मोदी संवाद से परास्त हुआ पाक-चीनी चक्र-व्यूह

श्रीलंका की पॉवर कॉरिडोर में दो राजपक्षे भाइयों के उभरने से,वहां जिस तरह चीनी-पाकिस्तानी कूटनीति की कालीन बिछती लग रही थी, महिंदा राजपक्षे की पिछले सप्ताह संपन्न भारत यात्रा से वह आशंका कुछ हद तक टली है। लेकिन यह अभी टली भर लग रही है,टल ही गयी हो ऐसा अभी दावे से नहीं कहा जा सकता। इसलिए आने वाले दिनों में साउथ ब्लाक को लगातार अपने कोलंबो कनेक्शन के टच में रहना पड़ेगा। महिंदा राजपक्षे (एमआर) चार दिनों के वास्ते भारत आये, घूम-फिरकर चले गये। उनका आना उभयपक्षीय कूटनीति की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में उनसे औपचारिक मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि नेबर फर्स्ट वाली हमारी नीति जारी रहेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि श्रीलंका अपने यहां बसे तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा करे। ‘एमआर’ के छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे, जो श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं, नवंबर 2019 में आये थे। उन्हें भारत की ओर से सौगात में 40 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन मिली थी। उसका कैसे इस्तेमाल करना है, इस विषय पर मोदी और महिंदा राजपक्षे ने विमर्श किया।  महिंदा राजपक्षे ने सीरियल विस्फोटों के बाद आतंकवाद को काबू करने और देश के पुन:निर्माण में भारतीय सहयोग के प्रति प्रधानमंत्री मोदी का आभार प्रकट किया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद महिंदा राजपक्षे की यह पहली भारत यात्रा थी। वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी मिले। बनारस के बाबा विश्वनाथ मंदिर, सारनाथ के बौद्ध स्थलों का भ्रमण किया और देश लौट गये। महिंदा राजपक्षे के लिए जो दुविधा की स्थिति है, वह ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका के आतंक निरोधक दस्ते को अपने यहां प्रशिक्षित किये जाने की इच्छा व्यक्त की है। महिंदा राजपक्षे इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में उभयपक्षीय सहयोग का अहद कर चुके हैं। पाकिस्तान ने प्रशिक्षण से लेकर हथियार निर्यात के क्षेत्र में सहयोग के वास्ते श्रीलंका से हाथ मिला रखा है। एक बात देखने वाली है कि दोनों भाइयों के सत्ता में आ जाने के बाद से सिंहाला राष्ट्रवाद नये सिरे से मजबूत हुआ है। ऐसे माहौल में मुसलमान और तमिल मूल के श्रीलंकाई डर की स्थिति में जी रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने सीएए में श्रीलंकाई तमिलों को भले शामिल नहीं किया हो, मगर यह सवाल लगातार उठा है कि वहां से आये शरणार्थियों की नागरिकता का क्या होगा? ठीक से देखें, तो सिंहाला राष्ट्रवाद दो कालखंडों में मजबूत हुआ है। पहला लिट्टे की वजह से हुए सिविल वार के दौरान, जो कि 23 जुलाई 1983 से 18 मई 2009 तक चला। इसमें कोई 80 हजार से एक लाख लोग मारे गये थे। उस समय लिट्टे के समूल नाश का श्रेय दोनों भाइयों ने लिया था। तब देश के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे थे और तत्कालीन प्रतिरक्षा मंत्री गोटाबाया राजपक्षे। एक दूसरा स्याह समय अप्रैल 2019 में ही गुजरा है,जब श्रीलंका सीरियल