कुपोषण की समस्या

दुनिया में 20 साल पहले जब कुपोषण की बात की जाती थी तो सबसे पहले एक दुबले पतले कमजोर बच्चे की छवि दिमाग में आती थी, जिसे खाने के लिए भरपेट भोजन नहीं मिलता था, पर आज कुपोषित होने के मायने बदल रहे हैं । आज भी करोड़ों बच्चे कुपोषित हैं पर तस्वीर कुछ और ही है, यदि अफ्रीका को छोड़ दें तो आज सारी दुनिया में ऐसे बच्चों की संख्या कम हो रही है जिनकी वृद्धि अपनी आयु के मुकाबले कम है, जबकि आज ऐसे कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है जिनका वजन बढ़ गया है और जो मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं । दुनिया में पांच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा या दूसरे शब्दों में 70 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार हैं । भारत में हालात और भी बदतर हैं जहां करीब 50 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जिसका असर न केवल उनके बचपन पर पड़ रहा है बल्कि उनका भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है ।  कुपोषण की समस्या से दुनिया के अधिकांश देश जूझ रहे हैं। यूनिसेफ  की मानें तो दुनिया में कुपोषण के शिकार कुल बच्चों की तादाद तकरीबन 14.6 करोड़ से भी अधिक है। इनमें से 5.7 करोड़ से ज्यादा तो अकेले भारत में ही हैं। यह तादाद दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों की एक तिहाई से अधिक है। देश में तकरीबन 19 करोड़ लोग कुपोषित हैं। यह आंकड़ा कुल आबादी का 14 फीसदी के करीब है। कुपोषण के मामले में सबसे ज्यादा खराब स्थिति महिलाओं की है। भारत में 18 साल तक के बच्चों की तादाद 43 करोड़ है। इसमें यदि महिलाओं की तादाद मिला दी जाये तो यह आंकड़ा कुल आबादी का 70 फीसदी के आस-पास पहुँच जाता है। दुनिया में हर पांचवां बच्चा भारतीय है। जहाँ तक भुखमरी का सवाल है, दुनिया में यह तेजी से बढ़ रही है।  देश में अन्न की कोई कमी नहीं है। पिछले दिनों खबर आई थी कि आस्ट्रेलिया की पूरी आबादी का पेट भरे जाने जितना अनाज भारत देश में प्रत्येक वर्ष गल-सड़कर खराब हो जाता है। आवश्यकता इसकी सही सम्भाल और उचित तरीके से वितरण की है।