दुनिया को मिल गया ज़िंदा रोबोट

लिविंग रोबोट का यह आविष्कार भविष्य के मानव के प्रादुर्भाव की ओर बहुत शुरुआती संकेत है। फि लहाल इसके सामने आने से तय हो गया है कि निकट भविष्य में हेल्थ और मेडिसिन के अलावा रोबोटिक्स और एआई के क्षेत्र में भी चमत्कारिक बदलाव होने वाले हैं।
ये जेनोबोट है। भविष्य में अगर आम आदमी भी 150 साल से अधिक और आसानी से जीने लगे, शरीर की जन्मजात विकृतियां कोई समस्या नहीं रहें और किसी भी अंग को देह में दुबारा उगाने,बनाने की क्षमता हासिल होती है या इसके लिये खास दवाइयां बन सकें तो उनमें इनका बहुत बड़ा हाथ होगा। जेनोबोट मतलब, पहला जिंदा रोबोट। जिंदा रोबोट से आशय उस संघटित जीवित शरीर रचना से है जिसे रोबोट की तरह प्रोग्राम किया जा सकता है और वह पूर्व निर्धारित आदेशानुसार काम कर सकता है।यह जिंदा है क्योंकि वह जीवित कोशिकाओं से बना है। स्वत: ठीक हो सकता है। पोषण पर आत्मनिर्भर है। निस्संदेह यह जीव है पर यह रोबोट भी है। यह इस्पात या किसी अन्य धातु अथवा प्लास्टिक से नहीं बना है। इसके चमकीले पुर्जे नजर नहीं आते और न ही इसके रोबोटिक आर्मस। यह किसी जीव में तकनीक बदलाव करके नहीं बनाया गया है। फि र भी यह रोबोट है। इसे पैदा किया गया है। बनाया गया है। यह पहला जिंदा रोबोट है। निस्संदेह इस दिशा में लगातार शोध और सुधार के जरिये अगले एक दशक के भीतर ही तमाम और जिंदा रोबोट पैदा होंगे और वे इस पहले जिंदा रोबोट से सैकड़ों गुना अधिक सक्षम होंगे। ये जीवित रोबोट, रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्वास्थ्य, कोशिका विज्ञान, दीर्घजीविता, रीजेनिरेटिव मेडिसन जैसी आधुनिक दवाओं के निर्माण और रक्षा विज्ञान के विविध क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले होंगे। वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने इस लिविंग रोबोट जेनोबोट को मेंढक की स्टेम कोशिकाओं से निकली जीवित कोशिकाओं से विकसित किया है। स्टेम सेल्स ऐसी खास कोशिकाएं हैं जो किसी विशिष्टता को धारण नहीं करतीं। मतलब ये बस इस मामले में विशिष्ट हैं कि इनसे तमाम भिन्न तरह की कोशिकाएं बन सकती हैं। वैज्ञानिकों ने इन स्टेम सेल्स को जिनोपस लेविस प्रजाति के मेंढक के भ्रूण से तब निकाला जब वह कोशिका विभाजन के ब्लास्टुला प्रवस्था में पहुंच चुका था। उसकी हरी त्वचा कोशिकाओं और लाल हृदय कोशिकाओं से एक खास संघटित शरीर रचना वाले जीवधारी को विकसित किया।इस जीवधारी शरीर को एवोल्यूशनरी एल्गोरिद्म पर काम करने वाले एक सुपर कंप्यूटर की सहायता से डिजाइन किया गया। कम्प्यूटर यह बताता है कि चमड़ी और दिल की कोशिकाओं को एक दूसरे के ऊपर किस क्रम में रखना है। इस सुपर कंप्यूटर द्वारा थ्रीडी के हजारों ऐसे प्रारूपों पर इसका परीक्षण किया गया है जो जीवन के लिये उस के मूलभूत कार्यों हेतु अत्यावश्यक हैं। इन परीक्षणों ने इन सूक्ष्म जीवित कंप्यूटरों को अपने आगे बढ़ने की क्षमता विकसित होने में मदद की। इसे इस तरह की डिजाइन का बनाया गया जैसा प्रकृति में पहले कभी नहीं देखा गया था। इसमें खाद्य और लिपिड प्रोटीन से भरे आवरण रखे गये। विकसित होने पर निकले सीलिया यानी रोमाभि को काट दिया गया क्योंकि इन्हें तैरने से ज्यादा चलना था। धड़कता और त्वचा की कोशिकाओं से बंधा हुआ यह  लाल हरा जीवित रोबोट मात्र 0.04 से 0.7 इंच तक का है। इतना सूक्ष्म कि शरीर के भीतर रह सकता है। इसकी उम्र सात दिन की है यानी यह 7 दिन बिना पोषण के रह सकता है। यह जीवित मशीन है, अपने भीतर पहले से भरे भोजन पर जिंदा रहती है। यह बिल्कुल नये तरह का जीवन प्रारूप या लाइफ फॉॅर्मेट है। छोटे-छोटे बम्ब सरीखे ये जेनोबोट जिनका बीच का हिस्सा दवा ले जाने जैसे काम के लिये खाली रहता है,गुलाबी मांस में छितराये हुए रहते हैं। इनको ताकत, धड़कन तथा गति मिलती है दिल की जिंदा मांसपेशियों से जिनमें स्वत: ही एक लयबद्धता के साथ फैलने-सिकुड़ने का नैसर्गिक स्वभाव होता है।