो समुद्री तटवर्ती जलाश्य, जो समुद्री किनारों के पास होते हैं, दूसरे जलाशय समुद्र के किनारों से दूर-दराज़ भीतर की भूमि पर होते हैं। तीसरे जो मनुष्य ने स्वयं तैयार किए होते हैं। जैसे छप्पड़, तालाब, झीलें, बांध, मौसमी बाढ़ के खड्डों में खड़े पानी। जलाशयों की मिट्टी में कार्बन की मौजूदगी होती है। इसके साथ गंधक, फासफोर्स, नाइट्रोजन भी इस मिट्टी में मिलते हैं। फासफोर्स पानी में रसायनिक बदलाव लाता है। कार्बन, नाईट्रोजन का पौष्टिकता चक्र जल-जीवों की सांस क्रिया से प्रभावित होता है।
जलाशयों के भीतर पौधे और जीव-जंतु : जलाशयों के भीतर जीव-जंतुओं में उदबिलाव कीचड़ में घर बनाता है, पत्ते खाता है। रेंगने वाले रेपटाइल्ज़, भूजंगम सांप, लम्बी पूंछ वाली छिपकलियां, छोटे कीड़े खाती बत्तखें, मेंढक, मछलियां, टैडपोल, बिच्छू जलाशयों में निवास करते हैं। ताजा पानी में घड़ियाल व नमकीन पानी में मगरमच्छ होते हैं, परन्तु फ्लोरिडा में ऐवरगलेड्स स्थान के पानियों में मगरमच्छ भी हैं और घड़ियाल भी। जलाशयों में जल जीवों की एक लाख से अधिक उप-जातियों की भी मौजूदगी देखी गई है। 
जलाशय समझौता : जलाशयों के संदर्भ में विश्वव्यापी प्राथमिकता देने के लिए इनके विघटन और नुक्सान की नज़रसानी करने के लिए रामसार अंतर्राष्ट्रीय समझौता किया गया है। इसका प्राथमिक उद्देश्य लोगों को जागरुक करना है। इस प्रचलित धारणा से किनारा कर लें कि जलाशय कूड़ा फैंकने वाले अतिरिक्त स्थल नहीं होते। रामसार समझौते का साथ, पांच अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे बर्ड लाइफ इंटरनैशनल, आई.यू.सी.एन., इंटरनैशनल वाटर मैनेजमैंट संस्था, वैटलैंड इंटरनैशनल, वर्ल्ड वाईड फंड फॉर नेचर दे रही हैं। खोज अध्ययन, सैमीनार, बैठकें तथा पुनर्निरीक्षण चलता रहता है। इस समझौते के अंतर्गत 476000 एकड़ रकबे पर फैले जलाशयों को सम्भाला गया है ताकि इनका लुत्फ आने वाली पीढ़ियां भी ले सकें। 
जलाशयों के क्षेत्र : हमारे देश में लगभग 58.2 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र जलाशयों ने घेरा हुआ है। पंजाब तथा चंडीगढ़ में सिर्फ 71872 हैक्टेयर रकबे पर जलाशय हैं। पंजाब में तीन प्रमुख जलाशय हैं हरिके, कांझली और रोपड़ जिनको अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रामसार सूची में दर्ज होने का रुतबा हासिल है। हरिके जलाश्य का रकबा 4100 हैक्टेयर, रोपड़ जलाशय का रकबा, 1365 हैक्टेयर और कांझली जलाश्य का क्षेत्र 183 हैक्टेयर है। हरिके को सतलुज और ब्यास दरिया लगते हैं जो उत्तर भारत का पक्षियों का महत्त्व वाला शरण स्थल है। कपूरथला के निकट कांझली जलाश्य, श्री गुरु नानक देव जी के नाम से जुड़ी काली बेईं के निकट स्थित है। शिवालिक पहाड़ियों की गोद में बैठी, सतलुज के किनारों और रोपड़ जलाशय पंजाब में सरहिंद नहर प्रबंध के द्वारा पानी की ज़रूरतें पूरी करती हैं। 
जलाशयों की दुर्गति : जलाशय धरती के गुर्दे होते हैं, प्रकृति का संतुलन बनाए रखते हैं, परन्तु आज इनकी दुर्गति हो रही है। लोगों ने इनको कूड़ा घर बनाने की कसर नहीं छोड़ी। पेड़ों पर व्यापारियों के आरे चल गए, मिट्टी, गार जलाशयों में जमा होने लगी। हरित क्रांति ने जलाश्यों के पानी में ज़हर घोल दिया। पर्यटन पर निकले लोग इन जलाशयों में प्लास्टिक की बोतलें और कूड़ा फैंक रहे हैं। ये जलाशय सिकुड़ रहे हैं, कुछ तो लुप्त हो गए हैं। 
क्या किया जाए? :  जलाशयों के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने के प्रयास किए जाएं। सैमीनार हों, रैलियां निकाली जाएं, पोस्टर बांटे जाएं। चर्चा छेड़ी जाए कि जलाशय क्यों समाप्त हो रहे हैं? इन्सान इनके खात्मे के लिए कितना ज़िम्मेदार है?  स्कूलों के छात्र निकटतम जलाशयों का टूर कार्यक्रम बनाएं। जलाशयों पर आते प्रवासी पक्षियों के बारे में अध्यापक बच्चों को जानकारी दें। पेड़ लगाए जाएं। 
चेतावनी : यदि जलाशय ऐसे ही दूषित हो गए। इनके भीतर रहते जल-जीवों का दम घुटने लगा, वनस्पतियां सूखने लगी, पेड़ सूखने लगे तो दूसरी धरती से इन जलाशयों पर विभिन्न प्रकार के पक्षी नहीं आएंगे। वह अन्य किसी जलाश्य पर अपने घौंसले बना लेंगे। 
जलाशय बीते समय की एक दंतकथा न बन जाएं। समय पर विचार करना ही अच्छा होता है। बीता हुआ समय कभी भी हाथ नहीं आता। आज विश्व जलाशय दिवस पर जलाश्यों को बचाने हेतु जन आंदोलन बनाने के लिए प्रयास किए जाने बहुत ही ज़रूरी हैं।