विस्फोटों से दहल उठा था। उसमें 259 जानें गई थीं। इतने बेकसूर लोगों की ‘शहादत’ ने भी सिंहाला राष्ट्रवाद को मजबूत किया है। गोटाभाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति पद की शपथ के कुछ घंटों बाद देश के तमिलों और मुसलमानों को आश्वासन दिया है कि डरें नहीं, शांति से रहें। ऐसे बयान का क्या मतलब निकालें? क्या इन्हें डराया जा रहा था? यह भी एक बड़ी वजह रही है कि प्रभाकरण को मारने वाले रिटायर्ड मेजर जनरल कमल गुणारत्ने अब देश के नये प्रतिरक्षा मंत्री हैं। इससे पहले महिंदा राजपक्षे 6 अप्रैल 2004 से 19 नवंबर 2005 तक प्रधानमंत्री रहे। उन दिनों असल खेल उनके राष्ट्रपति बनने पर आरंभ हुआ। 19 नवंबर 2005 से 9 जनवरी 2015 तक एमआर के कार्यकाल में राष्ट्रपति का पद इतना शक्तिशाली बनाया गया कि उसका ताव वे हजम नहीं कर पाये। यह अफसोसनाक है कि अमरीका से लेकर यूरोप तक मानवाधिकार हनन के विरूद्ध जो आवाजें उठी थीं, पांच साल की अवधि में कहीं दफन हो गईं। जो विषय जमींदोज नहीं हुआ, वह था राष्ट्रवाद। राष्ट्रपति गोटा ने कहा कि हमें चीन, भारत व पाकिस्तान से समान रूप से व्यवहार करना है। क्या ऐसा संभव है? चुनाव परिणाम के बाद पाकिस्तान इस वजह से खुशियां बिखेर रहा था कि चीन परस्त राजपक्षे कुनबे की सत्ता में वापसी हुई है। महत्वपूर्ण चीन का अगला मास्टरस्ट्रोक है। राजपक्षे कुनबे के सशक्त होने के बाद क्या श्रीलंका में चीन, बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव (बीआरआई) को और विस्तार देने जा रहा है? श्रीलंका पर 65 अरब डालर का विदेशी कर्ज है, जिसमें से चीन को साढ़े आठ अरब डॉलर चुकता करना है। इस बार की यात्रा में दिल्ली में एक अखबार को इंटरव्यू देते हुए महिंदा राजपक्षे ने कहा कि श्रीलंका के कुल विदेशी कर्ज का मात्र 12 प्रतिशत चीनी कर्ज हमारे ऊपर है। भारतीय प्रयास यह है कि राजपक्षे कुनबा चीनी मोह से बाहर निकले। यह उसी का हिस्सा था कि राष्ट्रपति गोटा के शपथ के कुछ घंटे बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर कोलंबो उनसे मिलने पहुंचे और पीएम की ओर से भारत आने का न्योता दिया। पीएम मोदी सिरीसेना के समय तीन बार श्रीलंका दौरा कर चुके हैं। इस बार महिंदा राजपक्षे ने पीएम मोदी को कोलंबो आने का न्योता दिया है। श्रीलंका की घरेलू राजनीति में रॉ का हौवा निरंतर खड़ा किया गया था। साल 2018 में राजनीतिक अस्थिरता के दौर में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपल सिरिसेना ने उस समय के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को पत्र लिखा कि भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ मेरी हत्या की साजिश रच रही है। इसे संयोग नहीं कहें गोटाबाया राजपक्षे ने उसके प्रकारांतर पुलिस में मामला दर्ज कराया कि उनकी हत्या की भी साजिश रची जा रही है। घटनाक्रमों को ध्यान से देखा जाए, तो लगता था कि ऐसे मिथ्याआरोपों के पीछे महिंदा राजपक्षे का दिमाग काम कर रहा था। यह वही महिंदा राजपक्षे हैं, जब 2015 में संसदीय चुनाव हारने लगे, तो सारा ठीकरा ‘रॉ’ पर फोड़ा था। प्रधानमंत्री मोदी को कोलंबो यात्रा से पहले कई सारी गलतफहमियों को दूर कर लेना चाहिए।

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