दिल्ली चुनावों के बाद

दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणामों से जहां आम आदमी पार्टी बड़े उत्साह में दिखाई दे रही है, वहीं इन्होंने भाजपा को गम्भीर मंथन के लिए भी विवश कर दिया है। चाहे 70 में से इस पार्टी को 8 सीटें ही प्राप्त हुई हैं तथा यह इस बात का ढाढस भी बंधा रही है कि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे केवल 3 सीटें ही मिली थीं। इस बार उसका मत प्रतिशत भी 32.3 से बढ़ कर 36.52 प्रतिशत हो गया है, परन्तु इसके साथ ही जितनी राजनीतिक दुर्गति कांग्रेस की हुई है, उससे इस पार्टी के और भी अवसान की ओर बढ़ने की सम्भावना बन गई है। पिछली विधानसभा में भी कांग्रेस को कोई सीट प्राप्त नहीं हुई थी। इस बार भी उसे कोई सीट नहीं मिली। उसका मत प्रतिशत भी 9.7 प्रतिशत से कम होकर 4.25 प्रतिशत रह गया है। जहां कांग्रेस ने शीला दीक्षित के समय में 15 वर्ष यहां शासन किया था, वहीं पिछले 22 वर्षों से भाजपा भी दिल्ली चुनावों में पिछड़ती आ रही है। पिछले समय में इस पार्टी के कई राज्यों में पराजित होने से बिहार एवं पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों पर भी इसका प्रभाव पड़ने की आशंका बन गई है जिसने इसके नेताओं को और भी चिन्ता में डाल दिया है।  वर्ष 2014 में अन्ना हज़ारे के आन्दोलन के बाद जब केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाने की घोषणा की थी तो उसे इससे बड़ा समर्थन मिला था तथा इस चकाचौंध में केजरीवाल बुरी तरह से प्रफुल्लित होते नज़र आये थे। उन्होंने देश भर में लोकसभा के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी, परन्तु पंजाब के अतिरिक्त उन्हें कहीं भी कोई समर्थन नहीं मिला था। जिस प्रकार की राजनीति उन्होंने अपनी पार्टी के नाम पर पंजाब में की थी, उसने भी अंतत: पंजाबियों को निराश ही किया था। पार्टी की पंजाब शाखा में दरारें पड़ने लगी थीं तथा आंतरिक फूट का शिकार हो गई थी। एच.एस. फूलका, सुखपाल सिंह खैहरा, नाजर सिंह मानशाहिया, मास्टर बलदेव सिंह, अमरजीत सिंह संदोआ की ओर से पार्टी को अलविदा कह जाने पर यह पार्टी और भी कमज़ोर होते दिखाई दी थी, परन्तु अब दिल्ली की  विजय के बाद इसकी पंजाब इकाई में फिर से उत्साह पैदा होना प्राकृतिक बात है। यह बात निश्चित है कि यदि इसने पहले जैसी ही अपनी कार्रवाइयां दोबारा शुरू कर दीं तो इसका यह उत्साह धीमा पड़ जाएगा, क्योंकि पिछले समय में प्रवासी पंजाबियों के साथ-साथ आम लोग भी इससे निराश हो गये थे। इस समय पंजाब राजनीतिक निराशा के दौर में से गुज़र रहा है। कांग्रेस ने लोगों के साथ जो वायदे किये थे, वे व़फा नहीं हो सके थे। लोगों की जागृत हुई आशाओं को फल नहीं लगा। अकाली दल में भी आज खींचतान दिखाई दे रही है। इसके सुखदेव सिंह ढींडसा तथा रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा जैसे बड़े नेताओं की ओर से पार्टी से अलग होना इसमें उत्पन्न हुई निराशा का द्योतक ही कहा जा सकता है। इस बात में सन्देह नहीं कि पिछले कई वर्षों के अनुभव के बाद अरविन्द केजरीवाल की कार्यशैली में भारी परिवर्तन हुआ देखा जा सकता है। उनकी पहुंच एवं सोच में भी रचनात्मकता दिखाई देती है। इस बात से थोड़ा यह एहसास अवश्य होता है कि इस बार सम्भवत: वह पंजाब में पिछले समय जैसी गलतियां नहीं दोहरायेंगे तथा पार्टी को मजबूत धरातल पर ले जाने के लिए यत्नशील होंगे। आशा की ऐसी किरण आज पंजाब में उनकी शेष बची पार्टी के नेताओं को दिखाई देती है, परन्तु आगामी समय में पार्टी पंजाब में किस प्रकार विचरण करती है, इसका बहुत कुछ इस बात पर ही निर्भर करेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द