भारतीयता एवं सर्वधर्म समभाव का प्रतीक लोटस टैम्पल

भारतवर्ष का हृदय दिल्ली और दिल्ली नवीन प्राचीन का सुंदर समन्वय। विभिन्न संस्कृतियों एवं अनेकानेक धर्मों और सम्प्रदायों का केन्द्र है दिल्ली। दिल्ली एक लघु भारत ही नहीं, विश्व की भी एक लघु अनुकृति है। ऐसे अनेक प्रतीक हैं जो दिल्ली को अंतर्राष्ट्रीय छवि प्रदान करते हैं और ऐसा ही एक प्रतीक है ‘बहाई उपासना मंदिर’ जो लोटस टैम्पल के रूप में अधिक विख्यात है। लोटस टैम्पल की एक विशिष्टता है इनमें नौ कोणों या किनारों का होना। नौ की संख्या या अंक का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है। नौ सबसे बड़ा अकेला अंक है जो व्यापकता, अभिन्नता और एकता का प्रतीक है। नौ की संख्या भारतीय संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी है। ‘लोटस टैम्पल’ जैसा कि इसके नाम से ही विदित होता है। इसके वास्तुशिल्प की प्रेरणा का स्रोत है कमल पुष्प अर्थात पंकज जो अत्यंत सुंदर तथा पवित्र आचरण का प्रतीक है। कीचड़ में उत्पन्न होने के बावजूद निर्लिप्त है हमारे शरीर में आत्मा की तरह।  यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहां पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहां पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं।  मंदिर का उद्घाटन 24 दिसंबर 1986 को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर 1 जनवरी 1987 को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है।  लोटस टैम्पल के विशाल प्रार्थना कक्ष में 1300 लोगों के एक साथ बैठने की व्यवस्था है। लोटस टैम्पल के प्रार्थना कक्ष में बहाई धर्म के पवित्र ग्रंथ तथा इससे पहले के सभी धर्मों के पावन ग्रंथों से निर्धारित कार्यक्रम अनुसार गायन अथवा पाठ होता है। बहाई धर्म की प्रार्थना के उपरांत शेष समय में कोई भी व्यक्ति अपने धर्म, सम्प्रदाय या विश्वास के अनुसार मौन प्रार्थना या चिंतन कर सकता है। यह हमें गांधी जी के सर्वधर्म समभाव की याद दिला देता है। (उर्वशी)