गम्भीर होती जा रही है आवारा पशुओं की समस्या

एक बार फिर भारतीय किसान यूनियन (लक्खोवाल) ने आवारा पशुओं के कारण पैदा हुई गम्भीर समस्या की तरफ लोगों का ध्यान खींचने का प्रयास किया है। यूनियन के प्रतिनिधियों ने एक हज़ार के लगभग आवारा पशु ट्रालियों में भर कर लुधियाना डी.सी. के कार्यालय में छोड़ने का ऐलान किया था। परन्तु इनको रास्ते में ही पुलिस ने रोक लिया। जिस कारण उन्होंने समराला चौक के निकट ग्लाडा ग्राऊंड में इन पशुओं को छोड़ दिया। गत कई वर्षों से अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग संस्थाओं द्वारा प्रशासन का इस मामले की तरफ ध्यान खींचने के लिए ऐसे कदम उठाये जाते रहे हैं, क्योंकि अनेक पक्षों से यह समस्या बहुत गम्भीर बनती जा रही है। आवारा पशुओं के कारण पंजाब के किसानों के खेतों का उजाड़ा होता है। वह इस समस्या से बुरी तरह ऊब गये हैं। गांवों-शहरों में गाये जब दूध देने योग्य नहीं रहती, उनको चुपचाप ‘भगवान भरोसे’ छोड़ दिया जाता है। क्योंकि दोगली नस्ल के बछड़े भी आजकल कृषि के लिए उपयोगी नहीं है। उनको भी आवारा छोड़ दिया जाता है। इसी कारण अक्सर यह कहा जाता है कि हमारे देश को भगवान ही चला रहा है। हमारे समाज में हर तरह के अनुशासन की कमी दिखाई देती है। इसके अलावा सरकारों द्वारा बनाई योजनाएं भी आधी-अधूरी ही दम तोड़ देती है। आम लोग अपनी समस्याओं का हल निकालने के लिए सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं, परन्तु फिर भी सरकारें लोगों की मुश्किलों के बारे में मूक-दर्शक ही बनी रहती हैं। यदि ज्यादा ज़ोर पड़ता है तो छोटी-मोटी कार्रवाई करके समय गुज़ार दिया जाता है। गत वर्ष जब दिसम्बर में अधिक शोरगुल हुआ तो पंजाब सरकार ने आवारा पशुओं संबंधी चार बड़े मंत्री बुला कर एक कमेटी बनाई थी, जिसने कुछ बैठकें भी की और विचार-चर्चा भी की, परन्तु समस्या वहीं की वहीं रही। अब लोगों के संयम का प्याला भरना शुरू हो गया है। भारतीय किसान यूनियन (लक्खोवाल) ने आवारा पशु एकत्रित करके डिप्टी कमिश्नरों के कार्यालयों के निकट छोड़ने शुरू कर दिये हैं। यूनियन के नेता हरिन्द्र सिंह लक्खोवाल ने कहा है कि पंजाब भर में अलग-अलग स्थानों पर उनका संगठन ऐसी ही कार्रवाई करेगा और जालन्धर तथा फरीदकोट में भी ऐसे ही सरकारी कार्यालयों में पशु छोड़े जाएंगे। लगभग 6 वर्ष पूर्व भी आज की तरह ऐसी ही कार्रवाईयां शुरू की गई थी। उस समय पंजाब में अकाली सरकार थी। वह भी इस मामले में निकम्मी साबित हुई। उन्होंने गौ सैस टैक्स लगा दिया था। 9 वस्तुओं पर ऐसा टैक्स लगाया गया था। चौपहिया और दोपहिया वाहन, तेल टैंकर, बिजली, शराब, बीयर, मैरिज पैलेसों से पंजाब सरकार को ऐसे टैक्स द्वारा 60 करोड़ की वार्षिक आय होती है। यह आय कहां और कैसे खर्च होती है, इसका कोई हिसाब नहीं दिया जाता। हमारे अनुमान के अनुसार पंजाब में 364 गौशालाएं हैं, जिनके संबंध में अक्सर यह समाचार आते हैं कि अधिकतर गौशालाओं की हालत बहुत बदतर है। इस कारण आवारा पशुओं की समस्या बढ़ती जा रही है। हमारे समाज में ऐसी समस्याओं से धार्मिक भावनाओं को जोड़ दिया जाता है। हैरानी की बात यह है कि यह धार्मिक भावनाओं वाले लोग आवारा जानवरों को रोज़ाना सड़कों पर घूमते देखते हैं। इन बेज़ुबानों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता। ये अक्सर जूठे पतलों और गंदगी में मुंह मारते रहते हैं। धार्मिक भावनाओं वाले व्यक्ति खामोश रह कर यह सब कुछ देखते रहते हैं। जब कभी आवारा पशुओं का ट्रक आदि निकलता है तो इनकी धार्मिक भावनाएं जाग जाती हैं। यह ट्रक ड्राइवरों को मारने लगते हैं। हैरानी की बात है कि हमारे देश में सांपों और चूहों आदि की भी पूजा की जाती है। इससे अधिक हैरानी की बात यह है कि आवारा पशुओं के झुंड गलियों-बाज़ारों में भटकते दिखाई देते हैं। यह स्वयं तो नर्क की ज़िन्दगी भोगते ही हैं, साथ ही आम लोगों की ज़िन्दगी भी इनके द्वारा नर्क बना दी जाती है। हमें स्मरण है कि कुछ वर्ष पूर्व डेराबस्सी में आवारा पशुओं से मांस तैयार करने के लिए एक प्लांट लगा था, जिसको बड़े धार्मिक संगठनों ने बंद करवा दिया था, परन्तु बाद में यह स्वयं आवारा पशुओं की समस्या से चुप्पी साध गए थे। अब तो यह लेख भी प्रकाशित शुरू होने हो गए हैं कि आवारा पशु और सांड भारतीय नस्ल के नहीं हैं, अपितु यह अमरीकी तथा अन्य देशों की नस्लें हैं, जिनको गायों की भारतीय नस्ल से नहीं जोड़ना चाहिए।भारतीय किसान यूनियन ने यह मांग भी शुरू कर दी है कि बूचड़खाने बनाकर ही इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। इससे मांस और चमड़ी का निर्यात करके अच्छा व्यापार भी किया जा सकता है। हालात ऐसे बन गए हैं कि किसान और शहरी वर्ग के लोग धरने लगाने और प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। मानसा में भी काफी समय पहले ऐसा कुछ देखने को मिला था। सरकार को किसानों सहित स्वयंसेवी संस्थाओं तथा अन्य सभी वर्गों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श करके इस समस्या का हल निकालने के लिए आगे आना चाहिए। यदि प्रशासन इस तरफ सक्रिय नहीं होता, तो वह अपने अहम दायित्व निभाने संबंधी बड़ी कोताही कर रहा होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द