बोरवेल में बच्चों के गिरने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का केंद्र और राज्यों को नोटिस 

नई दिल्ली, 3 फरवरी (भाषा) : उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस भेजा है जिसमें देश में खुले बोरवेल में बच्चों के गिरने और मरने की घटनाओं को लेकर कदम उठाने में नाकाम अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने का आग्रह किया गया है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ अधिवक्ता जी. एस. मणि द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने को सहमत हो गई जिसमें 2010 में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिए जाने का भी आग्रह किया गया है। पीठ ने याचिका पर केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों को नोटिस जारी किया। मणि ने याचिका में न्यायालय से यह आग्रह भी किया कि वह केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों से इस बारे में रिकॉर्ड तलब करे कि उन्होंने शीर्ष अदालत के अगस्त 2010 के निर्देशों के अनुपालन में खुले बोरवेल में बच्चों के गिरने की घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि इन खुले बोरवेल को बंद करने में प्रशासन की विफलता के चलते लोग परेशान हैं क्योंकि इनकी वजह से देश में अनेक मौतें हुई हैं। संबंधित घटनाओं का ब्योरा देते हुए याचिका में कहा गया कि इस तरह का पहला मामला 2006 में प्रकाश में आया था जब एक बोरवेल में गिरे बच्चे को सेना ने बचाया था। उन्होंने पिछले साल अक्तूबर में तमिलनाडु में हुई घटना का भी जिक्र किया जिसमें एक खुले बोरवेल में गिरने से तीन वर्षीय बच्चे सुजीत की मौत हो गई थी। याचिका में दावा किया गया कि अगस्त 2010 में शीर्ष अदालत द्वारा दिशा-निर्देश जारी किए जाने के बावजूद देशभर में खुले बोरवेल में बच्चों के गिरने की कई घटनाएं हुई हैं। इससे स्पष्ट है कि अधिकारी इन मौतों को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने में विफल रहे हैं। इसमें यह भी आग्रह किया गया है कि भविष्य में खुले बोरवेल में गिरने वाले किसी बच्चे को बचाने के लिए केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों को उचित नियम और आधुनिक उपकरणों के साथ विधियां और विशेषज्ञता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाए। याचिका में आग्रह किया गया है कि सुजीत की मौत और उसे तत्काल बचाने में अधिकारियों की विफलता के मामले की शीर्ष अदालत या मद्रास उच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में न्यायिक जांच कराई जानी चाहिए।