जोशुआ बोंगार्ड जो इस शोध दल के दूसरे नंबर के अगुआ रहे उनका कहना है कि यह न तो पारंपरिक रोबोट है और न ही कोई जानी हुई अथवा पूर्व ज्ञात जंतु प्रजाति। यह नई चीज है। जीवित लेकिन प्रोग्राम की जा सकने वाली  संघटित शारीरिक रचना। आखिर बहुत से जीवधारी ऐसे हैं जो मस्तिष्क नहीं रखते। लैंगिक अथवा किसी भी तरह का प्रजनन भी नहीं करते। अपने घाव ठीक कर सकते हैं और समूह में काम करते है। क्रियात्मकता दर्शाते हैं। किसी सामान्य जीव संगठन से संबद्ध हो पहचाने जाते हैं। ये जेनोबोट भी ऐसे ही हैं। ये पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल हैं। पारंपरिक रोबोट या माइक्रोबोट धातु, सिरेमिक और प्लास्टिक इत्यादि के बनते थे। शरीर के भीतर घातक प्रभाव डाल सकते थे लेकिन यह शरीर और पर्यावरण दोनों के लिये बिल्कुल निरापद हैं। अपना काम खत्म करने के बाद जब ये बेकार होते हैं तो बस एक मृत त्वचा की बहुत छोटी खुरंट से हो सकते हैं। अभी बहुत छोटे हैं लेकिन जल्द ही ये बड़े बनेंगे। वैज्ञानिक सोच रहे हैं कम से कम मिलीमीटर से तो आगे निकला ही जाय, दूसरी कोशिकाओं से भी इन्हें बनाया जाये। जैसे तंत्रिका कोशिकाओं से,जिससे इनमें संवेदी क्षमता भी आ सके। हालांकि वे रक्त वाहिकाओं की कोशिका से भी इन्हें बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे यह बात साफ  होती है कि एक क्रियात्मक शरीर या फंक्शनल बॉडी बनाने के लिये कोशिकाएं आपस में कैसे सहयोग करती हैं, उसके संकेतों को काफी हद तक समझा जा चुका है। अब सवाल यह है यह जानकारी क्या इस स्तर तक भी पहुंच गई है कि इन संकेतों की अदला-बदली कर एक ऐसा तंत्र बनाया जा सकता है जो न सिर्फ  जीव हो बल्कि संकेतों को ग्रहण कर काम करे ? इस खोज ने इस बात की भी तस्दीक कर दी है। एक बार जब हम जान जाते हैं कि कोशिकाएं कैसे किसी शारीरिक संरचना निर्माण हेतु प्रेरित होती हैं तो फिर यह ज्ञान न सिर्फ  किसी अंग के पुनर्निर्माण के लिये प्रेरित करने, नया अंग बनाने बल्कि रोबोटिक्स कम्युनिकेशन प्रणाली, रोबोटिक्स के बेहतर बनाने वाले कुछ सिद्धांतों और यहां तक कि कृत्रिम बुद्दिमत्ता के भी बड़े काम आ सकती है। आगे चलकर यह पता लगाना है कि कोशिकाएं अपनी प्रत्यक्षता और क्षमता का इस्तेमाल हाथ और आंख जैसे अंग बनाने में कैसे कर पाती हैं? जाहिर है बायोमेडीसिन, रोबोटिक्स और मॉफ र्ोलॉजी मिलकर बहुत बड़ धमाका करने वाले हैं। इस दिशा में जीवित रोबोट बेहद महत्वपूर्ण और पहला बड़ा कदम है। निश्चय यह साइंस फि क्शन सरीखा है। लेकिन यह सत्य के बहुत करीब है। ये सेल बायोलोजी के अध्ययन में सहायता कर सकते है। इससे बीमारियों, लॉगिविटी या दीर्घायुता जैसे तमाम क्षेत्रों में चमत्कार होगा। आखिर कोशिकायें ही जीव की मूलभूत ईकाई हैं। इन खोजों से भविष्य के मानव का प्रादुर्भाव हो सकेगा।फि लहाल शरीर में दवा पहुंचाने के अलावा समुद्री कचरे के निबटान सरीखे काम इससे लिये जाने हैं। इनका सैन्य तकनीक में इस्तेमाल हो सकता है,ये विकिरण वाले कचरे को साफ  कर सकते हैं। भविष्य में इसके जरिये थ्रीड़ी प्रिंटिंग की सहायता से जन्मजात विकृत अंगों को बनाने, कैंसर या ट्यूमर के सेल को सामान्य सेल में रिप्रोग्राम करने, भयानक दुर्घटनाओं में घायल को आराम देने, बुढ़ापे को पराजित करने तथा अंगों को फि र से कार्यक्षम बना देने के लिये किया जायेगा। इसके जरिये रीजेनेरेटिव मेडीसिन का इस्तेमाल किया जा सकता है। अंग फि र से बनने लगेंगे वह भी तेजी से। एक शंका यह भी कि वायरोलॉजी, बैक्टीरिओलॉजी और जीनोम एडिटिंग के उस्ताद इसकी दिशा बुराई की ओर भी मोड़ सकते हैं। निस्संदेह कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संयोजन जीवविज्ञानी ठान लें तो यह एक हथियार बन सकता है। अतिसूक्ष्म होने के चलते किसी भी तरह के बैक्टीरिया,वायरस को इसका वाहक बनाया जा सकता है। सवाल यह भी कि क्या इनको बनाते बनाते ऐसा भी हो सकता है कि ये नियंत्रण से बाहर चले जायें तो जवाब यह कि एक तो ये खुद जनन नहीं कर सकते, दूसरे सात दिन में ये स्वत: नष्ट हो जाने वाले हैं, हां, अगर कोई वैज्ञानिक इसकी निर्माण प्रकिया में जान-बूझकर कोई साजिश करे तो कुछ भी हो सकता है।

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