महंगाई के तेवर से गड़बड़ाया गणित


देश में लगातार बढ़ती महंगाई की मार से आम आदमी ही नहीं बल्कि अमीर लोगों का भी बुरा हाल है। गरीब आदमी के लिए दाल-रोटी का जुगाड़ कर पाना भी बेहद मुश्किल होता जा रहा है। बेलगाम महंगाई और आम ग्राहक के साथ लूट, धोखाधड़ी आम बात है। खाने की मिलावटी चीजों से तो उसकी जान भी खतरे में पड़ चुकी है। सरकार महंगाई की समस्या पर काबू पाने के पुरजोर दावे करती है। जमाखोराें के विरूद्ध छापामार जैसी कार्रवाई अभियान भी इन दावों को खोखला सिद्ध करता है। 
आर्थिक विकास दर के नीचे जाने के बावजूद सरकार अपने महंगाई प्रबंधन को अपनी कुशल आर्थिक नीति का सबसे बड़ा उदाहरण बताती रही है लेकिन सरकार के ही ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि महंगाई अब तेवर दिखा रही है। नवंबर, 2019 में देश में खुदरा महंगाई की दर 7.35 फीसद रही है जो पिछले 5 वर्षों की सबसे ऊंची दर है। यह न सिर्फ भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से तय 6 फीसद के मध्यावधि लक्ष्य से ज्यादा है बल्कि यह तेजी खाद्य उत्पादों की वजह से ही देखने को मिली है। खुदरा महंगाई का यह तेवर ब्याज दरों में कटौती करने की संभावनाओं को फिलहाल थाम देगा।
खाद्य पदार्थों की महंगाई जिस तेजी से बढ़ी है, उस पर सरकार का चिंतित होना लाजिमी है। केंद्र सरकार ने इस मामले को अति गंभीरता से लिया है। खाने-पीने की चीजाें की महंगाई की सीधी मार आमजन पर पड़ती है। इससे लोगों में नाराजगी पैदा होती है। अतीत का अनुभव है कि महंगाई रोकने में विफल सरकारें अच्छा काम करने के बावजूद अलोकप्रिय हो जाती हैं, इसलिए यह सरकार के लिए चेतने का वक्त है। पिछले कुछ समय से लोग दालों की महंगाई से परेशान थे। गरीब का भोजन कही जाने वाली दाल गरीब की थाली से अचानक गायब हो गई। दाल की जम कर कालाबाजारी हुई और उसके दाम बहुत ऊपर पहुंच गए। सरकार ने दिखावे के लिए छापेमारी की लेकिन उसका जमीनी स्तर पर कोई असर देखने को नहीं मिला। आज भी लोग महंगी दाल खरीदने पर मजबूर हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की तरफ से पिछले दिनों जो आंकड़े जारी किए गए हैं वे बताते हैं कि महंगाई जिन वजहाें से एक दशक पहले बढ़ती थी, अभी भी वे ही वजहें जिम्मेदार हैं। खुदरा महंगाई की दर के 7.35 फीसद पहुंचने के लिए मुख्य तौर पर सब्जियों की कीमतें जिम्मेदार रही हैं जिनमें महंगाई की दर 60.50 फीसद रही है।  लेकिन अगर दूसरे प्रोटीन उत्पादों की कीमतों को देखें तो उनमें भी तेजी का रूख बना हुआ है। दाल की कीमतों में 15.44 फीसद, मांस-मछली की कीमतों में 9.57 फीसद, अंडे में 7.99 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। सभी खाद्य उत्पादों या पेय उत्पादों के वर्ग में खुदरा महंगाई की दर 12.16 फीसद रही है। इसके अलावा कपड़े, जूते, स्वास्थ्य, मनोरंजन, घरेलू उपकरण, हाउसिंग जैसे वर्ग में महंगाई काफी हद तक काबू में है या लक्ष्य से नीचे है। जहां तक टमाटर अथवा अन्य सब्जियों के दामों में वृद्धि की बात है तो इसकी मुख्य वजह कोल्ड चेन का अभाव है। पर्याप्त संख्या में कोल्ड स्टोरेज न होने के कारण किसान के पास सब्जियाें को तत्काल बेचने के अलावा और कोई उपाय नहीं रहता और अक्सर भरपूर उत्पादन की स्थिति में वे अपनी उपज औने-पौने दामाें में बेचने के लिए मजबूर होते हैं। कई बार प्याज के साथ ऐसा ही हुआ है। 
पिछले कई वर्षों से सरकार यह कोशिश कर रही है कि निजी क्षेत्र कोल्ड चेन का तंत्र मजबूत करने के लिए आगे आए लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। एक तो निजी क्षेत्र पर्याप्त लाभ के प्रति आश्वस्त नहीं हैं और दूसरे उसे तमाम तरह की प्रशासनिक अड़चनों की भी चिंता होती है। सब्जियों के भंडारण के लिए उपयुक्त कोल्ड चेन का निर्माण न हो पाने का खामियाजा जनता को महंगाई के रूप में भुगतना पड़ रहा है। सब्जियों के मामले में ऐसा कोई तंत्र भी विकसित नहीं हो पाया है, जिसकी मदद से उन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजने में आसानी हो। 
अक्सर यह देखने में आता है कि किसी एक क्षेत्र में पर्याप्त उपलब्धता के कारण किसी सब्जी के दाम एकदम नीचे गिर जाते हैं जबकि अन्य जगहों पर वही सब्जी महंगे दामों में बिक रही होती है। फलाें अथवा सब्जियों के दामों को नियंत्रित रखने के लिए केवल इतना ही आवश्यक नहीं है कि एक मजबूत कोल्ड चेन की स्थापना की जाए बल्कि मांग वाले क्षेत्रों में उनकी सुगम आपूर्ति भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। यह आश्चर्यजनक है कि सरकार दालों और सब्जियों सरीखी आवश्यक वस्तुआें की कीमत में वृद्धि का सामना उन्हीं उपायों से करती नजर आ रही है जो विगत में असफल साबित हो चुके हैं।
 बात चाहे जमाखोरों की धरपकड़ की हो अथवा बिचौलियों पर अंकुश लगाने की या फिर वितरण के ढांचे में सुधार के कदम उठाने की, इन्हीं उपायों के सहारे अतीत में भी सरकारें बढ़ती महंगाई पर काबू पाने की कोशिश करती रही हैं और हर कोई इस सच्चाई से भी परिचित है कि इन उपायों को सीमित सफलता ही मिलती है। सरकार लाचारी न दिखाए। यह ठीक है कि न तो कृषि सरकारों का काम है और न ही मौसम उनके नियंत्रण में होता है लेकिन उसकी यह जिम्मेदरी अवश्य है कि आवश्यक खाद्य वस्तुओं की उपलब्धता की निगरानी करें और यदि किसी चीज की किल्लत की आशंका हो तो उससे निपटने के उपाय भी समय रहते किए जाएं। (अदिति)